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नवरात्रि: आदिशक्ति के इन नौ मंत्रों का है विशेष महत्व, विपत्त‍ि नाश सहित रोग नाश के लिए करें इनका जाप

श्री दुर्गा सप्तशती में कुल 13 अध्याय हैं. हर अध्याय का अपना अलग महत्व है. पूर्ण समर्पण एवं भक्तिभाव से इसका पाठ किया जाये, तो मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. ‘देवी महात्म्य’ में केवल शामिल हरेक मंत्र का अपना विशेष महत्व है. इसमें केवल व्यक्तिगत कल्याण सिद्धि के मंत्र ही शामिल नहीं है, बल्कि […]

श्री दुर्गा सप्तशती में कुल 13 अध्याय हैं. हर अध्याय का अपना अलग महत्व है. पूर्ण समर्पण एवं भक्तिभाव से इसका पाठ किया जाये, तो मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. ‘देवी महात्म्य’ में केवल शामिल हरेक मंत्र का अपना विशेष महत्व है. इसमें केवल व्यक्तिगत कल्याण सिद्धि के मंत्र ही शामिल नहीं है, बल्कि इनमें से कई मंत्र सामूहिक विश्व कल्याण सिद्धि से भी संबंधित हैं. जानते हैं उनके बारे में…

विश्व की रक्षा के लिए –

या श्री: स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मी

पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धि: ।

श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा तां त्वां

नता: स्म परिपालय देवि विश्वम्।।

अर्थात- जो पुण्यात्माओं के घरों में स्वयं ही लक्ष्मीरूप से, पापियों के यहां दरिद्रता रूप से, शुद्ध अन्त:करणवाले पुरुषों के हृदय में बुद्धिरूप से, सत्पुरुषों में श्रद्धा रूप से तथा कुलीन मनुष्यों में लज्जा रूप से निवास करती हैं, उन आप भगवती दुर्गा को हम नमस्कार करते हैं. हे देवि! आप संपूर्ण विश्व का पालन करें.

विपत्ति नाश के लिए –

शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे ।

सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोSस्तु ते ।।

अर्थात- शरण में आये हुए दीनों (गरीबों) एवं पीड़ितों की रक्षा में संलग्न रहनेवाली तथा सबकी पीड़ा दूर करनेवाली हे नारायणी देवी! तुम्हें नमस्कार है.

भय नाश के लिए –

सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते ।

भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोSस्तु ते ।।

अर्थात- सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी तथा सब प्रकार की शक्तियों से संपन्न दिव्यरूपा दुर्गे देवि! सब भयों से हमारी रक्षा करो, तुम्हें नमस्कार है.

रोग नाश के लिए –

रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा

तु कामान् सकलानभीष्टान् ।

त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां

त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति ।।

अर्थात- हे देवि! तुम प्रसन्न होने पर सब रोगों का नाश कर देती हो और कुपित होने पर मनोवांछित सभी कामनाओं का नाश कर देती हो. जो लोग तुम्हारी शरण में जा चुके हैं, उन पर कभी विपत्ति तो आती ही नहीं. तुम्हारी शरण में गये हुए मनुष्य दूसरों को शरण देनेवाले हो जाते हैं.

रक्षा प्राप्ति के लिए-

शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके ।

घण्टास्वनेन न: पाहि चापज्यानि:स्वनेन च ।।

अर्थात- हे देवी! आप शूल से हमारी रक्षा करें. हे अम्बिके! आप खड्ग से हमारी रक्षा करें तथा घण्टा की ध्वनि और धनुष की टंकार से भी हमलोगों की रक्षा करें.

बाधा शांति के लिए –

सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि ।

एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम् ।।

अर्थात- हे सर्वेश्वरि! तुम इसी प्रकार तीनों लोकों की समस्त बाधाओं को शांत करो और हमारे शत्रुओं का नाश करती रहो.

दुख-दारिद्रय के नाश हेतु-

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो:

स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।

दारिद्रयदु:खभयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदाSर्द्रचिता ।।

अर्थात- हे दुर्गे! आप स्मरण करने पर सब प्राणियों का भय हर लेती हैं और स्वस्थ मनुष्यों द्वारा चिंतन करने पर उन्हें परम कल्याणमयी बुद्धि प्रदान करती हैं. दु:ख, दरिद्रता और भय को हरनेवाली हे देवि, आपके सिवा दूसरी कौन है, जिसका चित्त सबका उपकार करने के लिए सदा ही दयार्द्र रहता है.

आरोग्य व सौभाग्य प्राप्ति के लिए-

देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषे जहि ।।

अर्थात- हे देवि! हमें सौभाग्य और आरोग्य दो. परम सुख दो, रूप दो, जय दो, यश दो और हमारे काम-क्रोध आदि समस्त शत्रुओं का नाश करो.

सब प्रकार के कल्याण के लिए-

सर्वमंगलमंगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।

शरण्ये त्र्यंबके गौरि नारायणि नमोSस्तु ते ।।

अर्थात- हे नारायणी! तुम सब प्रकार का मंगल प्रदान करनेवाली मंगलमयी हो. कल्याणदायिनी शिवा हो. सब पुरुषार्थों को सिद्ध करनेवाली शरणागतवत्सला, तीन नेत्रोंवाली एवं गौरी हो. तुम्हें नमस्कार है.

यह भी जानिए…

-श्रीमार्कण्डेयपुराण के अंतर्गत देवी महात्म्य में ‘श्लोक’, ‘अर्द्धश्लोक’ और ‘उवाच्’ सहित कुल 700 मंत्र हैं.

-जो लोग जिस भाव एवं कामना से देवी की स्तुति करते हैं, उन्हें उसी भाव एवं कामना के अनुरूप निश्चय ही फल की सिद्धि होती है.

-दुर्गा सप्तशती में तीन चरित्र यानी तीन खंड हैं- प्रथम चरित्र, मध्य चरित्र, उत्तम चरित्र. प्रथम चरित्र में पहला अध्याय आता है. मध्यम चरित्र में दूसरे से चौथा अध्याय और उत्तम चरित्र में पांचवें से तेरहवां अध्याय आता है.

-यदि साधक किसी कारणवश संपूर्ण पाठ न कर सकें, तो किसी एक चरित्र का पूरा पाठ कर सकते हैं. यह भी संपूर्ण मनोरथों को पूरा करनेवाला एवं फलदायी है.

-सिद्ध कुंजिका स्तोत्र को संपूर्ण दुर्गा सप्तशती माना गया है. यदि आप संपूर्ण सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ भी नहीं कर पाते हैं, तो सात बार ‘ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ओम ग्लौं हुं क्लीं जूं स: ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा’ मंत्र का जाप करें. इससे संपूर्ण दुर्गा सप्तशती का लाभ मिलता है. महादेवी और महादेव दोनों की ही आराधना हो जाती है.

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