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कब और क्यों हुई थी इस्लामिक आतंकवाद की शुरुआत, पूरे विश्व पर चाहते हैं शरीयत कानून लागू करना

Islamic terrorism : इस्लामिक आतंकवाद आज के समय में विश्व के सामने एक चुनौती बनकर खड़ा है, शायद ही कोई देश हो, जो इसके बढ़ते प्रभाव से आतंकित ना हो. 22 अप्रैल 2025 को जिस तरह जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकियों ने पर्यटकों का धर्म पूछकर उन्हें गोली मार दी, वह इस्लामिक आतंकवाद का एक घिनौना चेहरा है. भारत ने ऑपरेशन सिंदूर चलाकर आतंकियों से बदला भले ही ले लिया हो, लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि इस्लामिक आतंकवाद विश्व के सामने चुनौती बनकर खड़ा है. ये आतंकवादी आखिर चाहते क्या हैं और इनका उद्देश्य क्या है? यह बड़ा सवाल लोगों के सामने खड़ा है.

Islamic terrorism : इस्लामिक आतंकवाद इस शब्द से दुनिया तब परिचित हुई जब कई ऐसी घटनाएं उनके सामने घटीं जो दिल दहलाने वाली थीं. इसका सबसे बड़ा उदाहरण माना जाता है 11 सितंबर 2001 को अमेरिका के पेंटागन में हुआ हवाई हमला जिसमें 3000 से अधिक लोगों की जान गई थी और तब अमेरिका ने आतंकवाद के खिलाफ अभियान छेड़ा था. आखिर क्या है इस्लामिक आतंकवाद और इसका उद्देश्य क्या है?

क्या है इस्लामिक आतंकवाद?

इस्लामिक आतंकवाद उन कट्टरपंथी लोगों द्वारा प्रचारित एक विचारधारा है, जो यह विश्वास करती हैं कि पूरे विश्व में जो शासन है, वह इस्लाम विरोधी है. ये कट्टरपंथी पूरी दुनिया में शरीयत का शासन स्थापित करना चाहते हैं, जो इस्लाम के नियम और कायदे के अनुसार हो. इनका विश्वास है कि पूरी दुनिया में तभी सही व्यवस्था कायम हो सकती है, जब शरीयत का कानून लागू होगा. इस्लामिक कट्टरपंथी अमेरिका के घोर विरोधी हैं और वे अमेरिका को बर्बाद करना चाहते हैं.

इस्लामिक आतंकवाद के 5 कारनामे जिसने दुनिया को हिला दिया

Sharia Law
शरिया कानून लागू करना चाहते हैं इस्लामिक आतंकवादी

इस्लामिक आतंकवाद जिहाद के बल पर पूरी दुनिया में शरीयत कानून लागू करना चाहता है. इसकी सोच हथियारों के दम पर इस्लामिक कानून को लागू करना है. इसी सोच के साथ इन्होंने कई ऐसी घटनाओं को अंजाम दिया, जो मानवता के खिलाफ थी, जिसकी वजह से इस्लामिक आतंकवाद का खौफ पूरे विश्व पर छा गया.

  • -9/11 हमला (11 सितंबर 2001, अमेरिका): अल-कायदा के आतंकियों ने जिनका सरगना ओसामा बिन लादेन था, चार यात्री विमानों का अपहरण किया और उन्हें वर्ल्ड ट्रेड सेंटर (न्यूयॉर्क) और पेंटागन (वॉशिंगटन डीसी) से टकरा दिया. इस घटना में 3,000 लोग मारे गए थे.
  • -26/11 मुंबई हमला (2008, भारत): लश्कर-ए-तैयबा के 10 आतंकवादियों ने मुंबई में एक कई जगहों और प्रतिष्ठित इमारतों पर हमला कर दिया था. यह हमला चार दिनों तक चला था. मुंबई हमलों में 160 से अधिक लोग मारे गए थे. इस हमले में के दो फाइव स्टार होटल भी शामिल थे.एक अस्पताल और रेलवे स्टेशन को भी निशाना बनाया गया था.
  • -चार्ली हेब्दो हमला (2015, फ्रांस) :पेरिस में एक व्यंग्य पत्रिका चार्ली हेब्दो के कार्यालय पर हमला हुआ था. इस हमले में 12 लोगों की मौत हुई थी, पत्रिका के कर्मचारी थे. पत्रिका पर हमला इसलिए किया गया था कि इन्होंने पैगंबर मुहम्मद का कार्टून प्रकाशित कर दिया था.
  • -ISIS का उदय और सीरिया-ईराक में अत्याचार (2014-2019):इस्लामिक स्टेट (ISIS) ने सीरिया और इराक के बड़े हिस्सों पर कब्जा कर विद्रोह की घोषणा कर दी थी. इन्होंने नरसंहार किया, महिलाओं को गुलाम बनाया और कई आत्मघाती हमले किए. इनका उद्देश्य अपने प्रभाव वाले इलाके में शरीयत कानून लागू करना था.
  • -नाइजीरिया में बोको हराम का आतंक (2009 से अब तक) : नाइजीरिया का यह यह आतंकवादी संगठन पश्चिमी शिक्षा के खिलाफ है और इसी वजह से इसने हजारों लोगों की हत्या की है. 2014 में बोको हराम ने 276 छात्राओं का अपहरण किया था.

इस्लामिक आतंकवाद का उदय और 1979 में इस्लामिक क्रांति

इस्लामिक आतंकवाद के उदय का समय 1980 से 83 के बीच के समय को माना जाता है, लेकिन इसके उदय में 1979 के इस्लामिक क्रांति की अहम भूमिका थी, जिसने कट्टरपंथियों के मन में यह भावना भर थी कि विश्व में धार्मिक शासन स्थापित किया जा सकता है. दरअसल 1979 में ईरान की जनता ने शाह मोहम्मद रजा पहलवी की सरकार को उखाड़ फेंका था और वहां तानाशाही का अंत किया था. पहलवी की सरकार सेक्यूलर थी, जबकि ईरानी क्रांति के बाद शरीयत पर आधारित इस्लामी गणराज्य की स्थापना हुई थी. ईरान के परंपरावादियों का कहना था कि पहलवी अमेरिका की नकल कर रहे थे, जिसकी वजह से धार्मिक वर्ग को सरकार में भागीदारी नहीं मिल रही थी.सरकार की नीतियां अमीरों के पक्ष में थी और गरीबों की आवाज को दबाया जा रहा था.

ईरान की इस्लामिक क्रांति और इस्लामिक आतंकवाद के बीच संबंध

ईरानी क्रांति के बाद शरीयत का कानून लागू हुआ था, जिसकी वजह से कट्टरपंथियों को ऐसा प्रतीत हुआ कि अब विश्व पर धार्मिक शासन कायम किया जा सकता है, इसलिए उन्होंने हथियारों के बल पर इस्लाम का प्रचार शुरू किया. हालांकि इस्लाम में हिंसक जिहाद के लिए कोई जगह नहीं है और जबरन धर्मांतरण का इस्लाम विरोधी है, बावजूद इसके इस्लामिक आतंकवाद ने अपना कहर बरपाना शुरू कर दिया. आत्मघाती हमले किए गए. महिलाओं को गुलाम बनाया गया, उनका शारीरिक और मानसिक शोषण हुआ और कई अपहरण की घटना को भी अंजाम किया गया. इसके बाद कई शिया और सुन्नी कट्टरपंथियों ने इस्लामिक आतंकवादी संगठनों जैसे हिजबुल्लाह को हथियार, धन और प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया.ईरानी क्रांति के बाद अमेरिका के खिलाफ जिहाद की मानसिकता भी बढ़ी और एक और बड़ा बदलाव महिलाओं की सामाजिक स्थिति में हुआ कि वे अब वस्तु की तरह हो गईं. उनकी शिक्षा और स्वतंत्रता पर पहरा हो गया था.

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