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GST Reform And Jharkhand : केंद्र सरकार ने जीएसटी के टैक्स स्लैब में बदलाव करके आम आदमी को बड़ी राहत तो दी है, लेकिन कई राज्य इस रिफाॅर्म से खुश नहीं हैं, जिनमें से एक झारखंड भी है. जीएसटी कांउसिल की बैठक में झारखंड ने अपने विरोध को दर्ज भी कराया था. झारखंड के अलावा जिन राज्यों ने जीएसटी रिफाॅर्म पर आपत्ति दर्ज कराई उनमें हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, पंजाब, तमिलनाडु, तेलंगाना और बंगाल हैं. इन सभी राज्यों में बीजेपी की सरकार नहीं है.- Intro
जीएसटी सुधार का झारखंड पर क्या होगा असर
जीएसटी रिफाॅर्म के बाद टैक्स स्लैब टू टियर स्ट्रक्चर में होंगे. सरकार ने टैक्स स्लैब को 5% और 18% में बांट दिया है. 12 और 28 प्रतिशत के स्लैब को खत्म कर दिया गया है. सरकार ने घरेलू मांग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से साबुन से लेकर छोटी कारों तक सैकड़ों उपभोक्ता वस्तुओं पर जीएसटी दरों में कटौती की है. अब बाजार में डिमांड बढ़ने से वस्तुओं की बिक्री तो बढ़ेगी, लेकिन उसपर टैक्स कम लगेगा. इस टैक्स स्लैब से झारखंड को नुकसान होगा और उसका जीएसटी संग्रह कम हो जाएगा. जीएसटी संग्रह कम होने से राजस्व प्रभावित होगा.यही वजह है कि झारखंड ने जीएसटी रिफाॅर्म पर आपत्ति दर्ज कराते हुए केंद्र सरकार से भरपाई की मांग की है.
जीएसटी रिफाॅर्म पर झारखंड ने क्या आपत्ति दर्ज कराई
जीएसटी रिफाॅर्म पर झारखंड के वित्तमंत्री राधाकृष्ण किशोर ने मीटिंग से पहले और मीटिंग में यह कहा है कि हमें 2,000 करोड़ प्रतिवर्ष का नुकसान होगा. अत: हमें इस क्षतिपूर्ति की गारंटी दी जाए. वित्त मंत्री ने कहा कि झारखंड एक ऐसा राज्य है जहां की अर्थव्यवस्था खनिज आधारित है. झारखंड खनिज का उत्पादन करता है, लेकिन कोयला–स्टील जैसे उत्पादकों का 75–80% बाहर के राज्यों को जाता है. अब इसका असर यह होता है कि कोयला और स्टील जैसे उत्पादों का GST उन राज्यों को मिलता है जहां इनका उपभोग होता है, क्योंकि जीएसटी डेस्टिनेशन-बेस्ड टैक्स है. इसका परिणाम यह होता है कि अगर दिल्ली में स्टील ज्यादा बेची गई तो आमदनी दिल्ली को ज्यादा होगा, जबकि झारखंड को इससे फायदा कम मिलेगा. इसलिए झारखंड ने क्षतिपूर्ति की मांग की है.
झारखंड में मांग बढ़ने की संभावना कम : अर्थशास्त्री हरेश्वर दयाल
केंद्र सरकार ने जीएसटी को तर्कसंगत बनाने का प्रयास किया है, जो स्वागत योग्य है. करों के सरलीकरण से आम आदमी और व्यापारी दोनों को लाभ होता है, लेकिन करों के इस स्वरूप से झारखंड को नुकसान होगा. उक्त बातें अर्थशास्त्री हरेश्वर दयाल ने प्रभात खबर के साथ खास बातचीत में कही. उन्होंने बताया कि सरकार ने जीएसटी के टैक्स स्लैब में बदलाव डिमांड को बढ़ाने के लिए किया है. इसका कारण यह है कि अमेरिकी टैरिफ ने हमारे सामानों की मांग वहां कम कर दी है. अब सरकार इसकी भरपाई देश में डिमांड को बढ़ाकर करना चाह रही है. सरकार के इस प्रयास से टैरिफ का असर कितना कम होगा, यह बात अलग है, लेकिन यहां गौर करने वाली बात यह है कि झारखंड के एक गरीब राज्य है, जहां आम आदमी की क्रय शक्ति यानी सामान खरीदने की क्षमता कम है. यहां प्रति व्यक्ति आय भी अन्य राज्यों की तुलना में कम है. 2023–24 में झारखंड का प्रति व्यक्ति वार्षिक आय एक लाख पांच हजार दो सौ चौहत्तर ( 105274) रुपए था. इसका अर्थ यह है कि एक झारखंडी की प्रतिमाह आय 9 हजार रुपए के करीब है. देश के केवल दो राज्य (बिहार एवं उत्तर प्रदेश) की प्रति व्यक्ति वार्षिक आय झारखंड से कम है. आय कम होने की वजह से यहां उपभोग (consumption) भी कम होता है. इसका अर्थ यह है कि जीएसटी रिफाॅर्म के बाद भी यहां डिमांड उस अनुपात में नहीं बढ़ेगी कि सरकार की क्षतिपूर्ति हो जाए. डिमांड उन राज्यों में ज्यादा बढ़ेगा, जो अमीर हैं और जहां प्रति व्यक्ति आय अधिक है. परिणाम यह होगा कि कुछ वर्षों में उनके राजस्व में सुधार हो जाएगा.
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राज्यों को CGST से मिलने वाले अंशदान में भी कमी आएगी
जीएसटी रिफाॅर्म से बेशक कर वसूली में कमी आएगी. इस बात को समझाते हुए अर्थशास्त्री हरेश्वर दयाल बताते हैं कि जीएसटी में केंद्र सरकार का भी हिस्सा होता है. अब चूंकि टैक्स कम कर दिया गया है तो केंद्र के हिस्से में जो कर जाता था यानी CGST उसमें भी कमी आएगी. पहले यह होता था कि केंद्र सरकार CGST में से सभी राज्यों को अंशदान देती थी, अब उस अंशदान में भी कमी आएगी, जो झारखंड के लिए बड़ी चिंता का विषय है. इसी वजह से झारखंड सरकार ने कम से कम पांच साल के लिए क्षतिपूर्ति की मांग की है.
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