औरंगाबाद कार्यालय : औरंगाबाद जिले के सरकारी अस्पतालों में एक अप्रैल 2015 से अल्ट्रासाउंड सेवा बंद है. इससे हर रोज करीब दो सौ मरीज निजी क्लिनिकों में अल्ट्रासाउंड कराने के लिए जा रहे हैं. इस पर लगभग दो लाख रुपये उन्हें खर्च करने पड़ रहे हैं. निजी क्लिनिकों में अल्ट्रासाउंड में सात सौ से लेकर एक हजार रुपये तक लगते हैं.
जबकि सरकारी अस्पतालों में अल्ट्रासाउंड नि:शुल्क होता है. अल्ट्रासाउंड नहीं होने से सदर अस्पताल व प्रखंड के सरकारी अस्पतालों में मरीज परेशान हैं और इनकी परेशानी शीघ्र दूर होने की संभावना नहीं दिख रही है. हालांकि जिलाधिकारी ने इस पर एक विशेष रूप से बैठक भी की है और सीएस ने वैकल्पिक व्यवस्था का आश्वासन भी दिया है. लेकिन, सबसे जटिल समस्या है अल्ट्रासाउंड करने करनेवाले अनुभवी लोगों की जो यहां नहीं हैं और यही कुव्यवस्था को लेकर अल्ट्रासाउंड सेवा को एक अप्रैल से बंद कर दिया गया था.
सामाजिक कार्यकर्ता की शिकायत पर डीएम ने करायी थी जांच : जिला सामाजिक चेतना मंच के कार्यकर्ता ने जिलाधिकारी नवीन चंद्र झा से मिल कर शिकायत की थी कि सरकारी अस्पतालों में जितने भी अल्ट्रासाउंड किये जा रहे हैं. अल्ट्रासाउंड करनेवाले अप्रशिक्षित हैं. इसके कारण अल्ट्रासाउंड का सही रिपोर्ट नहीं मिल पा रही है, जिसके कारण न तो मरीजों का सही बीमारी की जानकारी मिलती है और नहीं ऐसे अप्रशिक्षित लोगों द्वारा अल्ट्रासाउंड करने से फायदा मिलते हैं.
जानकारी के अनुसार, आइजीएमएस द्वारा एजेंसी के माध्यम से जिले के सभी स्वास्थ्य केंद्रों में अल्ट्रासाउंड की नि:शुल्क सुविधा प्रदान की गयी थी. दाउदनगर पीएचसी में 25 अक्तूबर 2012 से इसकी शुरुआत हुई थी. लेकिन, प्रशिक्षित चिकित्सक द्वारा जवाब दे दिये जाने के कारण एक अप्रैल 2015 से इसे बंद करा दिया गया है. इस पीएचसी में अल्ट्रासाउंड करानेवाले मरीजों की प्रतिदिन औसतन संख्या 30 से 35 होती रही है, जिसमें 20 से 25 की संख्या में गर्भवती महिलाओं की होती है. सरकारी अस्पताल में अल्ट्रासाउंड की सुविधा होने से गरीब मरीजों को काफी राहत पहुंचता रहा है. लेकिन, इसके बंद होने के कारण मरीज तो पहुंच रहे हैं, परंतु उन्हें निजी अल्ट्रासाउंड संस्थानों का सहारा लेना पड़ रहा है.
निजी संस्थान में लगते हैं 700 रुपये : जानकारी के अनुसार, निजी स्तर पर संचालित हो रहे अल्ट्रासाउंड केंद्रों पर प्रति मरीज सात सौ रुपये तक की वसूली की जाती है. स्थानीय पीएचसी में यदि 25 प्रतिदिन की दर से मरीजों की संख्या जोड़ दी जाये तो प्रतिदिन यह 17500 रुपये हो जाते हैं. यानी यह सुविधा बंद हो जाने के बाद अब तक लगभग साढ़े तीन लाख रुपये गरीबों का अल्ट्रासाउंड के निजी संस्थानों को दिये जा चुके हैं. पीएचसी सूत्रों ने बताया कि खासकर गर्भवती महिलाओं के लिए अल्ट्रासाउंड गर्भावस्था के सातवें महीने में आवश्यक हो जाता है. गरीब वर्ग के मरीज पहुंच तो रहे हैं. लेकिन, उन्हें बैरंग वापस लौट जाना पड़ रहा है या फिर चिकित्सक से दिखाने के बाद निजी संस्थानों में जाना पड़ रहा है.