Cheteshwar Pujara Most Memorable Inning of cricket career: चेतेश्वर पुजारा भारतीय क्रिकेट टीम की राहुल द्रविड़ के बाद ऐसी दीवार बनकर उभरे कि उनकी कमी-सी पूरी कर दी. पुजारा का टेस्ट डेब्यू ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ ही हुआ था, 2010 में. तब भारत को आखिरी दिन 207 रन का लक्ष्य मिला था और जल्दी ही वीरेंद्र सहवाग आउट हो गए. पहली पारी में तीन गेंदों पर शून्य बनाने वाले 22 वर्षीय पुजारा को राहुल द्रविड़ से ऊपर नंबर तीन पर भेजा गया. उन्होंने 89 गेंदों पर 72 रन बनाकर भारत की जीत सुनिश्चित की. उसी समय से उन्होंने बता दिया था कि दबाव उनके खेल को तोड़ नहीं सकता. लेकिन भारतीय क्रिकेट के इतिहास में कुछ ऐसी पारियां हैं, जिनका असर स्कोरबोर्ड से कहीं ज्यादा गहरा होता है. चेतेश्वर पुजारा ने रविवार, 24 अगस्त को अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से पूरी तरह रिटायर होने का फैसला किया है. ऐसे में उनकी वह ऐतिहासिक पारी जरूर याद की जानी चाहिए.
Cheteshwar Pujara Most Memorable Inning vs Australia: जनवरी 2021 का बॉर्डर गावस्कर ट्रॉफी के गाबा टेस्ट एक ऐसा मैच था, जब भारत ने ऑस्ट्रेलिया का गाबा का घमंड तोड़ा था. ऑस्ट्रेलिया इस मैदान पर पिछले कई दशकों से इस मैदान पर हारा नहीं था, उस दौरे पर ऑस्ट्रेलिया के कप्तान थे, टिम पेन. उन्होंने इस मैच से पहले भारत को गाबा को अपना किला बताते हुए जीत की चुनौती दी थी और पुजारा ने इसे जीतने की ठान ली थी. मैच का आखिरी दिन, ऑस्ट्रेलिया का किला कहलाने वाला ब्रिस्बेन का मैदान और सामने खड़े थे दुनिया के सबसे घातक तेज गेंदबाज पैट कमिंस, जोश हेजलवुड और मिशेल स्टार्क. लेकिन इस दिन भारतीय बल्लेबाजी का चेहरा एक ही था और वो थे चेतेश्वर पुजारा. पुजारा ने उस दिन अपने बल्ले और शरीर दोनों से खेले और गाबा का घमंड तोड़ने में सबसे बड़ा योगदान दिया.
संघर्ष और साहस की मिसाल
पांचवें दिन का माहौल किसी तपते तंदूर जैसा था, जहां पुजारा हर गेंद पर तप रहे थे. हेजलवुड और कमिंस ने लगातार शॉर्ट गेंदों से हमला बोला. गेंदें कभी हेलमेट पर लगीं, कभी शरीर पर. एक गेंद ने तो उनकी उंगली को चोटिल कर दिया, जिससे वे दर्द से कराह उठे. लगभग पांच मिनट तक वे क्रीज पर झुके रहे. ऐसा लगा कि ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाजों ने उनकी मानसिक दीवार तोड़ दी है. लेकिन पुजारा उठे और उसी जिद के साथ फिर क्रीज पर जम गए मानो कह रहे हों, “आज मैं हार नहीं मानूंगा.”
धीमी लेकिन ठोस पारी
जब पुजारा बल्लेबाजी कर रहे थे, भारत को अभी भी 196 रन चाहिए थे. उन्होंने अपने करियर का सबसे धीमा अर्धशतक पूरा किया 196 गेंदों पर. गेंदें लगातार उनके हेलमेट का स्टेम गार्ड उड़ाती रहीं, लेकिन उनका मनोबल अडिग रहा. 211 गेंदों का सामना कर उन्होंने 56 रन बनाए और 314 मिनट तक क्रीज पर डटे रहे. इन 211 गेंदों में से 11 सीधे उनके शरीर पर लगीं और यह उन्होंने जानबूझकर सहा ताकि भारत जीत की ओर बढ़ सके. आखिरकार कमिंस ने उन्हें एलबीडब्ल्यू आउट किया. यह पारी संख्याओं से कहीं ज्यादा थी. यह साहस, धैर्य और आत्मविश्वास का प्रतीक थी. जब शुभमन गिल आक्रामक अंदाज में 91 रन बना रहे थे और रिषभ पंत जीत की राह आसान कर रहे थे, तब पुजारा ने वह नींव रखी जिस पर भारत की ऐतिहासिक जीत खड़ी हुई. भारत को पंत ने चौका लगाकर जिताया.
टेस्ट क्रिकेट के दीवानों को पुजारा जैसे शुद्ध बल्लेबाज को खेलते हुए देखना अलग ही आनंद देता है. उनकी धीमी अर्धशतक सच में सुकून देने वाले होते हैं. यह ऐसा है मानो धीरे-धीरे विपक्ष से रन निचोड़कर खेल उनसे छीन लेना. गाबा में कभी-कभी पुजारा दर्द से कराहते नजर आए. यहां तक कि एक ऑस्ट्रेलियाई कमेंटेटर ने ताना कसते हुए कहा कि पुजारा को चोट खाने के बजाय बल्ला इस्तेमाल करना चाहिए. मगर वे यह नहीं समझ पाए कि 6000 से ज्यादा टेस्ट रन और 18 शतक बना चुका यह बल्लेबाज किस योजना पर काम कर रहा है.
क्यों झेलीं इतनीं चोटें
पुजारा ने बाद में खुद बताया कि उन्होंने इतनी चोटें क्यों झेलीं? वजह बहुत सीधी थी, वे क्लोज-इन फील्डरों को कैच नहीं देना चाहते थे. उन्होंने कुछ समय बाद बताया, “मेरा गेम प्लान साफ था कि पहले सेशन में या तो कोई विकेट न गिरे या बहुत कम गिरे, ताकि ऑस्ट्रेलिया को बढ़त न मिले. सौभाग्य से उस समय सिर्फ एक विकेट गिरा. मेरा इरादा था कि चाहे रन न आएं, लेकिन टिके रहो और दूसरे-तीसरे सत्र में तेजी लाने की कोशिश करो.”
उन्होंने पिच के बारे में कहा, “गेंद कभी नीचा रह रहा था, कभी उम्मीद से ज्यादा उछल रहा था. ऐसे में बल्ले से बचाव करना खतरनाक हो सकता था, क्योंकि अगर गेंद ग्लव्स पर लगती तो शॉर्ट लेग, स्लिप या गली में कैच हो सकता था. इसलिए मैंने जानबूझकर शरीर पर गेंद खाने का फैसला किया. हेलमेट पर लगना आदर्श नहीं था, लेकिन मुझे पता था जब तक मैं आउट नहीं हो रहा, सब ठीक है.”
पुजारा ने यह भी स्वीकार किया कि कुछ चोटें बेहद दर्दनाक थीं. उन्होंने बताया, “एक गेंद मेरे कंधे के नीचे लगी, वह बहुत दर्दनाक थी. लेकिन सबसे ज्यादा दर्द तब हुआ जब उंगली पर चोट लगी. तीसरे टेस्ट से पहले मेलबर्न में अभ्यास सत्र में मुझे उसी उंगली पर गेंद लगी थी और वहां पहले से ही सूजन थी.” 2020-21 बॉर्डर-गावस्कर सीरीज में उन्होंने चार टेस्ट में 277 रन बनाए, लेकिन असली खासियत थी. 928 गेंदों का सामना करना. सिर्फ गाबा ही नहीं, सिडनी टेस्ट की चौथी पारी में भी उन्होंने 205 गेंदें झेली थीं.
बचपन से बनी आदत
पुजारा की यह जुझारू शैली संयोग नहीं थी. उनके बचपन से ही अनुशासन और त्याग उनकी ज़िंदगी का हिस्सा रहे हैं. उनके पिता और पहले कोच अरविंद पुजारा उन्हें त्योहार मनाने तक की अनुमति नहीं देते थे. दीवाली पर पटाखे जलाना या उत्तरायण पर पतंग उड़ाना उनके लिए वर्जित था. वजह साफ थी – “अगर हाथ जल गए या उंगली कट गई तो नेट्स मिस हो जाएंगे.” छोटे शहर राजकोट से ऊपर उठकर क्रिकेट में जगह बनाना आसान नहीं था, और पुजारा ने इसे पूरी गंभीरता से लिया.
करियर की शुरुआत से आज तक
2010 में पुजारा का टेस्ट डेब्यू ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ ही हुआ था. उनका आखिरी टेस्ट मैच भी ऑस्ट्रेलिया के ही खिलाफ आया. उन्होंने 2023 के विश्व टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल में ओवल में पहली पारी में 14 और दूसरी पारी में 27 रन बनाए थे. पिछले दो साल से टीम से बाहर चल रहे 37 साल के पुजारा ने आखिरकार क्रिकेट को अलविदा कहते हुए रिटायमेंट की घोषणा कर दी.
चेतेश्वर पुजारा ने साल 2010-2025 तक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में भारत के लिए 103 टेस्ट और 5 वनडे मुकाबले खेले, उनके खाते में एक भी टी20 मैच नहीं आए. शुद्ध रूप से टेस्ट बल्लेबाज पुजारा ने 43.60 की औसत से 7,195 रन बनाए, जिसमें 19 शतक और 35 अर्धशतक शामिल हैं. एक लंबे अरसे तक वह टीम इंडिया के भरोसेमंद नंबर-3 बल्लेबाज के रूप में जाने गए और देश-विदेश दोनों जगह कई यादगार जीतों में उन्होंने अहम योगदान दिया.
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