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मैत्री व शांति का संदेश देता है पर्युषण पर्व का मैत्री दिवस

चेतना को विकसित करने का आधार है महावीर की जीवनी

फारबिसगंज. महायशस्वी आचार्य श्री महाश्रमणजी के दिशा-निर्देश से कोलकाता से आये हुए उपासक सुशील बाफना व सुमेरमल बैद की उपस्थिति में पर्युषण महापर्व का शिखर दिवस भगवती संवत्सरी पर्व बड़े ही उत्साह पूर्वक मनाया गया. पर्युषण पर्व आध्यात्मिक पर्व है. जो आत्मसाधना व आत्माराधना पर केंद्रित है. यह पर्व चातुर्मासिक काल के 50 दिन पूरे होने के बाद भाद्रव कृष्ण पक्ष की द्वादशी से लेकर शुक्ल पक्ष की पंचमी तक मनाया जाता है. इसका मुख्य दिवस संवत्सरी महापर्व है. व्यावहारिक दृष्टि से संवत्सरी का समय वर्षा ऋतु का है. सावन-भाद्रव के महीने में वनस्पतिकाय में हरियाली व वर्षा ऋतु के कारण सूक्ष्म जीवों की उत्पति अधिक होती है. इसीलिए सावन, भाद्रव के महीने में हरियाली का भी जैन अनुयायी संख्या में सीमित या त्याग करते हैं. वर्षा ऋतु में तपस्या आसानी से होती है. इन दिनों में सहज धर्म की भावना अधिक रहती है. लाखों लोग इसमें शामिल होते हैं. इस दृष्टि से यह धर्माराधना का मुख्य पर्व है. इस महापर्व के क्रमशः खाद्य संयम दिवस, स्वाध्याय दिवस, सामायिक दिवस, वाणी संयम दिवस, अणुव्रत चेतना दिवस, जप दिवस, घ्यान दिवस, संवत्सरी दिवस इसके मुख्य अंग हैं. वहीं क्षमापन दिवस के साथ इसकी निष्पत्ति होती है. जैन धर्म संयम, त्याग और अहिंसा प्रधान धर्म है. अध्यात्म साधना का अभिनव उपक्रम है पर्युषण का संवत्सरी पर्व. यह पर्व अपने आप को तोलने का पर्व है. इस पर्युषण पर्व पर धर्म आराधना करवाने के लिए कोलकाता से आए हुए उपस्थित हुए सुशील बाफना व सुमेरमल बैद ने अपने धार्मिक वक्तव्य के द्वारा त्याग तपस्या व ज्ञान की गंगा बहाई. पर्युषण पर्व पर चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर की जीवन के पूर्व के 27 भवों के बारे में विस्तृत चर्चा की. भगवान महावीर के जन्म दीक्षा, परीषह, कैवल्य व उनके चातुर्मास के बारे में बताया. उपासक सुशील बाफना ने कहा कि संयम की चेतना को विकसित करने का आधार है. महावीर की जीवनी व पराक्रम की गाथा गाती है. भगवान महावीर के अहिंसा अनेकांत, अपरिग्रह सिद्धांतों की वर्तमान में प्रासंगिकता के बारे में बतलाया.

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