डॉक्टरों की जगह तांत्रिक व दवा की जगह झाड़-फूंक, मॉडल अस्पताल में स्वास्थ्य सेवाएं नदाराद
औरंगाबाद सदर. क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि एक सरकारी अस्पताल, जहां लाखों मरीजों की जान बचाने का दावा किया जाता है, वहां इलाज की बजाय तांत्रिकों का डेरा हो. सदर अस्पताल में ऐसा ही नजारा सामने आया, जिसने सबको चौंका दिया. इमरजेंसी वार्ड के ठीक बाहर, जहां डॉक्टरों को जीवन रक्षक दवाएं देनी चाहिए, वहां एक तांत्रिक मरीज पर लंबे समय तक झाड़-फूंक करता रहा. अस्पताल प्रशासन चुप रहा, सुरक्षा गार्ड गायब थे और स्वास्थ्य विभाग को इसकी भनक तक नहीं लगी. यह सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की सड़ चुकी हकीकत है, जहां गरीब मरीज दवा की जगह दुआ पर छोड़ दिये जाते हैं. मामला तब सामने आया जब कैमरे में यह पूरा तमाशा कैद हो गया. हरिहरगंज के मंसुरिया गांव से आये भोला सिंह बार-बार बेहोश हो रहे थे. उन्हें घबराहट होती और मुंह से झाग निकलने लगता. हालत ऐसी कि सामने जो भी आता, उस पर हमला कर देते. परिजन घायल भी हो गये. आनन-फानन में उन्हें हरिहरगंज स्थित सीएचसी ले जाया गया. वहां डॉक्टरों ने प्राथमिक उपचार कर हालत नाजुक बताते हुए बेहतर इलाज के लिए रेफर कर दिया. इसके बाद उन्हें सदर अस्पताल में भर्ती कराया गया. लेकिन डॉक्टरों ने यहां भी गंभीर हालत बताकर तुरंत रेफर कर दिया. परिजनों ने मेडिकल साइंस पर भरोसा करने की बजाय अस्पताल के बाहर ही ओझा सतनारायण साहू को बुला लिया. ओझा ने झाड़-फूंक की और ‘भूत उतारने’ का नाटक चलता रहा. आसपास मौजूद मरीज और परिजन हैरान थे, पर किसी ने रोकने की हिम्मत नहीं की. एक परिजन ने कहा, डॉक्टर तो बस रेफर कर देते हैं. प्राइवेट अस्पताल में इलाज कराने के पैसे कहां से लाएं. वहीं ओझा ने दावा किया, हम झाड़ कर एकदम ठीक कर देंगे. सवाल यह है कि अस्पताल प्रशासन ने इसे रोकने की कोशिश क्यों नहीं की. हमारी पड़ताल में पता चला कि ऐसे मामले अक्सर सामने आते हैं, खासकर सांप काटने के मामलों में, जहां झाड़-फूंक के चक्कर में मरीज की जान चली जाती है.इमरजेंसी में आने वाले 80 प्रतिशत मरीजों होते हैं रेफर
सदर अस्पताल में एक भी सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर नहीं है. इमरजेंसी में आने वाले लगभग 80 प्रतिशत मरीजों को सीधे रेफर कर दिया जाता है. रात में अधिकांश डॉक्टर ऑन कॉल रहते हैं. स्टाफ की कमी और उपकरणों के रख-रखाव के अभाव में व्यवस्था चरमराई हुई है. करोड़ों की लागत से बनी इमारत तो शानदार है, लेकिन आईसीयू खुद वेंटिलेटर पर है. न मशीनें दुरुस्त हैं, न आईसीयू विशेषज्ञ मौजूद. यहां तक कि वार्ड और आईसीयू की एसी तक काम नहीं करती. दवाएं आधी ही मिलती हैं, बाकी मरीजों को बाहर से खरीदनी पड़ती हैं.अस्पताल में दलालों का अड्डा
अस्पताल के गेट से लेकर वार्ड तक दलालों का कब्जा है. हमारी टीम ने एक दलाल से गुप्त बातचीत की. उसने कहा, साहब, यहां डॉक्टर मिलना मुश्किल है. मैं आपको प्राइवेट क्लिनिक में ले चलता हूं. गरीब मरीज इलाज के लिए भटकते रहते हैं और दलाल उन्हें जाल में फंसा लेते हैं. एक मरीज ने बताया, सरकारी अस्पताल मुफ्त कहा जाता है, लेकिन असलियत में हम दलालों के चंगुल में फंस जाते हैं. महंगे टेस्ट और प्राइवेट नर्सिंग होम का यही खेल चलता है. अस्पताल में चोरी-चकारी की घटनाएं भी आम हैं, जो सिस्टम की लापरवाही को उजागर करती हैं. नतीजतन सदर अस्पताल आज रेफरल सेंटर बनकर रह गया है और दलालों व तांत्रिकों का अड्डा बन गया है.स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों से संपर्क की कोशिश की गई, लेकिन कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला. अस्पताल में खुलेआम झाड़-फूंक हो रही थी, लेकिन कोई अधिकारी वहां नहीं पहुंचे. इस संबंध में सदर अस्पताल में पदस्थापित चिकित्सक डॉ अभिषेक कुमार ने कहा, विज्ञान के युग में भी लोग अंधविश्वास में पड़कर समय बर्बाद करते हैं. लोगों को ऐसे भ्रम से बचना चाहिए.जनता की आवाज
मरीजों और परिजनों ने कहा कि अस्पताल में इलाज होना चाहिए, लेकिन यहां अंधविश्वास का खेल चल रहा है. सरकारी सिस्टम पर भरोसा करना अब जानलेवा साबित हो रहा है. यह सिर्फ एक अस्पताल की नहीं, बल्कि पूरे बिहार के स्वास्थ्य तंत्र की हकीकत है. अस्पताल में डॉक्टर नहीं, तांत्रिक हैं. दवा नहीं, दुआ है. इलाज नहीं, बल्कि रेफर का खेल है. मरीजों और परिजनों की मांग है कि जिला प्रशासन सुधार लाये, दलालों पर कार्रवाई करे और अंधविश्वास पर रोक लगाये.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

