Ganga Dussehra 2025: गंगा दशहरा का पर्व हिंदू धर्म में आस्था, पवित्रता और पाप मुक्ति का प्रतीक माना जाता है. यह दिन मां गंगा के धरती पर अवतरण की स्मृति में मनाया जाता है. मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान और पुण्य कर्मों से जीवन के दस प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं और मनुष्य मोक्ष की ओर अग्रसर होता है. आइए जानते हैं इस खास दिन की तिथि, महत्व और वह कार्य जो इस दिन ज़रूर करने चाहिए.
Ganga Dussehra 2025 कब मनाया जाएगा?
ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा मनाया जाता है. पंचांग के अनुसार, इस बार दशमी तिथि का प्रारंभ 4 जून 2025 की रात 11:54 बजे होगा और समापन 6 जून की रात 2:15 बजे होगा. गंगा दशहरा का मुख्य पर्व 5 जून 2025 को मनाया जाएगा. इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में सुबह 4:07 बजे तक स्नान-दान का सबसे शुभ समय रहेगा. साथ ही, सुबह 9:14 बजे तक सिद्धि योग भी रहेगा, जो पुण्य प्राप्ति के लिए बेहद लाभकारी माना गया है.
गंगा दशहरा पर गंगा स्नान से मिलती है 10 पापों से मुक्ति
शास्त्रों में बताया गया है कि गंगा दशहरा के दिन गंगा नदी में डुबकी लगाने मात्र से व्यक्ति के 10 प्रकार के पापों का नाश होता है. ये दस पाप हैं:
- निषिद्ध हिंसा करना.
- किसी के धन को हड़पने का विचार करना.
- चोरी करना या बिना पूछे किसी की वस्तु ले लेना.
- व्यर्थ के विवाद में जिद करना.
- कटु वचन बोलना.
- पराई स्त्री से संबंध बनाना.
- झूठ बोलना.
- चुगली करना.
- किसी का बुरा सोचना.
- दूसरों के लिए अपशब्द या अपशकुन बोलना
गंगा स्नान के साथ यदि व्यक्ति इन पापों से मन, वचन और कर्म से दूर रहने का संकल्प लेता है, तो उसे मोक्ष की ओर बढ़ने का अवसर प्राप्त होता है.
गंगा दशहरा पर इन बातों का रखें ध्यान
गंगा दशहरा के दिन कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है ताकि गंगा मां की कृपा पूर्ण रूप से प्राप्त हो सके:
- स्नान से पहले श्रद्धा और भक्ति भाव से मां गंगा का ध्यान करें.
- स्नान के समय पवित्रता बनाए रखें और कोई अशुद्ध वस्तु जल में न डालें.
- हवन-पूजन की बची सामग्री या अपशिष्ट गंगा नदी में न डालें.
- इस दिन गंगा में अस्थियां विसर्जित करने से बचें.
- स्नान के बाद योग्य ब्राह्मणों या जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र या दक्षिणा का दान करें.
गंगा दशहरा का धार्मिक महत्व
गंगा दशहरा केवल गंगा स्नान का पर्व नहीं, बल्कि यह धरती पर गंगा मैया के अवतरण की स्मृति है. मान्यता है कि राजा भागीरथ की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर गंगा जी स्वर्ग से धरती पर उतरीं. लेकिन पृथ्वी उनके वेग को सहन नहीं कर सकती थी, इसलिए भगवान शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में समाहित किया और फिर धीरे-धीरे गंगा को मुक्त किया. इस दिन भगवान शिव और मां गंगा, दोनों की पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है. यह पर्व बताता है कि सच्ची श्रद्धा और प्रयास से ईश्वरीय कृपा भी संभव है.
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