Dussehra 2025: शारदीय नवरात्र के नौ दिन पूरे होने के बाद दसवें दिन विजयादशमी यानी दशहरा का पर्व मनाया जाता है. इस दिन भगवान राम की पूजा होती है और रावण के पुतले जलाए जाते हैं. मान्यता है कि इसी दिन भगवान राम ने रावण का वध किया था और धर्म की स्थापना की थी. तभी से यह त्योहार अच्छाई की बुराई पर जीत के प्रतीक के रूप में हर साल अश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है. इस मौके पर जगह-जगह रावण दहन का आयोजन किया जाता है और लोग बड़ी धूमधाम से दशहरा मनाते हैं.
भगवान श्रीराम से जुड़ी है कहानी
दशहरा मनाने के पीछे सबसे बड़ी कहानी भगवान श्रीराम और रावण से जुड़ी है. कहा जाता है कि जब राम 14 साल का वनवास काट रहे थे, तभी लंका के राजा रावण ने माता सीता का हरण कर लिया था. सीता जी की खोज के लिए प्रभु श्रीराम ने हनुमान जी को भेजा. हनुमान जी ने लंका जाकर रावण को समझाया कि वह सीता जी को आदर सहित वापस लौटा दे, लेकिन रावण ने उनकी बात अनसुनी कर दी. इसके बाद भगवान राम ने नौ दिन तक मां दुर्गा की आराधना की और दशमी तिथि के दिन रावण का वध कर विजय प्राप्त की. यही कारण है कि इस पर्व को विजयादशमी कहा जाता है. यह त्योहार इस संदेश का प्रतीक है कि बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंत में अच्छाई ही जीतती है. इसी दिन रावण के साथ उसके भाई कुंभकरण और पुत्र मेघनाद के पुतलों का दहन भी किया जाता है.
इस दिन मां दुर्गा ने किया था महिषासुर का वध
दशहरा मनाने से जुड़ी एक और पौराणिक कथा मां दुर्गा और महिषासुर से जुड़ी है. मान्यता है कि जब महिषासुर और उसकी सेना ने देवताओं को परेशान करना शुरू किया, तब मां दुर्गा ने चंडी का रूप धारण कर उनसे युद्ध किया. यह युद्ध लगातार नौ दिनों तक चला और दसवें दिन मां दुर्गा ने महिषासुर का वध कर देवताओं को संकट से मुक्त कराया. तभी से दशमी तिथि को विजयादशमी के रूप में मनाने की परंपरा चली आ रही है. इसी दिन मां दुर्गा की प्रतिमाओं का विसर्जन भी किया जाता है.
बुराई पर अच्छाई की जीत
दशहरा इस बात का प्रतीक है कि चाहे बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंत में जीत हमेशा अच्छाई की ही होती है. भगवान श्रीराम द्वारा रावण का वध और मां दुर्गा द्वारा महिषासुर का संहार इसी सत्य को दर्शाते हैं. यह पर्व हमें सिखाता है कि धर्म, सत्य और न्याय की राह कठिन हो सकती है, लेकिन अंत में विजय उसी की होती है जो सही रास्ते चलता है.
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