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बिहार में परिवारों के पास शौचालय से ज्यादा मोबाइल

सेंसस ऑफ इंडिया ने पहली बार जारी किया प्रतिशत पर आधारित फैक्ट अजय कुमार पटना : बिहार के 51.6 फीसदी परिवारों (हाउसहोल्ड) के पास मोबाइल पहुंच गया पर 76.9 फीसदी परिवार बगैर शौचालय के हैं. यही नहीं 16.4 परिवारों में ही बिजली पहुंच पायी है और 82.4 परिवारों में रोशनी का जरिया केरोसिन है. शहरों […]

सेंसस ऑफ इंडिया ने पहली बार जारी किया प्रतिशत पर आधारित फैक्ट

अजय कुमार

पटना : बिहार के 51.6 फीसदी परिवारों (हाउसहोल्ड) के पास मोबाइल पहुंच गया पर 76.9 फीसदी परिवार बगैर शौचालय के हैं. यही नहीं 16.4 परिवारों में ही बिजली पहुंच पायी है और 82.4 परिवारों में रोशनी का जरिया केरोसिन है. शहरों के 66.7 फीसदी परिवारों मे ही बिजली पहुंच सकी है.

भारत सरकार के जनगणना निदेशालय ने बिहार के 1 करोड़ 89 लाख 40 हजार 629 परिवारों पर किये गये सव्रेक्षण के बाद इन आंकड़ों को पहली बार प्रतिशत के रूप में पेश किया है. इसके पहले केवल घरों के बारे में आंकड़े ही जारी किये जाते थे.

2011 की जनगणना के मुताबिक इन इस सर्वेक्षण में घरों की स्थिति, उसकी छत, पीने के पानी, बिजली, शौचालय, ड्रेनेज, जलावन के लिए उपयोग में आनेवाली सामग्री, किचेन की दशा, बैंकिंग, रेडियो, ट्रांजिस्टर, टेलिविजन, कंप्यूटर, इंटरनेट, कार, साइकिल जैसे साधनों के बारे में ब्योरा दिया गया है.

इन तथ्यों से कई बिहार के लोगों और उनके रहन-सहन के बारे में कई कोण निकलते हैं. सर्वेक्षण के अनुसार राज्य के 51.6 फीसदी परिवारों के पास मोबाइल फोन है. इसमें 50.1 फीसदी परिवार ऐसे हैं जो ग्रामीण क्षेत्र में रहते हैं. शहरी क्षेत्र के 64.4 फीसदी परिवारों के पास मोबाइल है.

जबकि 48.3 फीसदी शहरी और ग्रामीण परिवारों के पास साइकिल है. शहर के 4.7 फीसदी परिवारों के पास कार है जबकि मात्र 1.4 फीसदी ग्रामीण क्षेत्र के परिवारों के पास यह साधन मौजूद है.

राज्य के 51.9 फीसदी परिवारों के घर की छत कंक्र ीट की है जबकि ग्रामीण इलाके के मात्र 20.4 फीसदी परिवारों के घर ही कंक्र ीट के हैं. 44.9 फीसदी परिवार ऐसे हैं जिनके पास एक ही कमरे हैं. ग्रामीण क्षेत्र में ऐसे परिवारों की संख्या 44.4 फीसदी जबकि शहरी क्षेत्र में 32.5 फीसदी परिवार एक ही कमरे में रहते हैं. शहरों में 13.7 फीसदी परिवार किराये पर रहते हैं.

सर्वेक्षण के अनुसार शहरी क्षेत्र में 66.7 फीसदी परिवारों तक बिजली पहुंच सकी है जबकि गांवों में 88.4 फीसदी परिवार अब भी रोशनी के लिए केरोसिन का इस्तेमाल करते हैं. शहरों में 32.2 फीसदी परिवार केरोसिन का इस्तेमाल करते हैं. 23.1 फीसदी परिवारों के पास शौचालय की सुविधा है. 75.8 फीसदी परिवार शौच के लिए खुली जगह का इस्तेमाल करते हैं.

ग्रामीण इलाके में ऐसे परिवारों की तादाद 81.4 फीसदी और शहरों में 28.9 फीसदी है. कुल 57.5 फीसदी परिवारों के पास किचन की सुविधा नहीं है. ग्रामीण इलाकों में 59.3 फीसदी और शहरों में 42.3 परिवारों के पास रसोईघर नहीं है.

कितने परिवारों के पास मोबाइल (फीसदी में)

बिहार: 51.6

ग्रामीण: 50.1

शहर: 64.4

साइकिल दोपिहया कार

बिहार 48.7 8.1 1.7

ग्रामीण 48.3 6.6 1.4

शहर 48.3 20.8 4.7

रेडियो टीवी कंप्यूटर नेट के साथ

बिहार 25.8 14.5 0.9

ग्रामीण 25.8 10.2 0.5

शहर 25.6 50.9 3.8

रसोई घर है रसोई घर नहीं

24 57.5

20.9 59.3

49.6 42.3

कितने परिवार बैंकिंग से जुड़े हैं

बिहार: 44.4

ग्रामीण: 42.3

शहर: 62.4

रोशनी का जरिया बिजली केरोसिन सोलर

बिहार: 16.4 82.4 0.6

ग्रामीण: 10.4 88.4 0.6

शहर 66.7 32.2 0.3

शौचालय सेप्टिक टैंक

बिहार: 23.1 16

ग्रामीण: 17.6 11.6

शहर: 69 52.7

शौचालय नहीं खुले में शौच

बिहार: 76.9 75.8

ग्रामीण: 82.4 81.4

शहर: 31 28.9

बुनियादी जरूरतों को पूरा करने पर फोकस

इन तथ्यों से साफ है कि तमाम ग्रोथ के बावजूद बड़ी आबादी तक बुनियादी सुविधाएं नहीं पहुंच सकी हैं. इसमें दो राय नहीं कि राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर विकास से कई चीजें बदली हैं.

पर जहां तक बिहार की बात है तो ज्यादा ध्यान ग्रामीण इलाकों में देने की जरूरत है. वहां रहने वाली आबादी की आमदनी बढ़ाने के उपाय करने होंगे और इसके लिए जरूरी है कि खेती को लाभकारी उद्यम में बदला जाये. सरकारी योजनाओं के जरिये आप एक हद तक लोगों के जीवन स्तर पर सुधार ला सकते हैं.

पर यह सिर्फ योजनाओं के भरोसे नहीं होगा. विकास के दायरे में उस आबादी को शामिल करने की चुनौती है. शहरों में भी बुनियादी सुविधाएं सभी परिवारों तक नहीं पहुंची हैं. पर ग्रामीण इलाकों के अपेक्षाकृत शहरों में रहने वाले परिवारो की सुविधाएं या परिसंपित्तयां ज्यादा हैं. गांव और शहरों के बीच परिसंपित्तयों के मामले में बड़ा गैप बना हुआ है. इसे दूर करने की जरूरत है.

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