पंडित श्रीपति त्रिपाठी
संतान की दीघार्यु और मंगलकामना के लिए माताएं रविवार को जिउतिया (जीवित्पुत्रिका व्रत) का व्रत रखेंगी. इसकी शुरुआत 21 सितंबर को नहाय-खाय से होगी. आचार्य श्रीपति त्रिपाठी ने बताया कि महावीर पंचांग के मुताबिक 22 को उपवास व्रत के बाद 23 सितंबर को सूर्योदय के बाद व्रत का पारण किया जा सकेगा. जीवत्पिुत्रिका कथा में भी उदया तिथि में अष्टमी व्रत करने की बात कही गयी है.
बनेगा नोन्ही का साग और मडुआ की रोटी
आचार्य त्रिपाठी ने बताया कि परंपरा के अनुसार शनिवार को व्रती स्नान कर पहले दिवंगत महिला पितरों (पितराइन) और जीमूतवाहन को सरसों का तेल, खल्ली अर्पित कर जलदान करेंगी. इसके बाद सतपुतिया, नोन्ही साग, मछली और मड़ुआ की रोटी खायी जायेगी. अगले दिन सूर्योदय से पहले ओटगन करने के बाद व्रती जिउतिया का निर्जला व्रत शुरू करेंगी.
नहाय-खाय के आहार में पौष्टिकता : पंडित त्रिपाठी ने बताया कि जिउतिया में नहाय-खाय और पारण में व्रती जो आहार लेती हैं, वह पौष्टिकता से भरपूर होता है. अगर इन्हें सही तरीके से इस्तेमाल में लाया जाये, तो पौष्टिकता बरकारार रहेगी. नोन्ही साग में प्रचुर मात्रा में फाइबर और आयरन होता है. लेकिन, इसे अधिक पकाने पर इसके पौष्टिक तत्व नष्ट हो जाते हैं. इसलिए इसे धीमी आंच पर कम पकाना चाहिए. जिउतिया की रोटी भी खायी जाती है. मडुआ में भरपूर मात्रा में कैल्शियम, फाइबर और खनिज होता है, जो शरीर के लिए आवश्यक तत्व है.
व्रत से पहले भरपूर पानी पीएं व्रती
निर्जला व्रत से पहले व्रतियों को भरपूर मात्रा में पानी व जूस पीना चाहिए, ताकि डिहाइड्रेशन का खतरा न रहे. पारण दूध, शर्बत, खीरा और पानीवाले फलों से करना चाहिए. गंभीर रोग से ग्रस्त, डायबिटिक या दिल की मरीज, बुजुर्ग और गर्भवती महिलाओं को निर्जला व्रत नहीं करना चाहिए. जिउतिया के प्रसाद में खीरा, गुड़, केराव के प्रसाद के साथ जिउतिया सूत्र भी चढ़ाया जाता है. मान्यता है कि कुश का जीमूतवाहन बनाकर, उसे पानी में डालकर, बांस के पत्ते, चंदन, फूल से पूजा करने पर वंशवृद्धि होती है.