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Spies In Mauryan Dynasty : भारतीय इतिहास में मौर्य वंश कई मायनों में अहम था. चंद्रगुप्त मौर्य के काल में जासूसों का एक ऐसा नेटवर्क तैयार किया गया था, जिसने पूरे देश को सुरक्षित करने और दुश्मनों की जानकारी सम्राट तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई थी. चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में आचार्य चाणक्य ने अपनी दूरदर्शिता से जासूसों का एक नेटवर्क तैयार किया था, जो विभिन्न कैटेगरी में बंटा था.
चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में कैसा था गुप्तचरों का नेटवर्क
चंद्रगुप्त मौर्य और आचार्य चाणक्य ने 322 ईसा पूर्व से 297 ईसा पूर्व तक मौर्य साम्राज्य को काफी मजबूत किया. विशाखदत्त द्वारा लिखित नाटक मुद्राराक्षस में बताया गया है कि किस प्रकार चाणक्य और चंद्रगुप्त ने एक संगठित और शक्तिशाली खुफिया तंत्र विकसित किया, जो गुप्तचरों पर आधारित था. यह गुप्तचर कई प्रकार के भेष में राज्य के भीतर और सीमावर्ती इलाकों में घूमकर जरूरी सूचनाएं एकत्रित करते थे. यह तो बात हुई दुश्मनों से रक्षा के लिए जानकारी एकत्र करने की, दूसरी ओर आचार्य चाणक्य ने घरेलू विद्रोह और विश्वासघात को रोकने के लिए अपने मंत्रियों और पदाधिकारियों की जासूसी के लिए भी गुप्तचर लगा रखे थे, जो पूरी निष्ठा के साथ अपना कार्य करते थे.
कैसे काम करते थे गुप्तचर?
आचार्य चाणक्य एक महान राजनीतिक शास्त्री थे. राष्ट्र को सुरक्षित करने के लिए उन्होंने कई तरह के प्रयास किए और साथ ही राजा को भी अपने कर्तव्यों के प्रति पूरी तरह आगाह किया. मुद्राराक्षस नाटक में विशाखदत्त ने लिखा है कि आचार्य चाणक्य की रणनीतिक कुशलता अद्भुत थी. उन्होंने राष्ट्र को सुरक्षित करने के लिए कई तरह के गुप्तचरों की नियुक्ति की जो साधु, व्यापारी, कलाकार, चिकित्सक और सेवक के रूप में अपना कार्य करते थे. किसी भी तरह की संदिग्ध गतिविधि पर उनकी पूरी नजर होती थी और कुछ भी अप्रिय घटित होने पर वे चाणक्य और चंद्रगुप्त को उसकी सूचना दे देते थे, ताकि विद्रोह की आशंका को दबा दिया जाए. कई बार आचार्य चाणक्य के गुप्तचर दुश्मनों को भ्रमित भी करते थे, ताकि उन्हें सही बात की जानकारी ना मिले.
चाणक्य ने अर्थशास्त्र में किया है गुप्तचरों का जिक्र

चाणक्य के अर्थशास्त्र के 11वें अध्याय में विशेषकर गुप्तचरों का जिक्र किया गया है, इसके अतिरिक्त चाणक्य ने अध्याय एक और 12 में भी गुप्तचरों का उल्लेख किया है और बताया है कि गुप्तचर किस प्रकार काम करेंगे और उनकी कैटेगरी क्या होगी. आचार्य चाणक्य ने गुप्तचरों को मुख्यत: दो भागों में विभाजित किया था-
- एक जगह स्थिर रहकर काम करने वाले गुप्तचर, ज्यादा सेवक होते थे
- विचरण करने वाले गुप्तचर, यानी जो जानकारी एकत्र करने के लिए घुमंतू प्रवृत्ति के होते हैं.
चाणक्य ने बताया गुप्तचरों की कैटेगरी
आचार्य चाणक्य ने गुप्तचरों की कैटेगरी और उनकी कार्यप्रणाली के बारे में विस्तार से बताया है. वे लिखते है कि गुप्तचरों के कापटिक, उदास्थित, गृहपालिक, वैदेहक, तापस, सत्री, तीक्ष्ण, रसद और भिक्षु आदि अनेक प्रकार हैं. अर्थशास्त्र के प्रथम अध्याय में राजा यानी राज्य और उसके प्रशासन में गुप्तचरों की भूमिका पर चर्चा की गई है. 11वें अध्याय में राज्य की आंतरिक सुरक्षा के लिए तैनात गुप्तचरों की जानकारी है और 12वें अध्याय में विदेशनीति के लिए नियुक्त गुप्तचरों की चर्चा बखूबी की गई है.
- कापटिक-छात्र वेश में रहने वाला गुप्तचर
- उदास्थित-संन्यासी के रूप में रहने वाले गुप्तचर
- गृहपतिक-किसान के वेश में रहने वाले गुप्तचर
- तापस जो गुप्त रूप से विदेशी शासकों और उनके दरबार में घुसपैठ करें
- वैदेहक व्यापारियों के रूप में अन्य राज्यों में जाकर वहां से सूचना लाने वाले गुप्तचर
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