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H1B Visa Fees : ट्रंप प्रशासन द्वारा एच1बी वीजा पर लगाए गए नए शुल्क के बाद, अमेरिका में रह रहे भारतीयों में ना सिर्फ बेचैनी है; बल्कि वे बहुत असमंजस की स्थिति में हैं. एच1बी वीजा पर वहां नौकरी कर रहे भारतीय अब यह समझ नहीं पा रहे हैं कि वे अब कितने दिनों तक अमेरिका में हैं और उन्हें आगे क्या निर्णय लेना चाहिए. वहीं स्टूडेंट वीजा पर रहे भारतीयों में इस बात को लेकर दुविधा है कि क्या उन्हें अब कोई बड़ी कंपनी इतना खर्च वहन कर नौकरी देगी?
H1B वीजा की फीस बढ़ने से भारतीयों में बेचैनी
एच1बी वीजा की फीस अचानक अप्रत्याशित तरीके से बढ़ाए जाने पर अमेरिका में एच1बी वीजा पर रह रहे लोगों में बेचैनी और अविश्वास दोनों की स्थिति बन गई है. प्रभात खबर ने एक ऐसे भारतीय से बात की, जो वर्तमान में माइक्रोसाॅफ्ट कंपनी में सीनियर साॅफ्टवेयर इंजीनियर के तौर पर काम कर रहे हैं. राजीव कपूर (बदला हुआ नाम, उन्होंने अपना नाम छापने पर थोड़ी असुविधा जताई इसलिए हम उनके बदले हुए नाम से रिपोर्ट प्रकाशित कर रहे हैं.) बताते हैं कि उन्होंने अमेरिका के penn state university से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है. उसके बाद वे यहां माइक्रोसाॅफ्ट कंपनी में काम कर रहे हैं.
वे एक साॅफ्ट वेयर इंजीनियर हैं और उनके पास एच1बी वीजा है. जब ट्रंप प्रशासन का यह नया आदेश आया, तो चिंता तो हुई और साथ में कंफ्यूजन भी हुआ कि अब क्या करना चाहिए. क्या उन्हें अमेरिका में ही रूकना चाहिए या फिर अपने देश लौटना चाहिए? हालांकि बाद में यह स्पष्टीकरण आया कि फीस बढ़ोतरी का निर्णय सिर्फ वीजा के नए आवेदनों पर लागू है, इसलिए मेरे जैसे लोगों पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ेगा. लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि अभी केयोस जैसी स्थिति है. हमें यह कहा जा रहा है कि आप अमेरिका छोड़कर अभी ना जाएं, अगर हमें अपने देश लौटना है, तो क्या वापस अमेरिका जाने पर हमारे लिए परिस्थितियां अलग हो जाएंगी? इस तरह के कई सवाल परेशान तो कर रहे हैं.
नौकरी मिलेगी या नहीं इसकी चिंता बढ़ी
अमेरिका के इंजीनियरिंग काॅलेज से ही हाल ही में ग्रेजुएट हुए छात्र आदित्य राज बताते हैं कि एच1बी वीजा की फीस बढ़ोतरी से अमेरिका से ग्रेजुएट हुए छात्रों के लिए अब अमेरिका में नौकरी पाना पहले से कहीं अधिक कठिन हो गया है. मैंने ग्रेजुएशन कर लिया है. अमेरिका में पढ़ाई पूरी करने के बाद अंतरराष्ट्रीय छात्रों को OPT (Optional Practical Training) के तहत काम करने का अवसर मिलता है. यह अवधि आमतौर पर 12 महीनों की होती है, लेकिन यदि छात्र STEM (Science, Technology, Engineering, Mathematics) क्षेत्र से है, तो उसे 24 महीनों का अतिरिक्त विस्तार मिलता है. इस सुविधा की वजह से उन्हें कुल 3 साल तक अमेरिका में काम करने का अवसर मिलता है.
उसी दौरान उन्हें नौकरी की तलाश भी करनी होती है क्योंकि तीन साल के बाद अगर उन्हें नौकरी नहीं मिली तो अमेरिका छोड़ना पड़ेगा. वहीं अगर 3 साल के अंदर नौकरी मिल गई, तो उन्हें नौकरी देने वाली कंपनी उनके लिए एच1बी वीजा का खर्च उठाती है. अब जबकि एच1बी वीजा का खर्च इतना अधिक हो गया है, कोई भी अमेरिकी कंपनी किसी भारतीय को नौकरी देने से बचेगी, क्योंकि उनके लिए इतना खर्च उठाना घाटे का सौदा है. कंपनियां अब अमेरिकन और ग्रीन कार्डधारियों को ही नौकरी देने में रुचि ले रही हैं. इस वजह से मैं भविष्य को लेकर चिंतित हूं कि क्या मुझे यहां नौकरी मिलेगी या फिर मुझे घर वापस लौटना होगा.
भारतीय छात्रों के पास क्या हैं विकल्प

अमेरिका की वर्तमान सरकार जिसके अगुवा डोनाल्ड ट्रंप है, उन्होंने अमेरिकियों की हितों की बात करते हुए एच1बी वीजा की फीस में बढ़ोतरी कर दी है. इसकी वजह से उन लोगों को बड़ा नुकसान संभव है, जो एच1बी वीजा पर अमेरिका की बड़ी कंपनियों में नौकरी करते हैं. इस फीस वृद्धि से उन भारतीय कंपनियों को भी नुकसान होगा, जो एच1बी वीजा पर अपने कर्मचारियों को अमेरिका भेजती है और उनसे वहां काम कराती है. ऐसी कंपनियों में इंफोसिस, टीसीएस, विप्रो शामिल है. चूंकि फीस में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है, पहले जो काम 1,25000 रुपए में हो जाता था अब उसके लिए 88,00000 रुपए खर्च करने होंगे. इस परिस्थितियां में भारतीय कंपनियों के पास विकल्प यह है कि वे लोकल अमेरिकी को हायर करें और जो भारतीय अमेरिका से पढ़कर वहां नौकरी की तलाश में गए थे, उन्हें अमेरिका के अलावा कनाडा, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में अवसर तलाशने होंगे.
भारतीय कंपनियां कर सकती हैं Offshoring की व्यवस्था
भारतीय आईटी कंपनियां अपने अमेरिकी क्लाइंट्स को सेवा देने के लिए अपने इंजीनियर्स को अमेरिका भेजती थी. अब वही काम ये कंपनियां Offshoring के जरिए कर सकती है. इसका अर्थ यह है कि पहले अगर कोई भारतीय आईटी कंपनी अपने 100 इंजीनियर्स को अमेरिका भेजती थी, तो अब 10 को भेजेगी और बाकी 90 लोग भारत से ही उन्हें सेवा देंगे. इसके लिए कंपनियां नए तकनीकों का सहारा लेगी और टाइमजोन की समस्या को शिफ्ट में नौकरी करवा कर दूर कर लेगी. इस तरीके से काम करके भारतीय कंपनियां अपना नुकसान होने से बचा सकती हैं.
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