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विश्वकर्मा जयंती आज : मान्यता है कि इन मंदिरों का निर्माण खुद भगवान विश्वकर्मा ने किया
लोगों की मान्यता है कि एक रात में बने मंदिर, स्थापत्य की दृष्टि से भी हैं अत्यंत महत्वपूर्ण जिन भगवान विश्वकर्मा की चर्चा ऋग्वेद में है और जिन्हें आदि शिल्पी माना जाता है, उनके विषय में यह मान्यता है कि चार युगों में उन्होंने कई नगरों, भवनों और मंदिरों का निर्माण किया. सतयुग में स्वर्गलोक, […]
लोगों की मान्यता है कि एक रात में बने मंदिर, स्थापत्य की दृष्टि से भी हैं अत्यंत महत्वपूर्ण
जिन भगवान विश्वकर्मा की चर्चा ऋग्वेद में है और जिन्हें आदि शिल्पी माना जाता है, उनके विषय में यह मान्यता है कि चार युगों में उन्होंने कई नगरों, भवनों और मंदिरों का निर्माण किया. सतयुग में स्वर्गलोक, त्रेतायुग में लंका, द्वापर में द्वारका और कलियुग के आरंभ में हस्तिनापुर व इन्द्रप्रस्थ का निर्माण उनके ही हाथों हुआ. वर्तमान में देश में अवस्थित कई मंदिरों के विषय में यह मान्यता है कि उनका निर्माण स्वयं विश्वकर्मा ने किया.
सूर्य मंदिर
औरंगाबाद
बिहार के औरंगाबाद जिले के देव स्थित प्राचीन सूर्य मंदिर अनोखा है. कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण त्रेता युग में स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने एक रात में किया था. यह देश का एकमात्र ऐसा सूर्य मंदिर है, जिसका दरवाजा पश्चिम की ओर है. हालांकि, इस मंदिर के निर्माण-काल का स्पष्ट कोई प्रमाण नहीं है, किंतु माना जाता है कि वर्षों पूर्व यह बना था. यह करीब सौ फीट ऊंचा है.
गोविंद देवजी
वृंदावन
भगवान श्रीकृष्ण की लीलास्थली वृंदावन में एक प्राचीन मंदिर है- गोविंद देव जी मंदिर है. मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण एक रात में हुआ है. पहली नजर में मंदिर अधूरा दिखता है. कहते हैं, इसका निर्माण विश्वकर्मा ने किया. निर्माण कार्य पूरा होने से पहले ही सुबह हो गयी और उन्होंने निर्माण कार्य रोक दिया. कहते हैं कि मुगलों के समय में इस मंदिर की रोशनी आगरा तक दिखती थी.
हथिया देवाल
उत्तराखंड
उत्तराखंड स्थित हथिया देवाल भगवान शिव का एक अति प्राचीन मंदिर है. इस मंदिर को भगवान विश्वकर्मा द्वारा निर्मित माना जाता है. हालांकि, यहां शिवलिंग की पूजा नहीं की जाती है. दरअसल, यहां शिवलिंग का अरघा विपरीत दिशा में है. विश्वकर्मा ने एक ही हाथ से मंदिर और आरघा का निर्माण किया था. एक रात में निर्माण कार्य पूरा करने की शीघ्रता में यह भूल हुई, ऐसी लोक मान्यता है.
ककनमठ
मध्यप्रदेश
मध्यप्रदेश के मुरैना जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर एक प्राचीन शिव मंदिर है ककनमठ. इस मंदिर के निर्माण में न तो गारे प्रयोग हुआ है, न ही चूने का. पूरा मंदिर केवल पत्थरों पर टिका है. फिर भी इसका संतुलित ऐसा है कि आंधी-तूफान का भी इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता. इस प्राचीन मंदिर के विषय में भी यही मान्यता है कि इसे स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने बनाया.
भोजेश्वर
मध्य प्रदेश
मप्र के रायसेन जिले में है भोलेश्वर मंदिर. इसे उत्तर भारत का सोमनाथ मंदिर भी कहा जाता है. इस मंदिर को महाभारत कालीन माना जाता है. कहा जाता है कि पांडवों ने माता कुंती के लिए इस मंदिर के निर्माण के लिए भगवान विश्वकर्मा से प्रार्थना की थी और विश्वकर्मा ने एक रात में इसे तैयार कर दिया. इस मंदिर में विशाल शिवलिंग हैं, जो एक ही पत्थर से बना हुआ है.
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