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संन्यास की घोषणा से ड्रेसिंग रूम में सन्नाटा

मुंबई : टीम इंडिया के कप्तान महेंद्र सिंह धौनी ने मंगलवार को टेस्ट क्रिकेट से संन्यास ले लिया. बीसीसीआई के अनुसार उनका टेस्ट से संन्यास तत्काल प्रभाव से लागू होगा. ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ चौथे और आखिरी टेस्ट मैच में विराट कोहली कप्तानी करेंगे. मेलबर्न में तीसरा टेस्ट मैच ड्रॉ होते ही ड्रेसिंग रूम में धौनी […]

मुंबई : टीम इंडिया के कप्तान महेंद्र सिंह धौनी ने मंगलवार को टेस्ट क्रिकेट से संन्यास ले लिया. बीसीसीआई के अनुसार उनका टेस्ट से संन्यास तत्काल प्रभाव से लागू होगा. ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ चौथे और आखिरी टेस्ट मैच में विराट कोहली कप्तानी करेंगे. मेलबर्न में तीसरा टेस्ट मैच ड्रॉ होते ही ड्रेसिंग रूम में धौनी ने संन्यास का एलान किया. धौनी के संन्यास के फैसले के बाद टीम इंडिया के डायरेक्टर रवि शास्त्री समेत सभी खिलाड़ी सन्न रह गये. किसी को इस बारे में भनक तक नहीं थी और न ही कोई यह उम्मीद कर रहा था कि बीच सीरीज में धौनी संन्यास लेंगे.

अप्रैल 2008 में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ अनिल कुंबले की गैर मौजूदगी में कानपुर में पहली बार धौनी ने टेस्ट क्रि केट की कमान संभाली थी. हालांकि धौनी ने कुछ वक्त पहले टेस्ट से रिटायरमेंट के संकेत दिये थे, लेकिन वह अचानक यह घोषणा करेंगे, इसकी किसी को कोई उम्मीद नहीं थीं.

प्रशंसक स्तब्ध, कहा-रांची को पहचान दी

धौनी के संन्यास लेने के फैसले पर उनके गृह नगर रांची के लोग हैरान और स्तब्ध हैं, लेकिन सभी ने एक सुर में कहा कि रांची को धौनी ने दुनिया भर में पहचान दी.पिछले नौ वर्षो से भारतीय टेस्ट क्रिकेट टीम की रीढ़ बने महेंद्र सिंह धौनी ने मंगलवार को जब टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेने का फैसला सुनाया, तो एकाएक देश के क्रिकेट प्रशंसकों के साथ रांची के उनके प्रशंसकों में भी सन्नाटा छा गया.रांची के हरमू में रहनेवाले राजीव ने कहा कि महि को अभी संन्यास नहीं लेना चाहिए था.

जब सचिन तेंडुलकर 40 वर्ष की उम्र तक क्रिकेट खेल सकते हैं, तो महि को सिर्फ 33 वर्ष की उम्र में आखिर क्यों संन्यास लेना चाहिए? धौनी के कोच रहे चंचल भट्टाचार्य ने कहा कि धौनी के क्रिकेट की दुनिया में उभरने से पहले तो रांची को लोग सिर्फ यहां देश के सबसे बड़े मानसिक स्वास्थ्य केंद्र अथवा यहां के मजदूरों के लिए जानते थे. उन्होंने कहा कि धौनी न होते तो वास्तव में झारखंड या रांची को लोग क्रिकेट के केंद्र के रूप में ही नहीं जानते. भट्टाचार्य ने कहा : लोग अंगुलियां उठायें, तो अच्छी बात नहीं है, बेहतर यही होता है कि जब समय आ जाये, तो अच्छा खेलते हुए ही विदा ले लेना चाहिए.

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