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लोक आस्था का महापर्व छठ : समाज को संस्कारित करती छठ पूजा

मृदुला सिन्हा पूर्व राज्यपाल, गोवा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष ‘षष्ठी और सप्तमी तिथि को शाम और सुबह को फलों और पकवानों के साथ सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है.सभी लोग जल घाट पर एकत्रित होते हैं. व्रती महिलाएं और उपस्थित जनसमूह डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं. सूर्य का आशीर्वाद लेकर घर […]

मृदुला सिन्हा
पूर्व राज्यपाल, गोवा
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष ‘षष्ठी और सप्तमी तिथि को शाम और सुबह को फलों और पकवानों के साथ सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है.सभी लोग जल घाट पर एकत्रित होते हैं. व्रती महिलाएं और उपस्थित जनसमूह डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं. सूर्य का आशीर्वाद लेकर घर वापस लौटते हैं. इन गतिविधियों का वर्णन करने पर ये बहुत छोटी सी बात लगती है. परंतु चार दिनों की इन गतिविधियों पर ध्यान देने से ऐसा लगता है कि संपूर्ण मानव समाज भारतीय संस्कृति के सूत्रों को उन चार दिनों में अपने जीवन में उतार लेता है.
छठ व्रत करना अर्थात चार दिनों का तप करना. बहुत ही कठिन नियम के साथ व्रत को धारण कर संपन्न करना पड़ता है. और हमारी संस्कृति और संस्कार को बचाये रखने के लिए जीवन में कुछ आवश्यक तत्त्वों का निर्माण किया गया है. छठ पर्व में उन्हीं तत्त्वों को सूर्य से धारण करवाया जाता है.
जैसे –
‘‘आज छठी मैया गौने अइली सांझ भइल छठी रहब रउरा कहवां.’’
‘‘रहे के रहबो नवीन बाबू के अंगना, गाय के गोबर नीपल
हई जहंमा, गाय के दूध स्नान भेल उहमां, गाय के घीव हवन
भेल उहमां, पीयर धोती पहिरन भेल उहमां’’.
अर्थात जो जीवन को स्वस्थ रखने के लिए उपाय हैं, जिनका सनातन काल से आज तक ऋषि-मुनियों से लेकर हमारे सभी पंडितों और चिकित्सकों ने प्रचार-प्रसार कर रखा है. ये सभी जीवन दायिनी हैं. सूर्य को भी यही सब पसंद है. और सूर्य से ही इनका भी जीवन है. दोनों के बीच अटूट संबंध है.
इसलिए इन चीजों के महत्व को भुलाया नहीं जाना चाहिए. समाज को स्मरण दिलाते रहना है. इसलिए गाय, गोबर, गंगाजल, घी, दूध, इन सभी चीजों का स्मरण दिलाया जाता है कि स्वस्थ जीवन जीना है तो जो सूर्य को पसंद है उसे धारण करके ही जीवन जीया जा सकता है.
भारतीय जीवन में अपनी संस्कृति को स्मरण करने का भिन्न-भिन्न तरीका है. उसे धारण करने का भिन्न-भिन्न अवसर है. उसमें सूर्य की महत्वपूर्ण भागीदारी रहती है. एक विचित्र बात जो बचपन से सुन रखी है. एक गीत के माध्यम से महिलाएं सूर्य की अाराधना करती हैं. सूर्य प्रसन्न होकर कहते हैं –
‘‘मांगू, मांगू तिरिया, जेहो किछु मांगव, जे किछु हृदय में समाय.’’
व्रती महिला मांग करती है
‘‘अगला हल दुनू बरदा मांगीले, पीछला हल हलवाह, पैर धोबन के चेरी मांगीले, दूध पीअन धेनू गाय, सभा बैठन के बेटा मांगीले नूपुर शब्द पुतोह. बायना बांटेला बेटी मांगीले, पढ़ल पंडित दामाद. ’’
सूर्य मानो बड़े ध्यान से सुनते हैं. स्त्री की मांगों की समीक्षा करते हैं. और स्त्री जाति को व्रती महिला के माध्यम से प्रमाणपत्र देते हैं –
‘‘ऐहो जे तिरिया, सभे गुण आगर, सब कुछ मांगे समतुल हे.’’
प्रकृति में सूर्य और पृथ्वी, स्त्री और पुरुष जीवन में सभी जगह संतुलन की आवश्यकता है. जो व्यवस्था है उसमें दो घटक हैं, उन सब जगह पर संतुलन की आवश्यकता है. जहां रोशनी पहुंचेगी, वहां आनंद ही आनंद होगा. सूर्य का कथन है कि स्त्री सबसे बड़ी संतुलन करने वाली है. उसके कारण ही घर का आर्थिक आधार संतुलित रहता है. वेद और पुराणों में भी इसका वर्णन है. लेकिन यह सूत्र सूर्य ने दिया है. सूर्य ने स्त्री
जीवन की परिभाषा नहीं, समीक्षा की है. सत्य है कि यह लोकमानस का भाव है. लोकमानस ने सूर्य के मुख से व्रती महिलाओं की यह समीक्षा करवायी है, यह प्रमाणपत्र दिया है. निश्चय ही इसे सुनकर स्त्रियों के मन में अहंकार का नहीं, गर्व का भाव आता होगा.
यह मैंने अपनी आंखों से देखा है.अपने जीवन में ऐसी महिलाओं को देखा है जो गीत गाती हुई
मानो मनन करती हैं, धारण करती हैं और तदनुकूल उसे अपने व्यवहार में लाती रहती है.सप्तमी की सुबह पानी में खड़ी सूर्य के आगमन में प्रतीक्षारत व्रती महिला सोचती है कि सूर्य को आज देर हो गयी. यह तो उसके इंतजारी मानस का भ्रम है. वह सूर्य से देर से आने की शिकायत करती है. सूर्यदेव कहते हैं कि रास्ते में एक रोगी, एक निर्धन, एक नि:संतान स्त्री मिल गयी थी. उन्हें निर्मल काया, अन्न-धन और संतान देने में देर हो गयी.
हम सौभाग्यशाली हैं कि हमारे यहां सूरज उगता, ठहरता और हमें धन-धान्य से भरता है. इसलिए महिलाएं उससे बिना संकोच मांगती हैं. सूर्य देते भी हैं. सूर्य हमें जीवन और भक्ति ही नहीं, संस्कार भी दे जाते हैं, तभी तो सूर्य महान है. एक सबसे बड़ा संस्कार जो सूर्य पूजा के समय दिखता है वह है समाज को एक सूत्र में बांधना. सब एक हो जाते हैं.
सभी एक मन से सूर्य की अराधना करते हैं. यह एकता सूर्य के कारण ही दिखती है, जो समाज जीवन के लिए बहुत आवश्यक है. न जाने कब से बिहार और बिहार के साथ अब तो अन्य प्रदेशों के लोग भी सूर्य पूजा के आदर्श को अपने जीवन में लाने को उत्सुक दिखते हैं. इसलिए तो भारतीय सामाजिक जीवन थोड़े बहुत भिन्न-भिन्न होते हुए भी एक मन दिखता है.

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