हम शरीर के प्रभाव में आकर आत्मा के जन्म-मरण आदि का इतिहास खोजते हैं. आत्मा शरीर की तरह कभी वृद्ध नहीं होती. अत: तथाकथित वृद्ध पुरुष भी अपने में बाल्यकाल या युवावस्था जैसी अनुभूति पाता है. शरीर के परिवर्तनों का आत्मा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता. आत्मा वृक्ष या किसी भौतिक वस्तु की तरह क्षीण नहीं होती. आत्मा की कोई उपसृष्टि नहीं होती. शरीर की उपसृष्टि संताने हैं.
वे भी व्यष्टि की आत्माएं हैं और शरीर के कारण वे किसी न किसी की संताने प्रतीत होते हैं. शरीर की वृद्धि आत्मा की उपस्थिति के कारण होती है. किंतु आत्मा की न तो कोई उपवृद्धि है, न ही उसमें कोई परिवर्तन होता है. अत: आत्मा शरीर के छह प्रकार के परिवर्तनों से मुक्त है. आत्मा ज्ञान या चेतना से सदैव पूर्ण रहता है. चेतना ही आत्मा का लक्षण है. यदि कोई हृदयस्थ आत्मा नहीं खोज पाता, तब भी वह आत्मा की उपस्थिति को चेतना की उपस्थिति से जान सकता है.
कभी-कभी हम बादलों के कारण सूर्य नहीं देख पाते किंतु सूर्य का प्रकाश सदैव विद्यमान रहता है. प्रात: जब सूर्य का प्रकाश दिखता है, हम समझ जाते हैं कि सूर्य आकाश में है. इसी प्रकार चूंकि शरीरों में कुछ न कुछ चेतना रहती है, अत: हम आत्मा की उपस्थिति जान लेते है.
– स्वामी प्रभुपाद