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साहित्य संध्या में आज पढ़ें बालेंदुशेखर मंगलमूर्ति की कविताएं

दुविधा जीवन क्या है, एक शांत झील है, जिसके किनारे बैठ कर मैं अनंत काल तक मछलियां मारता हूँ, या निरंतर बहती नदी, जो पल- पल बदलती रहती है, पर जितना बदलती है, उतना ही यथास्थिति में रहती है पेड़ का फल है जीवन, प्रकृति के नियमों से बंधा, बढ़ता है, पकता है फिर तोड़ […]

दुविधा

जीवन क्या है,

एक शांत झील है,

जिसके किनारे बैठ कर मैं

अनंत काल तक मछलियां मारता हूँ,

या निरंतर बहती नदी,

जो पल- पल बदलती रहती है,

पर जितना बदलती है,

उतना ही यथास्थिति में रहती है

पेड़ का फल है जीवन,

प्रकृति के नियमों से बंधा,

बढ़ता है, पकता है फिर तोड़ लिया जाता है,

जीवन शाश्वत है, पर हम नश्वर हैं,

इंद्रधनुष की तरह सतरंगी है,

या फिर घोर अंधेरी रात सी काली है,

या सुबह की किरणों की तरह धवल हैं

जीवन सुख है या दुख है,

जीवन की अंतिम गति क्या है,

इसका अंतिम सुर क्या है,

जीवन शोर है या सन्नाटा,

जीवन सुलझा हो या फिर

ऊन के गोलों की तरह उलझा,

क्या सफल है,

क्या बेहतर है,

जीवन किसकी पूजा है,

लक्ष्मी या सरस्वती,

जीवन महत्वाकांक्षा का नाम है या संतोष का,

कब महसूस हो कि मैं जीवन जी रहा हूँ,

या जीवन मुझे जी रहा है,

जीवन और मैं, कौन किसके वश में है,

क्या जीवन को सिर्फ हाँ कहूँ,

क्या जीवन को नकारना गलत है,

मैं सोच में पड़ जाता हूँ,

जीवन क्या है?

अस्तित्व का संघर्ष

मैं एक छोटी धारा हूँ,

तुम एक विशाल नद,

मेरी जैसी कई धाराओं को समेटे,

तुम्हें एहसास है अपनी विशालता का,

साथ ही अहम भी

मैं अपनी सीमित शक्ति से कब

तक तुम्हारे समानांतर बह सकूंगी,

कभी थक कर, हार मानकर

तुममें आ मिलूंगी.

मैं नहीं जानती,

मैं कितने दिनों तक तुम्हारे समानांतर बह सकूंगी,

तुम नद हो,

तुम छोटी धाराओं का अस्तित्व मिटा कर चलने वाले,

मैं छोटी धारा,

अन्य धाराओं को भी बहने की वकालत करती हुई,

कभी नहीं कहती इन धाराओं से,

जो बहती हुई सींच रही हैं

हिंद की सभ्यता, संस्कृति को,

उन धाराओं के रंग अनेक हैं,

धरती को शस्य श्यामला करती हुईं,

बहती हुई,

क्यों सब तुममें आ मिले,

क्यों सबका अस्तित्व खत्म हो जाये,

क्यों एकरूप हो जाएं,

हिंद की धाराएं,

सब बहें, तुम भी बहो, मैं भी बहूँ,

फिर बहती- बहती मिल जाएं सागर से.

मुझे मुहब्बत है तुमसे

तुम्हारी आवाज सुनीं थी मैंने,

महसूस हुआ कानों में शहद घुल रहा हो,

वो मिठास, वो नशा,

फिर कविता फूट निकली,

उस पल जाना मैं मुहब्बत में हूँ,

हाँ मुझे तुमसे मुहब्बत है.

तुम्हें देखा नहीं मैंने,

सिर्फ तस्वीरों में मिली तुम मुझको,

हाँ, सपनों में भी मिली मुझको,

जब बसंती हवा सी मुझको छूती,

मेरे रोम रोम को आह्लादित करती

बह निकली.

अब कुछ यूं हो,

तुम फिर एक बार आ जाओ,

अपने पूरे अस्तित्व में,

मैं तुम्हारा हाथ थामे

दूर बहुत दूर हरी वादियों में निकल जाऊं,

फिर शहर के कोलाहल से दूर,

तुम अपनी मखमली आवाज से दुलराओ मुझको,

और मैं आंखें बंद किये,

हरी घास पर लेटा रहूं,

और तुम अपनी गोद में मेरा सिर रख,

बालों को सहलाते हुए सुनाओ कविताएं

दिल चाहता है ये ख्वाबों का सिलसिला यूं ही चलता रहे,

मेरी दुनिया सिमट कर छोटी हो जाये,

बस मैं और तुम,

तुम्हारी आवाज, तुम्हारी कविता,

क्या लेना है फिर दुनियावी हक़ीक़त से,

बस इतना काफी है,

तुम जान जाओ

मुझे तुमसे मुहब्बत है…

तुम्हारी याद का दिया जलता रहेगा

दिन बदलता है

रात बदलती है

सूरज बदलता है

चाँद बदलता है

मैं भी बदलूंगा

तुम भी बदलोगी

मेरी यादें बदलेंगी

तुम्हारी चाहतें बदलेंगी

हमारी ख्वाहिशें बदलेंगी

ये दौर बदलेगा

ये निज़ाम बदलेगा

मेरा हौसला बदलेगा

तुम्हारा यकीन बदलेगा

ये खूबसूरत सुबह बदलेगी

सुरमयी शाम बदलेगी

तुम्हारे चुंबन की तपिश बदलेगी

मेरी आँखों की चमक बदलेगी

जोश बदलेगा, जुनून बदलेगा

उम्र बदलेगी, हमारा मिज़ाज़ बदलेगा

शिकायतों के तौर तरीके बदलेंगे

कैसे कहूँ ऐ मेरी हमनवां

पर फिर भी यकीं है मुझे

हम नहीं बदलेंगे

तुम्हारी यादों की गर्मी नहीं बदलेगी

मेरे दिल के कोने में तुम्हारी यादों का दीया

जो मैंने जला रखा है

वो जल रहा है और

जलता रहेगा…

मै एक चोर हूँ !!

मै एक चोर हूँ,

तेरे होंठो से गम चुरा लूँगा,

तुम्हारी आँखों से आंसू चुरा लूँगा.

मै एक चोर हूँ,

तेरे हिस्से की काली रात चुरा लूँगा,

मेरे खिलाफ तुम थाने में रपट न लिखवाना,

मैं थाने से रपट चुरा लूँगा,

और अपने पर आया,

तो थानेदार की आँखों से सुरमा चुरा लूँगा.

मै एक चोर हूँ,

मैं तुम्हारा दिल चुरा लूँगा,

मै बेदिल नहीं मगर,

मैं तुम्हारी तन्हाई चुरा लूँगा.

मै एक आधुनिक, पढ़ा लिखा चोर हूँ,

तुम्हारी चाहत रखने वाले का यकीं चुरा लूँगा.

पर मैं बेदिल नहीं, संगदिल नहीं.

मैं तुम्हारी आँखों में चमक दे जाऊंगा,

तुम्हें खुद पर एक यकीं दे जाऊंगा

और यादें दे जाऊंगा,

भीड़ में, तन्हाई में,

वक़्त, बेवक्त,

तुम मुझे याद करोगे.

मैं एक चोर हूँ !!

पटना विश्वविद्यालय से स्नातक और फिर जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से एमए बालेंदुशेखर संप्रति ‘Centre for World Solidarity’ के ज्वाइंट डायरेक्टर हैं. लिखने-पढ़ने के शौकीन हैं. हिंदी और अंग्रजी भाषा में समान रूप से कविताएं लिखते हैं. इन्होंने इंस्टिट्यूट फॉर ह्यूमन डेवलपमेंट में रहते हुए प्लानिंग कमीशन के लिए बिहार और झारखंड में BRGF इवैल्यूएशन, ICSSR का शोध अध्ययन, मेनचेस्टर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डेनिस रोजर्स के निर्देशन में शहरी हिंसा पर शोध किया है. इनके कई रिसर्च पेपर्स अंतर्राष्ट्रीय जर्नल्स में छपे हैं. बालेंदुशेखर CRY के नेशनल फेलो भी रह चुके हैं.ब्लॉग – http://www.poemsofbalendu.com, ईमेल आईडी bsmangalmurty@gmail.com

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