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अररिया में निर्दलीय बिगाड़ सकते हैं खिलाड़ियों का खेल

मृगेंद्र मणि सिंह सरफराज को विरासत में मिली राजनीति अररिया : अररिया में नामांकन व स्क्रूटनी के बाद मैदान में अब 13 उम्मीदवार रह गये हैं. लेकिन, तस्वीर अब भी साफ नहीं हुई है कि मतदाता किस तरफ अपना झुकाव रखेंगे. इस बार की टक्कर एनडीए व महागठबंधन के बीच ही माना जा रहा है, […]

मृगेंद्र मणि सिंह
सरफराज को विरासत में मिली राजनीति
अररिया : अररिया में नामांकन व स्क्रूटनी के बाद मैदान में अब 13 उम्मीदवार रह गये हैं. लेकिन, तस्वीर अब भी साफ नहीं हुई है कि मतदाता किस तरफ अपना झुकाव रखेंगे. इस बार की टक्कर एनडीए व महागठबंधन के बीच ही माना जा रहा है, लेकिन मैदान में डटे 10 निर्दलीय उम्मीदवार विभिन्न धर्म व जाति से आते हैं. ऐसे में यह संभव है कि निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव के गणित को बिगाड़ सकते हैं. बहरहाल वर्तमान परिस्थिति में महागठबंधन व एनडीए के बीच ही चुनावी घमसान के आसार दिख रहे हैं.
एनडीए उम्मीदवार प्रदीप कुमार सिंह 2005-10 के बीच हुए दो बार के चुनाव में दोनों ही बार विधायक और 2009-14 में एक बार सांसद भी रह चुके हैं.
सरफराज आलम दो बार विधायक तो एक बार सांसद रह चुके हैं. पिता मो तस्लीमउद्दीन की मृत्यु के बाद अररिया सीट पर हुए उपचुनाव में वे सांसद के रूप में निर्वाचित हुए. प्रदीप कुमार सिंह 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार बनाये गये थे. उन्होंने इस चुनाव में जाकिर हुसैन खान को हराकर जीत हासिल की थी.
प्रदीप कुमार सिंह को अत्यंत पिछड़े वोट पर भरोसा
प्रदीप सिंह अतिपिछड़ी जाति के गंगई उप जाति से आते हैं. उनके पिता रामलाल सिंह शिक्षक व कवि भी थे. हालांकि, प्रदीप सिंह का शैक्षणिक कैरियर 10वीं बोर्ड ही रहा. इसके बाद उन्होंने राजनीति को अपना कैरियर बनाया.
काफी संघर्ष के बाद भाजपा ने 2005 में उन्हें टिकट देकर चुनाव लड़ाया. वे विधायक भी बने. वर्ष 2009 में वे सांसद बने. उनके आधार वोट अत्यंत पिछड़ा ही हैं, जिसकी जिले में अच्छी तादाद है. इसके बाद सवर्ण, वैश्य, पिछड़ा के अलावा कैडर वोट को भाजपा जीत का आधार मानती है.
सरफराज आलम पारंपरिक वोट को मान रहे आधार
महागठबंधन के उम्मीदवार पूर्व सांसद व गृह मंत्री रह चुके तस्लीमउद्दीन के पुत्र हैं सरफराज आलम. वे जिले के एक बड़े मुसलिम संप्रदाय के कुलहिया समुदाय से हैं.
ये तीन बार विधायक बने. तीनों ही बार उनका जीत का क्षेत्र जोकीहाट विधानसभा ही था. 2000 में पहली बार राजद के टिकट पर चुनाव जीत कर पहुंचे. 2010 में जदयू के उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीते. 2016 में जदयू ने निलंबित कर दिया.
उपचुनाव में राजद के टिकट पर भाजपा के प्रदीप सिंह को 61 हजार मतों से पराजित किया. अगर जिले की मुस्लिम आबादी की तुलनात्मक अध्यन किया जाये तो वर्ष 2011 के जनगणना के अनुसार अररिया में 42.8 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है. इसके बाद यादव मतदाता हैं.

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