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जन्माष्टमी विशेष : गीता के ज्ञान से समृद्ध हो जायेगा जीवन
डॉ जंग बहादुर पांडेय, हिंदी विभाग, रांची विवि, रांची भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में अर्जुन से अपने अवतरित होने का स्पष्ट कारण एवं उद्देश्य बताया है- यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत । अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥ परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥ अर्थात् हे भरतवंशी अर्जुन जब-जब धर्म का […]
डॉ जंग बहादुर पांडेय, हिंदी विभाग, रांची विवि, रांची
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में अर्जुन से अपने अवतरित होने का स्पष्ट कारण एवं उद्देश्य बताया है-
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥
अर्थात् हे भरतवंशी अर्जुन जब-जब धर्म का नाश और अधर्म की उन्नति होती है, तब-तब मैं अपने आप को प्रकट करता हूं और सज्जनों की रक्षा व पापियों के नाश के लिए युग-युग में जन्म लेता हूं.
महाकवि गोस्वामी तुलसीदास ने भी अपने रामचरितमानस में राम के अवतार का यही कारण और उद्देश्य बताया था-
जब जब होई धरम के हानी। बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी।
करहि अनीति जाई नहीं बरनी। सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी।
तब तब प्रभु धरि विविध शरीरा। हरहिं कृपा निधि सज्जन पीरा।
योगीश्वर कृष्ण ने अपने जन्म के इस उद्देश्य को अपने नाना कृत्यों द्वारा पूरा किया. उन्होंने कंस जैसे दुराचारी एवं अत्याचारी मामा का नाश किया. कपटी पुतना का वध किया. ऐसे कई पापियों एवं अधर्मियों का सत्यानाश कर उन्होंने धर्म की स्थापना की और जगत में संदेश दिया कि ‘यतो धर्मस्ततो जयः’ अर्थात जहां धर्म होगा, वहीं विजय होगी. आज के परिवेश में भगवान श्रीकृष्ण के इस मंत्र की निश्चय ही प्रासंगिकता है.
महाभारत के युद्ध में श्रीकृष्ण अर्जुन के सारथी बने. बंधु-बांधवों के मोह के कारण कर्तव्य पथ से विचलित अर्जुन को भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में जो उपदेश दिया, वह ‘भगवत गीता’ नाम से विश्वविख्यात है. गीता संपूर्ण महाभारत एवं सारी उपनिषदों के संदेशों एवं संकल्पों का द्राक्षापाक (छुहाड़ा) है. कहा गया है-
सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपालनन्दनः।
पार्थो वत्सः सुधीर्भोक्ता दुग्धं गीतामृतं महत्।।
अर्थात् समस्त उपनिषद गाय के समान हैं, भगवान श्रीकृष्ण दुहने वाले हैं, पार्थ बछड़ा है, गीता रूपी ज्ञानामृत ही दूध है. सुधीजन जिज्ञासु (ज्ञान पिपासु) उसके भोक्ता हैं.
गीता ज्ञान का वह समुद्र है, जिसमें जितने भी गोते मारो, उसकी थाह नहीं मिलती. जितने भाष्य गीता पर लिखे गये हैं, उतने किसी अन्य ग्रंथ पर नहीं. महाभारत में अनेक गीताएं हैं यथा- अवधूत गीता, ईश्वर गीता, शिव गीता आदि, किंतु अर्जुन को संबोधित की गयी श्रीमद्भगवत गीता तो सारी गीताओं की सुमेरू मणि है.
गीता महाभारत के भीष्म पर्व में विद्यमान है. इसमें 18 अध्याय हैं और 700 श्लोक हैं. सचमुच जब हमें भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गीता प्राप्त है, तो अन्य शास्त्रों के जंगल में भटकने की क्या आवश्यकता है? यह तो स्वयं पद्मनाभ प्रभु द्वारा अर्जुन के माध्यम से सारे संसार को दिया गया दिव्य महाप्रसाद है.
भारतवर्ष में जितने भी प्रमुख दार्शनिक हुए, सबने अपने दर्शन के मेरुदंड के रूप में गीता को स्वीकार किया. गीता ज्ञान का ऐसा अथाह सागर है, जिसके पास सामर्थ्य का जितना बड़ा गागर है, वह उतना विचार नीर भर लेगा. आज की कठिन परिस्थिति में यदि हम गीता के उपदेशों का मनन एवं उन पर अमल करें, तो हमारा व्यक्तित्व एवं राष्ट्रीय जीवन निश्चय ही समृद्ध हो जायेगा.
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