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Spiritual Lesson: इस धरती पर ही है स्वर्ग और नरक, जानिए कैसे करें पहचान

Spiritual Lesson: अक्सर लोग स्वर्ग और नरक को किसी दूर की दुनिया समझते हैं, लेकिन संतों का कहना है कि यह अनुभव इस धरती पर ही होता है. हमारे विचार, शब्द और कर्म यह तय करते हैं कि हम किस अनुभव में रहते हैं स्वर्ग जैसा आनंद या नरक जैसी पीड़ा. आइए जानते हैं कैसे कर सकते हैं इसकी पहचान.

Spiritual Lesson: संत की वाणी किताब के अनुसार स्वर्ग और नरक केवल कहीं दूर की जगह नहीं, बल्कि हमारी धरती और जीवन का अनुभव है. यदि हम अपने विचार, शब्द और कर्म को ईश्वर के प्रेम और भक्ति से भर दें, तो हर पल हमें स्वर्ग जैसा सुख देगा. वहीं, लोभ, द्वेष और विषयों में डूबना नरक का अनुभव लाता है. संतों के उपदेशों को अपनाकर हम धरती पर ही स्वर्ग का आनंद पा सकते हैं.

स्वर्ग की पहचान

स्वर्ग वह है जहां ईश्वर और भक्ति की चर्चा होती है. जब हम अपने घर, समाज या मन में ईश्वर की याद, भक्ति, सत्संग और पवित्र विचार रखते हैं, तो हमारा अनुभव स्वर्ग जैसा सुखद होता है. संत कहते हैं: “जहां ईश्वर की चर्चा होती है, वही स्वर्ग है.” ऐसे स्थान और समय हमारे मन, शरीर और जीवन को शांति और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करते हैं.

नरक की पहचान

वहीं, नरक वह है जहां सांसारिक विषयों, लोभ, द्वेष और तर्क की अधिक चर्चा होती है. जब मन हर समय केवल विषयों, विवादों या नकारात्मक भावनाओं में उलझा रहता है, तो अनुभव नरक जैसा होता है. संतों के अनुसार “जहां विषयों की चर्चा होती है, वहीं नरक है.” यह संकेत हमें सिखाते हैं कि अपने विचारों और शब्दों पर नियंत्रण रखना कितना महत्वपूर्ण है.

भक्ति और प्रभु प्रेम का महत्व

सच्चा भक्ति मार्ग मनुष्य को स्वर्ग का अनुभव धरती पर ही कराता है. संत कहते हैं: “हे प्रभु! तेरे सिवा मेरा कोई नहीं, तू मेरा है तो सब कुछ मेरा है.” यह भाव हमारे जीवन में प्रभु प्रेम और शांति लाता है. जो व्यक्ति प्रभु के सिवा किसी और वस्तु या विषय में नहीं फँसता, वही सच्चा सत्पुरुष कहलाता है.

ईश्वर की कृपा और साधना

बिना ईश्वर की कृपा के प्रयास अधूरे रहते हैं. मनुष्य अपने अंदर प्रभु प्रेम का रत्न संजोए, तभी जीवन में स्थायी सुख और सफलता मिलती है. साधना, सत्संग, सत्य वाणी और ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले व्यक्ति की अंतरात्मा स्वर्ग के अनुभव से भर जाती है.

संतों के उपदेश से सीख

मनुष्य जब सांसारिक मोह और विषयों में डूबता है, तो प्रभु की साधना छोड़ देता है. सत्य, प्रिय वाणी, मौन और रसत्याग का पालन करने वाला व्यक्ति हर परिस्थिति में पवित्र रहता है. जीवन में स्वर्ग या नरक का अनुभव हमारे अपने कर्म और मानसिक स्थिति पर निर्भर करता है.

ये भी पढ़ें: Spiritual Guide: संत-वाणी के ये 5 दिव्य उपदेश बना सकते हैं आपके लाइफ को और बेहतर

JayshreeAnand
JayshreeAnand
कहानियों को पढ़ने और लिखने की रुचि ने मुझे पत्रकारिता की ओर प्रेरित किया. सीखने और समझने की इस यात्रा में मैं लगातार नए अनुभवों को अपनाते हुए खुद को बेहतर बनाने की कोशिश करती हूं. वर्तमान मे मैं धार्मिक और सामाजिक पहलुओं को नजदीक से समझने और लोगों तक पहुंचाने का प्रयास कर रही हूं.

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