Jnanpith Award : वरिष्ठ हिंदी कवि और कहानीकार विनोद कुमार शुक्ल को इस वर्ष भारत के सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार के लिए चुना गया है. इसकी घोषणा नयी दिल्ली में ज्ञानपीठ चयन समिति ने की है. 88 वर्षीय कवि और कथाकार विनोद कुमार शुक्ल 59वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजे जायेंगे. यह पुरस्कार प्राप्त करने वाले वह हिंदी साहित्य के 12वें हिंदी लेखक हैं. नौकर की कमीज, दीवार में एक खिड़की रहती थी, खिलेगा तो देखेंगे उपन्यासों और कविता से लंबी कविता, कभी के बाद अभी, अतिरिक्त नहीं, केवल जड़ें हैं के लिए लोकप्रिय विनोद कुमार शुक्ल छत्तीसगढ़ के रायपुर में रहते हैं. 1 जनवरी 1937 को छत्तीसगढ़ के ही राजनांदगांव में जन्में शुक्ल 50 साल से ज्यादा लंबे लेखकीय सफर में अपनी प्रभावशाली कविता और विचारोत्तेजक गद्य के लिए जाने जाते हैं.
लेखकीय सफर और लोकप्रिय किताबें
विनोद कुमार शुक्ल ने अपनी रचनात्मक यात्रा की शुरुआत कविता-संग्रह ‘लगभग जयहिंद’ से की. इसके बाद उनके कई कविता संग्रह, जैसे ‘वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहिनकर विचार की तरह’, ‘सब कुछ होना बचा रहेगा’, ‘अतिरिक्त नहीं’, ‘कविता से लंबी कविता’, ‘आकाश धरती को खटखटाता है’, ‘कभी के बाद अभी’ प्रकाशित हुए और पाठकों के बीच खासे लोकप्रिय हैं. कविता के साथ ही विनोद कुमार शुक्ल के गद्य ने भी पाठकों के बीच अपनी एक खास जगह बनायी. उनके उपन्यास नौकर की कमीज पर फिल्म भी बनी. उनके उपन्यास खिलेगा तो देखेंगे, दीवार में एक खिड़की रहती थी भी पाठकों के बीच खासे लोकप्रिय हैं. उनके कहानी संग्रह ‘पेड़ पर कमरा’ और ‘महाविद्यालय कहानी संग्रह’ पढ़े जा सकते हैं. वह बच्चों के लेखक भी हैं और इस क्रम में ‘हरी घास की छप्पर वाली झोपड़ी और बौना पहाड़’ उपन्यास समेत उनकी बच्चों पर लिखी किताबें ‘बना बनाया देखा आकाशा, बनते कहां दिखा आकाश’, ‘गमले में जंगल’, ‘पेड़ नहीं बैठता’, ‘एक चुप्पी जगह’ शामिल हैं.
पुरस्कारों की लंबी फेहरिस्त
विनोद कुमार शुक्ल गजानन माधव मुक्तिबोध फेलोशिप, अखिल भारतीय भवानीप्रसाद मिश्र सम्मान, सृजन भारतीय सम्मान, रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार, शिखर सम्मान, राष्ट्रीय मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, साहित्य अकादमी पुरस्कार, रचना समग्र पुरस्कार एवं हिंदी गौरव सम्मान सहित कई प्रतिष्ठित सम्मानों से नवाजे जा चुके हैं. बीते साल शुक्ल को पेन अमेरिका ने व्लादिमीर नाबोकोव अवार्ड फॉर अचीवमेंट इन इंटरनेशनल लिटरेचर-2023 से सम्मानित किया गया था. शुक्ल पेन अवार्ड पाने वाले भारतीय एवं एशियाई मूल के पहले लेखक हैं. इस अवार्ड को अमेरिका में साहित्य का ऑस्कर सम्मान समझा जाता है. समानान्तर सिनेमा के प्रभावी निर्देशक मणि कौल ने शुक्ला के उपन्यास ‘नौकर की कमीज’ पर फिल्म बनाई, जिससे भारतीय साहित्य और उससे परे लेखक के प्रभाव को और मजबूती मिली.
‘कितना कुछ लिखना बाकी है’
विनोद कुमार शुक्ल ने एक वीडियो संदेश के माध्यम से ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलने पर अपनी प्रतिक्रिया दी है- ‘सबसे पहली प्रतिक्रिया यही है कि मुझे लिखना बहुत था, बहुत कम लिख पाया. मैंने देखा बहुत, सुना भी मैंने बहुत, महसूस भी किया बहुत, लेकिन लिखने में थोड़ा ही लिखा. कितना कुछ लिखना बाकी है, जब सोचता हूं, तो लगता है, बहुत बाकी है. इस बचे हुए को मैं लिख लेता, अपने बचे होने तक, अपने बचे लेखक को शायद लिख नहीं पाऊंगा, तो मैं क्या करूं, मैं बड़ी दुविधा में रहता हूं. मैं अपनी जिंदगी का पीछा अपने लेखन से करना चाहता हूं, लेकिन मेरी जिंदगी कम होने के रास्ते पर तेजी से बढ़ती है और मैं लेखन को उतनी तेजी से बढ़ा नहीं पाता, तो कुछ अफसोस भी होता है. यह पुरस्कार, बहुत बड़ा पुरस्कार है, मेरी जिंदगी में ये एक जिम्मेदारी का एहसास है. मैं उसको महसूस करता हूं. अच्छा तो लगता है, खुश होता हूं. बड़ी उथल-पुथल है महसूस करना, कि ये पुरस्कार कैसा लगा? मेरे पास शब्द नहीं हैं कहने के लिए. मैं यही कहूंगा कि बस अच्छा लग रहा है.’
यह भी देखें : जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को प्यार मिला