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कबाड़खाने में बिक रहे सप्रेम भेंट व उपहार
औरंगाबाद(सदर) : जब कोई उपहार व कोई चीज किसी को सप्रेम भेंट की जाती है तो उसकी अहमियत पानेवाले की नजर में कई गुना बढ़ जाती है. भले ही उपहार में सस्ती व मामूली कंकड़ भी प्यार से क्यों न भेंट किया गया हो. लेकिन जब कोई कीमती चीज या कृतियां कबाड़खाने तक पहुंच रहे […]
औरंगाबाद(सदर) : जब कोई उपहार व कोई चीज किसी को सप्रेम भेंट की जाती है तो उसकी अहमियत पानेवाले की नजर में कई गुना बढ़ जाती है. भले ही उपहार में सस्ती व मामूली कंकड़ भी प्यार से क्यों न भेंट किया गया हो.
लेकिन जब कोई कीमती चीज या कृतियां कबाड़खाने तक पहुंच रहे हो तो उसे देख ऐसा लगता है कि जरूर कहीं न कहीं इसके कद्रदानों में कमी आ गयी है. ये भी मान जा सकता है कि उपहार पानेवाले के लिए ये सिर्फ फैशन का एक हिस्सा है. तभी तो शहर के कई कबाड़ों में रद्दी के भाव उपहार व भेंट किये गये पुस्तक बिक रहे हैं. एक वक्त में इन किताबों पर किसी ने अपने प्यार भरे ज्जबातों को लिखा होगा.
लेकिन आज ये सिर्फ एक सौदा बन गया है. रविवार को एक कबाड़ी से ऐसी ही पुस्तक हाथ लगी,जिसे देख पता चला कि किसी को ये किताब सप्रेम भेंट की गयी थी. ये पुस्तक कविता की थी और इसके पन्ने भी नष्ट हो रहे थे. कबाड़ी वाले ने बताया कि बेचनेवाले का नाम तो पता नहीं,पर इसे रद्दी के भाव में खरीदा गया है.
कद्रदानों में आ रही कमी : ऐसे कई लोग हैं जिन्हें किताबों को बड़ा शौक होता है. साथ ही ये अपने से जुड़े लोगों को भी अपनी तरह समझते हैं. इसीलिए किसी खास अवसर पर वे किताबों को उपहार के रूप में देना ज्यादा मुनासिब समझते है, लेकिन इस उपहार को पाने वाले कभी-कभी कोई शख्स इसका कद्रदान नहीं होता.
उपहार में मिली पुस्तक को ये अपने घर के किसी कोने में डाल देते हैं या उसे कुछ समय बाद रद्दी के भाव में कबाड़ में बेच देते हैं. किताबों के प्रेमी एक बुद्धिजीवी ने हाल ही में बताया था कि वो ऐसी किताब खरीदना पसंद नहीं करते ,जिन्हें समझने में असुविधा होती है. हां वैसी किताबों पर वे जरूर रुपये खर्च करते हैं,जिसे लेखक ने अपनी बातों को सरल व सहजता से लिखा हो. ऐसे किताब प्रेमी उपहार व किताबों का मोल बेहतर समझते हैं.
फैशन बन रहा किताबों का अदान-प्रदान : किताब के शौकिन अरविंद कुमार सिन्हा कहते हैं कि किताब हो अन्य उपहार, इसका अदान-प्रदान फैशन बन गया है. किताबों से प्रेम करनेवाले लोगों में कमी आयी है. बदलते समय में इंटरनेट ने इस पर काफी प्रभाव डाला है.
हालांकि जीवन का सबसे अच्छा मित्र किताब ही होता है. किताबों के लेन-देन को प्रतिष्ठा या अभिमान से नहीं जोड़ा जाना चाहिए. साथ ही वैसे लोगों को ही किताबें भेंट की जानी चाहिए, जो इसके कद्रदान हैं.
कबाड़ से उठा लाये साहित्य व कला की पुस्तक : किताब प्रेमी व रंगकर्मी सुरेंद्र प्रसाद बताते हैं कि कबाड़ी वाले से एक किताब हाथ आयी थी, जिसे मैं उठा लाया. उस किताब का जिल्द तो नहीं था,पर उसमें लिखे तथ्य स्पष्ट थे.
साहित्य व कला नाम की ये पुस्तक में नाटक को भी परिभाषित किया गया था. नाटक से लगाव होने के कारण इस किताब को आज भी संभाल कर रखा हूं. पुस्तकों को चाहे वह उपहार में ही क्यों न मिला हो,संभाल कर रखने की जरूरत है. किताब हर युग के साथी होते है.
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