Gaya: टिकारी प्रखंड का गुलरियाचक एक ऐसा गांव है जहां के किसान नये-नये फसल का उत्पादन करते रहे हैं. अब यहां के किसान आशीष सिंह पहली बार तीन कठ्ठे में कुसुम की खेती कर रहे हैं. कुसुम की खेती किसानों के लिए बहुत ही लाभदायक है. कुसुम के बीजों का उपयोग खाद्य तेल बनाने में किया जाता है. वहीं, इसके फूलों का उपयोग कास्मेटिक उत्पाद, मसाले व आयुर्वेदिक दवाएं बनाने में किया जाता है. यह फसल बहुत पुराने तेल वली फसल है. तेल का उपयोग भोजन बनाने में तथा तैयार खली पशुओं के चारे के लिए उपयुक्त माना गया है. नवंबर माह में फसल लगाने का उपर्युक्त समय है. इस फसल को ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं होती है. फसल लगाने के समय केवल नमी होनी चाहिए, कम पानी में ज्यादा फसल 140 से 160 दिन में तैयार हो जाता है.
केसर की कलियों की तरह ही दिखती हैं कुसुम के पुष्पों की कलियां
कुसुम के पुष्पों की कलियां एकदम से केसर की कलियों की तरह ही दिखती हैं. इसलिए इसे अमेरिकन केसर के नाम से जाना जाने लगा है. इसकी पतियों का उपयोग साग के रूप में किया जाता है. इसकी पत्तियां स्वादिष्ट एवं पौष्टिक होती हैं. क्योकि यह वसा, प्रोटीन और विटामिन सी का अच्छा विकल्प मानी गयी हैं. इस पौधे को एक एकड़ में लगाने के लिए छह से सात किलो बीज की आवश्यकता पड़ती है. कुसुम की उपज पर्याप्त नमी नहीं होने पर भी 300 से 400 किलोग्राम प्रति एकड़, पर्याप्त नमी होने पर 500 से 700 किलोग्राम प्रति एकड़ पैदावार होती है. इसके बीजों की कीमत पांच हजार रुपये से लेकर छह हजार रुपये क्विंटल होता है.
अच्छे उत्पादन की है उम्मीद
इस बात की जानकारी देते हुए किसान श्री से सम्मानित किसान आशीष कुमार सिंह बताते है कि गुलरियाचक गांव नये-नये फसलों के प्रयोग के लिए जाना जाता है. पहली बार पांच कठ्ठे में प्रयोग के तौर पर लगाया गया है. फसल में विकास बहुत ही अच्छा है. उम्मीद है कि उत्पादन भी बहुत अच्छा होगा. किसान का यह भी कहना था कि पूर्व में काला आलू, काली हल्दी, काली मकई, काला चावल, काला गेंहू, कश्मीरी केसर, अंजीर व सोयाबीन की खेती का प्रयोग कर चुके हैं. आज भी कई फसलों की खेती होती है.
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