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H1B Visa Fees : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत को झुकाने के लिए पहले 50% टैरिफ का हथकंडा अपनाया और जब उससे बात नहीं बनी, तो एच1बी(H-1B) वीजा का फीस बढ़ा दिया है. ट्रंप यह चाहते हैं कि भारत अमेरिकी हितों के अनुसार काम करे और विश्व की राजनीति में उनके साथ खड़ा रहे, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वे अपने नागरिकों के हितों की अनदेखी करके अमेरिका को फायदा पहुंचाने वाला कोई निर्णय नहीं करने वाले हैं. शनिवार को भी प्रधानमंत्री ने यह कहा है कि भारत आत्मनिर्भर बनेगा और विदेशी शक्तियों के आगे नहीं झुकेगा.
क्या है H1B वीजा?
H1B वीजा अमेरिका द्वारा उन विदेशी कामगारों (non-immigrant) को दिया जाता है, कुछ समय के अमेरिका जाकर अपनी क्षमता और कौशल के अनुसार नौकरी करते हैं. इनमें वैसे लोग होते हैं जिनके पास विशेष कौशल होता है- जैसे आईटी, इंजीनियरिंग, फाइनेंस, मेडिसिन और रिसर्च के क्षेत्र में कार्य करने का विशेष अनुभव. H1B वीजा पर अमेरिका जाने वाले लोग वहां बसने के लिए नहीं जाते हैं, बल्कि वे कुछ समय के लिए वहां अपना योगदान देते हैं. एच1बी वीचा की अवधि 3-6 साल तक की होती है. इस वीजा की मदद से जो विदेशी अमेरिका जाते हैं, उन्हें अमेरिकी कंपनियां अपने यहां नौकरी देती हैं.
सालाना 100,000 डॉलर का अमेरिका ने लगाया शुल्क
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने शुक्रवार को एक घोषणा पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत एच1वी आवेदनों पर सालाना 100,000 डॉलर का शुल्क लगाया जाएगा. पहले यह वीजा लगभग एक लाख रुपए में बन जाता था और अब उसके लिए लगभग 90 लाख रुपए खर्च करने होंगे. The Guardian में छपी खबर के अनुसार यह घोषणा अमेरिकी तकनीकी उद्योग के लिए एक बड़ा झटका है, खासकर उन कंपनियों के लिए जो भारत और चीन के कर्मचारियों पर बहुत अधिक निर्भर है. सालाना 65,000 कर्मचारियों को इस वीजा पर अमेरिका बुलाया जाता है, जबकि विशेष कौशल वाले 20,000 लोगों को यह वीजा दिया जाता है.
भारत को कैसे होगा नुकसान?
अमेरिका द्वारा लगाए गए इस शुल्क का सबसे ज्यादा असर भारत की आईटी कंपनियों को होगा, जो अपने कर्मचारियों को एच1वीजा पर अमेरिका भेजती थीं. 21 सितंबर से नया शुल्क प्रभावी हो जाएगा, कहने का अर्थ यह है कि अब अगर कोई भारतीय कंपनी अपने कर्मचारियों को अमेरिका भेजती है, तो उसे 100,000 अमेरिकी डॉलर खर्च करना होगा. यह आईटी कंपनियों मसलन TCS, Infosys, Wipro और HCL जैसी कंपनियों के लिए बड़ा नुकसान है.
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भारत की ये आईटी कंपनियां अपने अमेरिकी ग्राहकों के लिए सॉफ्टवेयर डेवलमेंट का काम करती हैं, साथ ही उन्हें कंसल्टेंसी भी उपलब्ध कराती है. इन कंपनियों के लगभग सभी साॅफ्टवेयर डेवलपमेंट सेंटर भारत में हैं, लेकिन जब इनके ग्राहक या क्लाइंट उनसे सपोर्ट चाहते हैं जैसे साॅफ्टवेयर की टेस्टिंग और उसे लागू करने में तो ये भारतीय कंपनियां अपने कर्मचारियों को एच1वीजा पर अमेरिका भेजती है. अब जबकि अमेरिका भेजने का खर्च बहुत ज्यादा हो जाएगा तो कंपनियां अपने कर्मचारियों को भेजने में सोचेंगी, जिससे उनकी सर्विस पर असर होगा और इससे उनकी छवि खराब होगी. मजबूरन इन भारतीय कंपनियों को अमेरिका में वहां के लोगों को हायर करना पड़ेगा जब मोटी तनख्वाह मांगेंगे. इससे कंपनी को बड़ा नुकसान है.
अमेरिकी कंपनियां भी भारतीयों को नौकरी देने से बचेंगी
गूगल, अमेजन जैसी कंपनियां भारत से अपनी कंपनियों में कर्मचारी नियुक्त करती हैं और उन्हें एच1वीचा दिलाकर अमेरिका बुला लेती हैं. अब जबकि फीस में बहुत ज्यादा वृद्धि कर दी गई है, तो ये कंपनियां भारतीयों की नियुक्ति से बचेगी, इससे भारतीय प्रतिभाओं को ही नुकसान होगा. The Guardian की रिपोर्ट के अनुसार 2025 की पहली छमाही में, अमेजन के 10,000 से अधिक एच-1बी वीजा स्वीकृत हुए थे, जबकि माइक्रोसॉफ्ट और मेटा के 5,000 से अधिक वीजा स्वीकृत हुए थे. इन आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि अमेरिकी कंपनियां कितनी बड़ी संख्या मे एच-1वीजा के तहत अपने यहां नौकरियां देती हैं,लेकिन अब स्थिति बदल सकती है, जिसका असर भारतीय आईटी सेक्टर और इंजीनियर्स पर भी पड़ेगा.
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