Jitiya Vrat 2025: हिंदू धर्म में प्रत्येक व्रत और त्योहार का अपना एक विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है. जीवित्पुत्रिका व्रत, जिसे आम तौर पर जितिया व्रत के नाम से जाना जाता है, माताएं अपनी संतान की लंबी आयु, सुरक्षा और उत्तम स्वास्थ्य के लिए रखती हैं. इस कठिन निर्जला व्रत के दौरान, माताएं केवल अपने बच्चों के लिए उपवास ही नहीं करतीं, बल्कि विधि-विधान से यमराज सहित विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना भी करती हैं.
जितिया व्रत में क्यों होती है यमराज की पूजा
यह जानकर कई लोगों को आश्चर्य हो सकता है कि जितिया व्रत में यमराज की पूजा क्यों की जाती है, जबकि नरक चतुर्दशी पर उनका विशेष पूजन होता है. इसके पीछे एक गहरा धार्मिक कारण छिपा है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान यमराज को केवल मृत्यु के देवता ही नहीं, बल्कि प्राणों के रक्षक और जीवन-मृत्यु के नियंत्रक भी माना गया है. जब कोई मां अपने बच्चे की दीर्घायु और सुरक्षा की कामना करती है, तो वह सीधे जीवन के स्वामी यमराज से ही प्रार्थना करती है. इसी वजह से जितिया व्रत में यमराज का आह्वान कर उनसे संतान की रक्षा का आशीर्वाद मांगा जाता है.
यमराज और नरक चतुर्दशी का धार्मिक संबंध
इसके अलावा, यमराज की पूजा का संबंध नरक चतुर्दशी से भी जुड़ता है. ऐसा माना जाता है कि नरक चतुर्दशी से पहले यमराज का स्मरण करने से मृत्यु का भय दूर होता है और जीवन में अकाल मृत्यु की आशंका से मुक्ति मिलती है. यह एक ऐसा धार्मिक जुड़ाव है जो दोनों पर्वों को एक ही सूत्र में पिरोता है. नरक चतुर्दशी, जिसे छोटी दिवाली या रूप चौदस के नाम से भी जानते हैं, पूरी तरह से यमराज की आराधना को समर्पित है. इस दिन यम स्नान और दीपदान का विशेष महत्व होता है. मान्यता है कि इस दिन की गई पूजा से व्यक्ति के पापों का नाश होता है और उसे नरक जाने के भय से मुक्ति मिलती है.
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जीवन की अमूल्यता और धर्म का संदेश
ठीक उसी प्रकार, जितिया व्रत में भी माताएं यमराज को प्रसन्न कर अपने पुत्रों की रक्षा का वरदान प्राप्त करती हैं. इस तरह, एक ओर जितिया व्रत में संतान की सुरक्षा के लिए यमराज का पूजन होता है, वहीं दूसरी ओर नरक चतुर्दशी पर व्यक्ति स्वयं के पापों से मुक्ति और जीवन में सुख-शांति की कामना करता है. दोनों ही पर्व हमें जीवन की अमूल्यता और धर्म के महत्व का ज्ञान देते हैं.

