बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने सोमवार को सीतामढ़ी में मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा था कि जो लोग आज लालू यादव का विरोध कर रहे हैं. वह, कल भारत रत्न देंगे. तेजस्वी के इस बयान पर अब जेडीयू सांसद और मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री ललन सिंह ने पलटवार किया है. पटना में पत्रकारों से बात करते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा कि वे अपनी पीठ खुद थपथपा रहे हैं. लालू यादव को आखिर किस बात के लिए भारत रत्न मिलना चाहिए? बिहार को बर्बाद करने के लिए? अपराधियों का राज कायम करने के लिए? 1990 से 2005 के बीच बिहार की क्या स्थिति थी, यह किसी से छुपा नहीं है.

चारा घोटाले के लिए लालू यादव को दें भारत रत्न: ललन सिंह
तेजस्वी की बात पर ललन सिंह ने कहा कि लालू राज में बिहार की क्या हालात थे यह किसी से छिपा नहीं है. आरजेडी की सरकार के दौरान न तो बिहार में सड़क थी, न बिजली, न कानून-व्यवस्था. उस दौर में बिहार का सालाना बजट मात्र 25-28 हजार करोड़ रुपये का था, जबकि आज नीतीश कुमार के शासन में यह 270 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है. यह कोई पेड़ नहीं था, जिस पर खाद-पानी डालकर बजट बढ़ा दिया गया है. नीतीश कुमार ने ईमानदारी से जनता का पैसा जनता के विकास में लगाया है. ललन सिंह ने कहा कि लालू यादव के शासन में चारा घोटाला, अलकतरा घोटाला, स्लेट घोटाला और न जाने कितने घोटाले हुए. तो लालू को इसी सब काम के लिए भारत रत्न मिलना चाहिए क्या?

नीतीश कुमार को ‘कुंटलिया बाबा’ कहने लगे थे लोग
लालू यादव की सरकार के बारे में जिक्र करते हुए ललन सिंह ने कहा कि जब लालू राज में बिहार में बाढ़ आया तो उस समय के मुख्यमंत्री ने जानवरों का चारा खाया था. लेकिन जब नीतीश कुमार का शासन काल आया तो 2006-07 में बिहार में बाढ़ आई थी, तब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हर बाढ़ प्रभावित परिवार तक एक क्विंटल अनाज पहुंचाया. यही वजह है कि मिथिलांचल के लोग उन्हें ‘कुंटलिया बाबा’ कहने लगे थे.
20 साल से बिहार में है NDA की सरकार
वही लालू यादव का बयान हम बिहार में एनडीए सरकार नहीं बनने देंगे. इस पर ललन सिंह ने तंज कसते हुए कहा, “वे तो बीते 20 साल से सरकार बनने से रोक रहे हैं, लेकिन कुछ कर नहीं पाए. जब वे जेल में थे, तब भी कुछ नहीं कर सके. बिहार की जनता अब 2005 से पहले के दौर को भूल नहीं सकती. वह पुराने दौर में लौटना नहीं चाहती है.” अभी देखिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार प्रदेश के हर जिले का दौरा कर रहे हैं. इसके अलावा अन्य कार्यक्रमों में भी शामिल हो रहे हैं. राजनीतिक विरोधियों के पास कोई काम नहीं है, वे कुछ न कुछ तो बोलेंगे ही. वे अपनी भूमिका निभा रहे हैं. दरअसल, वे ‘परमानेंट विरोधी दल’ बने रहना चाहते हैं.