अररिया. मजहबे इस्लाम की पांच बुनियादी चीजें है. इसमें कलमा, नमाज, रोजा, हज व जकात शामिल हैं. इन पांच बुनियादी चीजों में रोजा भी एक अहम रूक्न है. रोजा एक बहुत ही महत्वपूर्ण इबादत है. हर कौम में हर पैगंबर ने रोजा रखने की बात कही है. आज भी रोजा अथवा उपवास हर धर्म में किसी न किसी रूप में रखा जाता है. ये बातें आदर्श मध्य विद्यालय ककोड़वा के सेवानिवृत प्रधानाध्यापक व इस्लामिक मामलों के जानकार मो मोहसिन ने कही. उन्होंने कहा कि पवित्र कुरान के अनुसार रोजे का उद्देश्य इंसान के अंदर तक्वा व संयम पैदा करना है. तक्वा का एक अर्थ ये है कि लोगों में ईश्वर का डर व दूसरा अर्थ जिंदगी में हमेशा एहतियात वाला तरीका अपनाना है. ईश्वर का डर एक ऐसी बात है, जो इंसान को असावधानी से बचाती है. इससे इंसान असफल नहीं होता है. मो मोहसिन ने बताया कि रमजान महीने का अभी पहला असरा रहमत का चल रहा है. रोजा इंसान में ईश्वर के डर से हर चीज के नियम के पालन का पाबंद बनाता है. ये इंसान के दिमाग व शरीर दोनों पर बेहतर प्रभाव डालता है. रोजा इंसान को अनुशासन में रहना सिखाता है. क्योंकि रोजा की हालत में इंसान अपने ज्ञानेंद्रियों यानि नफ़्स पर नियंत्रण रखता है. नफ़्स पर नियंत्रण का नाम रोजा है. यह इंसान के आत्मविश्वास को बढ़ाता है और आत्म संयम में रहना सिखाता है. रोजा इंसान को स्वार्थता से बचाता है. मो मोहसिन ने कहा कि रोजा इंसान को सच्चा व शुक्रगुजार बंदा बनाता है, जिससे इंसान के अंदर त्याग व बलिदान की भावना जग सके. ये सब्र का महीना है. सब्र के बदले जन्नत मिलता है. इसलिए इस पाक महीने में ज्यादा से ज्यादा इबादत करें, क्योंकि नेकी का सवाब भी सत्तर गुना बढ़ा दिया जाता है.
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