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Winter Solstice 2025: आज इतने घंटे में ही डूब जाएगा सूरज, जानें शीतकालीन संक्रांति का धार्मिक महत्व

Winter Solstice 2025: आज 21 दिसंबर 2025 को शीतकालीन संक्रांति का विशेष दिन है, जब सूर्य वर्ष में सबसे जल्दी अस्त होता है और दिन की अवधि सबसे कम रहती है. आखिर क्यों आज सूरज इतने कम घंटों में ही डूब जाता है? जानें इसके पीछे छिपा खगोलीय कारण और धार्मिक महत्व.

Winter Solstice 2025: सामान्यत: एक दिन में 12 घंटे का दिन और 12 घंटे की रात मानी जाती है, लेकिन यह संतुलन पूरे वर्ष एक जैसा नहीं रहता. गर्मियों में दिन लंबे और रातें छोटी हो जाती हैं, जबकि सर्दियों में दिन छोटे और रातें लंबी हो जाती हैं. यही बदलाव ऋतु परिवर्तन की पहचान है. इन सबके बीच वर्ष में एक ऐसा विशेष दिन भी आता है, जब दिन की अवधि सबसे कम और रात सबसे लंबी होती है. इसी दिन को शीतकालीन संक्रांति कहा जाता है.

वर्ष 2025 में शीतकालीन संक्रांति आज

वर्ष 2025 में शीतकालीन संक्रांति आज 21 दिसंबर को है. भारतीय समयानुसार यह खगोलीय क्षण रात 8 बजकर 33 मिनट पर घटित होगा. इसके बाद उत्तरी गोलार्ध में दिन की अवधि धीरे-धीरे बढ़ने लगेगी और रातें छोटी होने लगेंगी. यही कारण है कि 21 दिसंबर को वर्ष का सबसे छोटा दिन और सबसे लंबी रात माना जा रहा है. रविवार 21 दिसंबर को वर्ष का सबसे छोटा दिन होगा. पंडित रजनिश पांडे के अनुसार में रविवार का दिन 10 घंटे 42 मिनट का होगा, इतने ही देर तक सूर्यदेव के दर्शन होंगे और इसके बाद सूरज डूब जाएगा.

क्या है शीतकालीन संक्रांति का वैज्ञानिक कारण

भूगोल और खगोल विज्ञान की भाषा में शीतकालीन संक्रांति को शीत अयनांत कहा जाता है. यह स्थिति तब बनती है जब पृथ्वी का उत्तरी ध्रुव सूर्य से अधिकतम दूरी की ओर झुका होता है. पृथ्वी अपनी धुरी पर लगभग 23.5 डिग्री झुकी हुई है और इसी झुकाव के कारण सूर्य की किरणें सीधे नहीं पड़ पातीं. परिणामस्वरूप दिन छोटा और रात लंबी हो जाती है. यह घटना हर वर्ष 21, 22 या 23 दिसंबर को हो सकती है.

उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध में अंतर

शीतकालीन संक्रांति का प्रभाव पूरी पृथ्वी पर एक जैसा नहीं होता. उत्तरी गोलार्ध के देशों में इस दिन सूर्य बहुत जल्दी अस्त हो जाता है और रात लंबी होती है, जबकि दक्षिणी गोलार्ध में स्थिति बिल्कुल उलट होती है. वहां दिन सबसे लंबे और रातें सबसे छोटी होती हैं.

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धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

भारतीय परंपरा में शीतकालीन संक्रांति को अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है. इसके बाद सूर्य की उत्तर दिशा में गति को उत्तरायण कहा जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार उत्तरायण को शुभ काल, सकारात्मक ऊर्जा और आध्यात्मिक उन्नति की शुरुआत माना जाता है. इसी कारण यह समय दान, तप, साधना और शुभ कार्यों के लिए विशेष फलदायी माना जाता है.

Shaurya Punj
Shaurya Punj
रांची के सेंट जेवियर्स कॉलेज से मास कम्युनिकेशन में स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के बाद मैंने डिजिटल मीडिया में 14 वर्षों से अधिक समय तक काम करने का अनुभव हासिल किया है. धर्म और ज्योतिष मेरे प्रमुख विषय रहे हैं, जिन पर लेखन मेरी विशेषता है. हस्तरेखा शास्त्र, राशियों के स्वभाव और गुणों से जुड़ी सामग्री तैयार करने में मेरी सक्रिय भागीदारी रही है. इसके अतिरिक्त, एंटरटेनमेंट, लाइफस्टाइल और शिक्षा जैसे विषयों पर भी मैंने गहराई से काम किया है. 📩 संपर्क : [email protected]

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