सुब्रत सिन्हा, अररिया : स्कूलों का नया सत्र अप्रैल माह में शुरू होता है और इसी के साथ ही शुरू हो जाती है अभिभावकों की परेशानी. जिनके बच्चे निजी स्कूलों में पढ़ते हैं, उनके तो पसीने छूट जाते हैं. महंगी किताबें जुटाने के लिए अभिभावकों के घर की बजट बिगड़ जाती है. कई बार तो कर्ज लेकर किताबें खरीदने पड़ती हैं.
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खाली हो रहे अभिभावकों की जेब, आलीशान हो रहे निजी स्कूलों के भवन
सुब्रत सिन्हा, अररिया : स्कूलों का नया सत्र अप्रैल माह में शुरू होता है और इसी के साथ ही शुरू हो जाती है अभिभावकों की परेशानी. जिनके बच्चे निजी स्कूलों में पढ़ते हैं, उनके तो पसीने छूट जाते हैं. महंगी किताबें जुटाने के लिए अभिभावकों के घर की बजट बिगड़ जाती है. कई बार तो […]
निजी स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने का कुछ ऐसा होड़ है कि अभिभावक हर कठिनाईयों को झेलने के लिए तैयार हो जाते हैं. लेकिन स्कूलों को अभिभावकों की परेशानी से कुछ भी लेना-देना नहीं हैं. उन्हें तो बस अपने खजाने में रुपये जमा करने हैं. कई स्कूलें तो अपने परिसर में ही किताबों की दुकानें सजा बैठे हैं.
अभिभावकों को हर हाल में वहीं से किताबें खरीदने की बाध्यता भी है. कई स्कूल तो सिर्फ कॉपियों पर स्कूल का नाम पता छाप कर अभिभावकों से दौगुनी कीमत वसूल रहे हैं. ऐसे स्कूलों में बच्चों द्वारा लाये गये बाहर से कॉपी तक मान्य नहीं होते हैं. निजी विद्यालयों में पढ़ाई का जो भी स्तर हो लेकिन दिखावे में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं.
बाहरी दिखावा व तड़क-भड़क देखकर ही अभिभावक संतुष्ट हो जाते हैं. वे यह सोचते हैं कि चलो रुपये तो खर्च हो रहे हैं लेकिन कम से कम उनके बच्चों को अच्छी शिक्षा तो मिल रही है. बड़े विद्यालयों को छोड़ दें तो कई छोटे निजी विद्यालय मापदंड से भी कम शिक्षकों के सहारे विद्यालय का पठन-पाठन चला रहे हैं. जहां गुणवत्ता का कोई ध्यान नहीं रखा जा रहा है.
किताबें खरीदने में छुटते हैं पसीने : स्कूलों द्वारा अपनी मर्जी से मोटी कमीशन देने वाले प्रकाशकों के किताबें सलेक्ट की जाती हैं. बल्कि स्कूलों द्वारा पुस्तक विक्रेताओं से भी कमीशन वसूलने की शिकायत गाहें-बगाहें सामने आती रहती हैं.
जब किसी प्रकाशक द्वारा कमीशन की डिमांड पूरी नहीं की जाती है तो उसकी किताबें हटा कर दूसरे प्रकाशत की किताबें लगा दी जाती हैं. स्कूलों को मोटी कमीशन देने के लिए प्रकाशन अपनी मर्जी से किताबों की कीतमें बढ़ा देते हैं.
एनसीइआरटी की किताबें आज भी सस्ती
प्राइवेट पब्लिकेशन की किताबों की अपेक्षा आज भी एनसीइआरटी की किताबें सस्ती हैं. बल्कि कहा जाए तो प्राइवेट पब्लिकेशन की अपेक्षा आधी कीमतों के बराबर है. इसमें दुकानदारों को कम मुनाफा होने के कारण दुकानदार स्कूल संचालकों को कमीशन नहीं दे पाते हैं.
इसलिए निजी विद्यालय इसे अपनी सिलेबस में जगह नहीं देते हैं. हालांकि स्कूल संचालकों का कहना है कि एनसीइआरटी की किताबें समय पर व जरूरी संख्या में उपलब्ध नहीं होती हैं.
निजी स्कूल संचालक हर वर्ष बदलतें हैं किताबें
निजी विद्यालय द्वारा हर वर्ष किताबें बदल देने से करोड़ों की पुरानी किताबें कबाड़ में बदल जाती हैं. निजी विद्यालय के संचालकों को इसकी कोई परवाह नहीं है. उन्हें तो बस अपनी कमीशन से मतलब है. शिक्षा के नाम पर हो रहे व्यापार पर न तो सरकार का प्रतिबंध है न ही आम आदमी ही कुछ कर पाते हैं.
स्मार्ट क्लासेस का दावा फेल, अब भी पांच किलो के बैग को ढो रहे मासूम
स्मार्ट क्लासेस की बात निजी विद्यालय करते तो हैं लेकिन इसका अनुपालन नहीं हो पा रहा है. यह बच्चों के किताबों से भरे बैग को देखने के बाद स्वत: ही हो जाता है. निजी विद्यालयों में शिक्षा का हाल यह है कि पहली कक्षा के बच्चों के लिए 16 किताबों का बुक लिस्ट थमा दिया जाता है.
बच्चों की कमर किताबों की बोझ से झुकती जा रही है. तो अभिभावकों की कमर किताबों की कीमत से टूट रही है. इन 16 किताबों को खरीदने में लगभग 03 हजार रुपये का खर्च आता है. कॉपियों का खर्च अभिभावकों को अगल से जुटाना पड़ता है. स्मार्ट क्लासेस की बात निजी विद्यालय करते तो हैं लेकिन इसका अनुपालन नहीं हो पा रहा है.
अभिभावक करें, तो करें क्या
सरकारी विद्यालय के बच्चे भी कर रहे हैं बेहतर
अभिभावकों का निजी विद्यालय से मोह भंग होना आवश्यक है, उसके लिए सरकारी विद्यालयों के शैक्षणिक स्तर को सुधारने में अभिभावकों का सहयोग आपेक्षित है. सरकारी विद्यालय के बच्चे भी बेहतर मुकाम हासिल कर रहे हैं.
रंजीत जयसवाल, किराना व्यवसायी
अभिभाव नहीं कर पाते हैं विरोध
अभिभावक अच्छी शिक्षा के मोह में निजी स्कूलों के हाथों की कठपुतली बन गये हैं. स्कूल जैसे भी रुपये ऐठता हैं वे चाह कर भी विरोध नहीं कर पाते हैं. सरकार थोड़ा ओर ध्यान दे तो सरकारी स्कूल में भी बच्चों को बेहतर शिक्षा मिल सकती है.
संतोष साह, मिठाई व्यवसायी
अनाप-शनाप डिमांडों का करना चाहिए बहिष्कार
निजी विद्यालय के मनमानी पर सरकार को रोक लगानी चाहिए. जिस प्रकास से निजी विद्यालयों ने शिक्षा के नाम पर लूट मचा रखी है, इस पर अंकुश जरूरी है. अभिभावकों को भी शिक्षा के नाम पर निजी स्कूलों द्वारा किये जा रहे अनाप-शनाप डिमांडों का विरोध करना चाहिए.
रंजीत कुमार भारती, मोटर पार्टस व्यवसायी
सरकारी स्कूलों में गुणात्मक सुधार की आवाश्यकता
निजी विद्यालय के नाम पर अभिभावक आकर्षित हो रहे हैं. इसका कारण सरकारी स्कूलों में शिक्षा का आभाव. सरकारी स्कूलों में शिक्षा व्यवस्था में गुणात्मक सुधार हो जाए तो निजी स्कूलों का व्यापार बंद हो जायेगा.
अमन रंजन उर्फ लुक्कू वर्मा, अभिभावक
किताबों के बोझ ने बच्चों के मानसिक स्थिति पर डाला है प्रभाव
निजी स्कूलों की पढ़ाई गरीबों के लिए नहीं रह गयी है. मध्यम वर्गीय परिवारों की आर्थिक स्थिति खराब हो रही है. नर्सरी बच्चों पर भी भारी बस्ते के बोझ लाद दिया जाता है जो कि गलत है. बच्चें अधिक दबाव के कारण मानसिक रोग के शिकार हो रहे हैं.
रतन कुमार, ग्रील व्यवसायी
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