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Mughal Empire : पलामू के चेरो राजाओं का इतिहास मुगल बादशाह औरंगजेब से भी जुड़ा है. चेरो वंश के शासक राजा प्रताप राय मुगलों को टैक्स नहीं देना चाहते थे क्योंकि वह राशि बहुत अधिक थी. पलामू पहाड़ी इलाका है और वहां उस वक्त इतनी खेती नहीं हो पाती थी. राजा प्रताप राय ने टैक्स देना बंद कर दिया था और एक तरह से मुगलों को चुनौती दे डाली थी. औरंगजेब ने जब सत्ता संभाली तो उसने ऐसे राजाओं को अपने अधीन करने के लिए अभियान चलाया. उसने अपने सूबेदारों के जरिए उन्हें इस्लाम स्वीकारने का संदेश भिजवाया. औरंगजेब का यह स्पष्ट संदेश था कि इस्लाम ना स्वीकार करने की स्थिति में उन्हें मौत मिलेगी.
पलामू को औरंगजेब ने क्यों बनाया निशाना?
औरंगजेब के काल में पलामू बिहार प्रदेश जिसे उस वक्त सूबा कहते थे उसका हिस्सा था. पलामू बिहार के दक्षिणी सीमा पर स्थित था. यहां की भौगोलिक स्थिति ऐसी थी कि यह क्षेत्र जंगलों और पहाड़ों से भरा था. यहां के राजा चेरो राजवंश के थे, जो द्रविड़ मूल की एक जनजाति थी. जिस वक्त औरंगजेब ने पलामू किले पर हमला करवाया उस वक्त यहां के राजा प्रताप राय थे. पलामू की स्थिति यह थी कि इसपर मुगलों की पकड़ कमजोर हो गई थी और प्रताप राय ने खुद को एक तरह से स्वतंत्र घोषित कर दिया था. राजा प्रताप राय मुगलों को दिए जाने वाले टैक्स को देने से मना कर चुके थे और एक तरह से बिलकुल स्वतंत्र हो चुके थे. सत्ता संभालने के बाद औरंगजेब ने ऐसे राजाओं को अपने अधीन करने और मुगल साम्राज्य को मजबूत करने के लिए अभियान चलाया. मुगलकालीन अभिलेख ‘मासिर-ए-आलमगीरी’ के अनुसार इतिहासकार जदुनाथ सरकार अपनी किताब HISTORY OF AURANGZIВ में लिखते हैं कि 1661 में बादशाह अकबर ने बिहार के सूबेदार दाऊद खान को यह आदेश दिया कि वह पलामू के चेरो राजाओं के खिलाफ अभियान चलाए, क्योंकि उन्होंने राजस्व देने से मना कर दिया था.
क्या राजा प्रताप राय को इस्लाम स्वीकारने पर माफी देने की बात कही गई थी?

औरंगजेब एक ऐसा मुगल शासक था, जिसने इस्लाम को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई थी. औरंगजेब ने जबरन हिंदुओं को इस्लाम स्वीकार करवाया और मंदिरों को ध्वस्त कर मस्जिद बनाया था. पलामू के राजा प्रताप राय को भी इस्लाम स्वीकार करने का प्रस्ताव मुगल बादशाह की ओर से भेजा गया था. बिहार के सूबेदार दाऊद खान और उनकी सेना जब पलामू किले से महज दो मील की दूरी पर थी, तो औरंगजेब ने राजा प्रताप राय को संदेश भेजने को कहा कि वे इस्लाम स्वीकार कर लें, अगर वे ऐसा करते हैं, तो उनके किले को छोड़ दिया जाएगा. इतिहासकार जदुनाथ सरकार अपनी किताब में लिखते हैं कि दाऊद खान की सेना पलामू पर हमला करने के लिए इतनी आतुर थी कि उन्होंने राजा के जवाब का इंतजार ही नहीं किया और हमला कर दिया.
चेरो राजाओं और मुगलों के बीच हुआ था भीषण संघर्ष
बिहार के सूबेदार दाऊद खान की सेना में शामिल तहव्वर खां ने आदेश के बिना ही पलामू किले पर हमला कर दिया था. 7 दिसंबर 1661 को सुबह युद्ध शुरू हुआ था. सुबह से लेकर शाम तक भयंकर गोलीबारी हुई. पहाड़ियों पर दोनों ओर से तोपें गरजती रहीं. मुगल सेना नीचे से ऊपर की ओर जा रही थी और चेरो किले पर बैठे थे, इसलिए उन्होंने मुगलों को काफी नुकसान पहुंचाया. उनके दर्जनों सैनिक मारे गए, लेकिन मुगलों की ताकतवर और विशाल सेना के आगे चेरो कितने देर टिकते. 13 दिसंबर को दाऊद खां के नेतृत्व में मुगल जीत गए. किले से चेरो सैनिक या तो भाग गए या फिर मारे गए. राजा प्रताप राय भी पलायन कर गए. अगले दिन पलामू का दोनों किला मुगलों के अधीन था. किले की दीवारें भयंकर नरसंहार का गवाह बन चुकी थीं. मुगलों की जीत के बाद दाऊद खान ने पलामू को एक मुसलमान फौजदार के हवाले कर दिया और वापस लौट गया.
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कौन थे चेरो राजा?

चेरो द्रविड़ मूल की जनजाति थी, जिनके बारे में यह कहा जाता है कि वे गंगा के मैदानी इलाकों से यहां आए थे. 1613 ई में चेरो रक्सेल राजाओं को हराकर पलामू के शासक बने. चेरो राजवंश के सबसे प्रसिद्ध शासक मेदिनी राय थे. इन्होंने अपनी सत्ता को गया, हजारीबाग और छोटानागपुर के विभिन्न हिस्सों तक फैलाया. मेदिनी राय के उत्तराधिकारी राजा प्रताप राय ने मुगलों की अधीनता को स्वीकार करने से मना कर दिया, जिसकी वजह से औरंगजेब ने उसपर हमला करवाया. इस्लाम स्वीकार ना करने की वजह से चेरो राजवंश का अंत पलामू में हो गया.
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