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Russia-Ukraine War: रूस और नाटो के बीच टकराव आज के समय में केवल रूस-यूक्रेन युद्ध के रूप में दिखता है, लेकिन इसकी शुरुआत द्वितीय विश्वयुद्ध के वक्त ही हो गई थी. नाटो का गठन ही द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद सोवियत रूस की बढ़ती शक्ति के खिलाफ यूरोप और अन्य पश्चिमी देशों ने अपनी सुरक्षा के लिए किया था. यह एक सैन्य संगठन है और इसके सिद्धांत के अनुसार नाटो के किसी भी देश पर हमला पूरे संगठन पर हमला है. यूक्रेन का झुकाव नाटो की ओर है, इसी वजह से रूस-यूक्रेन युद्ध को रूस-नाटो के विवाद के रूप में भी देखा जाता है. रूस ने नाटो पर नजर रखने के लिए विश्व की सबसे बड़ी सिग्नल इंटेलिजेंस प्रणाली को स्थापित किया है, इसके बारे में यूक्रेनी शोधकर्ताओं ने जानकारी दी है.-
पोलैंड के निकट स्थापित है यह सिग्नल इंटेलिजेंस प्रणाली
यूक्रेन के रिसचर्स का दावा है कि रूस ने नाटो की पूर्वी सीमा यानी पोलैंड से महज 15.5 मील की दूरी पर कैलिनिनग्राद एक्सक्लेव में एक विशाल गोलाकार एंटीना ऐरे (Circularly Disposed Antenna Array – CDAA) का निर्माण किया है. इसका निर्माण लगभग पूरा हो चुका है और विशेषज्ञ इसे दुनिया की सबसे बड़ी सिग्नल इंटेलिजेंस प्रणाली करार दे रहे हैं. रिसचर्स के इस खुलासे ने नाटो की चिंता कई गुना बढ़ा दी है, क्योंकि इसके जरिए रूस पूर्वी यूरोप में होने वाली गतिविधि पर आसानी से नजर रख सकेगा.
सिग्नल इंटेलिजेंस प्रणाली की खासियत
रूस ने साल 2023 में इस जासूसी तंत्र का निर्माण शुरू करवाया था और अब यह लगभग पूरा हो चुका है. इस गोलाकार जासूसी तंत्र का व्यास लगभग 1,600 मीटर बताया जा रहा है. शोध समूह टोचनी के अनुसार, पूरी परिधि में 180 प्वाइंट्स ऐसे हैं, जहां एंटीना लगाया जाएगा और फिर उन्हें भूमिगत केबलों से जोड़कर एंटीना के केंद्र से जोड़ा गया है. यह डिजाइन किसी आधुनिक तकनीक की बजाय शीत युद्ध काल की याद दिलाता है, जब अमेरिका और सोवियत संघ दोनों ने इसी तरह के एरे का इस्तेमाल पनडुब्बियों से संपर्क और सिग्नल दिशा निर्धारण के लिए किया था. लेकिन इस बार फर्क यह है कि रूस इस पुरानी तकनीक को नए सैन्य सिद्धांतों के साथ जोड़ रहा है, जहां जमा की गई सूचनाओं का इस्तेमाल हथियार के रूप में होगा.
सिग्नल इंटेलिजेंस प्रणाली की मदद से नाटो पर सीधी नजर पाएगा रूस
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कैलिनिनग्राद की भौगोलिक स्थिति इस तरह की है कि सिग्नल इंटेलिजेंस प्रणाली की मदद से नाटो पर रूस की सीधी नजर रहेगी. रूस का कैलिनिनग्राद पोलैंड और लिथुआनिया की सीमा से सटा हुआ है और बाल्टिक सागर के किनारे बसा है. यानी रूस ने नाटो की पूर्वी सीमा के ‘दिल’ में ही निगरानी तंत्र खड़ा कर दिया है. विशेषज्ञों का मानना है कि इस निगरानी तंत्र की मदद से रूस पूर्वी यूरोप में नाटो की रेडियो और सैन्य संचार व्यवस्था को पकड़ने में सक्षम होगा. साथ ही वह बाल्टिक सागर और उत्तरी अटलांटिक में तैनात रूसी पनडुब्बियों से सुरक्षित संवाद कर सकेगा और इलेक्ट्रॉनिक जासूसी अभियानों में रूस को निर्णायक बढ़त मिलेगी.
नाटो पर सिर्फ रक्षा नहीं मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने की कोशिश
कैलिनिनग्राद में निगरानी तंत्र स्थापित कर रूस ने ना सिर्फ रक्षा बल्कि मनोवैज्ञानिक स्तर पर भी नाटो को चुनौती देने वाली प्रणाली विकसित कर ली है. रूस दरअसल यह दिखाना चाहता है कि वह नाटो की गतिविधियों को न केवल देख रहा है, बल्कि हर वक्त उनका संचार पढ़ने की क्षमता रखता है. नाटो की चिंता इस बात को लेकर भी है कि रूस इस व्यूह रचना को आक्रामक क्षमता में बदल सकता है. यानी यह केवल सुनने और पकड़ने वाला यंत्र न रहकर, नाटो के संचार में बाधा डालने या उसे तोड़फोड़ करने का जरिया बन सकता है.
अमेरिका और यूरोप की कूटनीति पर दबाव
रूस द्वारा कैलिनिनग्राद में निगरानी तंत्र स्थापित करने की जानकारी ऐसे समय में आई है जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर शांति वार्ता की कोशिशें जारी हैं. लेकिन रूस की इस नई गतिविधि ने अमेरिका और यूरोप दोनों की कूटनीति को पेचीदा बना दिया है. अमेरिकी खुफिया एजेंसियां पहले ही इस निर्माण की निगरानी कर रही थीं. अब जब यह सार्वजनिक हो गया है, तो नाटो पर दबाव बढ़ना स्वाभाविक है.
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