जब आदमी को गुस्सा आता है, तब वह आवेशयुक्त बन जाता है. शांत स्वभाववाला आदमी जितना अच्छा लगता है, बात-बात में आक्रुष्ट होनेवाला और अंट-संट बोलनेवाला व्यक्ति उतना ही अशोभनीय लगता है. उसके साथ रहना भी अच्छा नहीं लगता. आदमी इस गुस्से की बीमारी से मुक्त बने. उपशम के अभ्यास के द्वारा, क्षमा के अभ्यास के द्वारा और सहिष्णुता के अभ्यास के द्वारा आदमी क्रोध पर नियंत्रण करे. भगवान महावीर के जीवन प्रसंगों के साथ चंडकौशिक सर्प का भी प्रसंग आता है.
चंडकौशिक सर्प पूर्वभव में संन्यासी के रूप में था. आक्रोश के कारण वह मनुष्य से सर्प बन गया. सर्प योनी में उसने अंतिम समय में उपशम का अभ्यास किया, क्षमा धारण की और फलस्वरूप वह सर्प योनी से स्वर्ग में चला गया. इस प्रसंग से यह देखा जा सकता है कि गुस्से के कारण आदमी की गति कितनी खराब हो जाती है. अनेक लोग ऐसे हैं, जो गुस्सा करना नहीं चाहते, किंतु वह बिना बुलाये आ जाता है.
गुस्से पर नियंत्रण न होने के कारण छोटी-छोटी बात में आदमी को कई बार गुस्सा आ जाता है और वह दुखी बन जाता है. जो व्यक्ति शांत स्वभाव वाला है, उसके साथ अभद्र व्यवहार करने पर भी वह अपनी शांति को भंग नहीं करता. जो व्यक्ति गुस्से की कमजोरी से आहत है, ग्रस्त है, उसे उपशम कषाय का कुछ अभ्यास करना चाहिए. यानी सबसे पहले मन में संकल्प करें कि मुझे गुस्से से मुक्त होना है और फिर ध्यान का अभ्यास करें. इस तरह आप गुस्से पर नियंत्रण पा सकेंगे.
आचार्य महाश्रमण