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Islamic Regime Change In Lebanon: लेबनान में पलटेगी इस्लामी सरकार? किस धर्म की आएगी सत्ता?

जानिए हिज्बुल्लाह गुरिल्लों को नेस्तनाबूद करने में लेबनान का मजहबी पेच कैसे कर रहा काम, क्या होने जा रहा है बदलाव….

Islamic Regime Change In Lebanon: इजरायल की सेना ने लेबनान की सीमा लांघ दी है. टैंक और असलहो के साथ घुसे इजरायली सैनिक हिज्बुल्लाह के ठिकानों को चुन-चुनकर ध्वस्त कर रहे हैं. हिज्बुल्लाह छापामार और उनके कमांडर भागे फिर रहे हैं. हालांकि कई जगह इजरायली सैनिकों को हिज्बुल्लाह गुरिल्लों के प्रतिरोध का भी सामना करना पड़ रहा है. फिर भी इजरायली सैनिकों का खौफ सबसे खौफनाक आतंकवादी संगठन हिज्बुल्लाह के सिर चढ़कर बोल रहा है. 

दरअसल, इजरायल को एक ऐसा खुफिया सुराग हाथ लगा, जिससे साफ हो गया था कि अगर हिज्बुल्लाह गुरिल्लों को उसने खत्म नहीं किया तो उसके अस्तित्व पर संकट पैदा हो जाएगा. इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद को कुछ ऐसे दस्तावेज हाथ लगे, जिससे पता चला कि हिज्बुल्लाह इजरायल में ऑपरेशन गलील फतह की पूरी तैयारी कर चुका है. अगर हिज्बुल्लाह इसमें सफल हो जाता तो इजरायल में कुछ ऐसा ही होता, जैसा हमास लड़ाकों ने यौमे कित्तूर पर्व के मौके पर इजरायल में कोहराम मचाया था. 

दरअसल, लेबनान की सीमा से लगे इजरायल के इलाके को गलील कहते हैं. हिज्बुल्लाह ने इसी इलाके में हमला कर सैकड़ों लोगों को मार देने और उस इलाके पर कब्जा कर लेने का प्लान बनाया था. 

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Islamic regime change in lebanon: लेबनान में पलटेगी इस्लामी सरकार? किस धर्म की आएगी सत्ता? 3

Islamic Regime Change In Lebanon: हिज्बुल्लाह का नामोनिशान मिटाने के बाद क्या करेगा इजरायल?

इजरायल के रुख से तो यह साफ हो गया है कि वह हिज्बुल्लाह का नामोनिशान मिटाने के बाद ही दम लेगा. दरअसल हिज्बुल्लाह के चरित्र को समझने में खाड़ी देशों और अरब देशों के बाहर के जानकारों को समस्या होती है. 

इस पर सभी एकमत हैं कि हिज्बुल्लाह एक आतंकी सगंठन है. परंतु हिज्बुल्लाह एक राजनीतिक दल भी चलाता है. सामाजिक और सांस्कृतिक मामलों में भी लेबनान के समाज में हिज्बुल्लाह की गहरी पैठ है. इसके अलावा  लेबनानी समाज के इस्लामी धार्मिक मामलों के संचालन के लिए भी हिज्बुल्लाह एक बड़ा नेटवर्क चलाता है. 

हिज्बुल्लाह के नष्ट होते ही लेबनान के राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक क्षेत्र में बड़ा स्पेस खाली होगा. यहां तक कि लेबनान की वर्तमान सरकार भी हिज्बुल्लाह की छत्रछाया में ही चल रही है. इस कारण लेबनान की वर्तमान सरकार के लिए भी संकट पैदा हो जाएगा. इन सभी क्षेत्रों में पैदा हुए खालीपन को भरने के लिए कई शक्तियां सक्रिय होंगी और उन पर काबिज होना चाहेंगी. हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि हिज्बुल्लाह मूलतः एक शिया गुरिल्ला संगठन है, जो ईरान के पैसे और हथियार की बदौलत ही फला-फूला है.

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Islamic regime change in lebanon: लेबनान में पलटेगी इस्लामी सरकार? किस धर्म की आएगी सत्ता? 4

Islamic Regime Change In Lebanon: लेबनान में सत्तापलट के बाद कौन संभालेगा कमान? 

हिज्बुल्लाह के पतन के साथ ही लेबनान की सरकार का सत्तापलट भी लगभग तय हो गया है. लेबनान सरकार हिज्बुल्लाह की तरह ही ईरान की बदौलत चल रही है. ईरान हिज्बुल्लाह को बचाने के लिए इजरायल से भिड़ने की हिम्मत नहीं दिखा पा रहा है. ऐसे में जब इजरायली सुरक्षा बल लेबनान में अपनी पांव जमा लेंगे तो ईरान के लिए लेबनान की वर्तमान सरकार को भी बचाना मुश्किल होगा. 

दूसरी ओर सऊदी अरब भी ईरान से खार खाए हुए है. खाड़ी देश या अरब इलाके में किसी भी ईरान समर्थित शिया मुसलमानों की सरकार को वह बर्दाश्त करने की स्थिति में नहीं है. 

हमारे लिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि लेबनान में शिया और सुन्नी दोनों की संख्या लगभग बराबर है, लेकिन लेबनान की सरकार पर शिया मुसलमानों का कब्जा है, जो केवल ईरान की सरकार के मुंह से बोलते हैं. सऊदी अरब को दुनिया के सुन्नी  मुसलमानों का नेतृत्वकर्ता माना जाता है. इसलिए सऊदी अरब का सामरिक हित इसी में है कि लेबनान में सुन्नी मुसलमानों का सरकार पर कब्जा हो जाय. इससे ईरान को लेबनान से पूरी तरह से खदेड़ा जा सकेगा. 

अमेरिका की भी ईरान से पुरानी दुश्मनी है. दोनों के संबंध इतने कटु हैं कि अमेरिका ने ईरान पर आर्थिक प्रतिबंध लगा रखा है. दोनों देशों के कूटनीतिक संबंध भी नहीं हैं. एक-दूसरे के यहां उच्चायोग या दूतावास तक नहीं हैं. दोनों देश एक-दूसरे के नागरिकों को अपने यहां आने के लिए वीजा तक नहीं देते हैं. वहीं अमेरिका और सऊदी अरब के बीच मधुर संबंध हैं. इसलिए अमेरिका, इजरायल और सऊदी अरब का हित इसी में है कि लेबनान से ईरान को उखाड़ फेंका जाय. यह तभी हो सकता है जब लेबनान में शिया मुसलमानों को हटाकर सुन्नी मुसलमानों का सत्ता पर कब्जा हो जाय. 

लेबनान में इजरायल की सैन्य कार्रवाई पर सऊदी अरब की चुप्पी से भी लग रहा है कि वह इसके मौन समर्थन में है. संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन और मोरक्को पहले ही इजरायल के साथ अब्राहम समझौता कर चुके हैं. इस कारण ये देश पहले की तरह इजरायल के विरोधी नहीं हैं. ऐसी स्थिति में लेबनान में वर्तमान सरकार के उखड़ने और उनकी जगह सुन्नी मुसलमानों के कब्जे वाली सरकार आने की आहट साफ दिख रही है. 

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