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COP29 से जगी जलवायु वित्त की उम्मीदें, ग्रीन एनर्जी का लक्ष्य हासिल करने में क्या हैं चुनौतियां

COP29 महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि इस सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन से आजीविका और जीवन को हो रहे नुकसान पर विचार होगा और अमेरिका जैसे विकसित देशों की भूमिका तय की जाएगी कि वे किस तरह और कितना सहयोग उन देशों को करेंगे जो जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित होंगे.

COP29 : अजरबैजान की राजधानी बाकू में वार्षिक संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन महासम्मेलन COP29 की शुरुआत हो चुकी है. यह सम्मेलन 11-22 नवंबर तक आयोजित किया गया है. इस सम्मेलन का उद्देश्य ग्लोबल वार्मिंग को सीमित रखने के पेरिस समझौते के लक्ष्यों को आगे बढ़ाना है.


COP29 में दुनिया के लगभग 200 देशों के वार्ताकार जुटे हैं. पेरिस समझौते के बाद COP29 सबसे महत्वपूर्ण जलवायु शिखर सम्मेलनों में से एक हो सकता है. जो ग्लोबल वार्मिंग को 1.5°C तक सीमित रखने और जलवायु वित्त, एनर्जी ट्रांजिशन और कार्बन मार्केट जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर केंद्रित होगा. विकसित देश इस सम्मेलन से क्लाइमेट फाइनेंस यानी जलवायु वित्त की अनेक उम्मीदें कर रहे हैं.


COP29 बनाम वित्त COP


विकसित देशों का 2009 में निर्धारित $100 बिलियन का लक्ष्य जो वर्ष 2020 तक हर साल विकसित देशों को विकासशील देशों को देना था और जिसे अब तक बस एक बार वर्ष 2022 में अब पुराना हो चुका है. आज के संदर्भ में इसकी आवश्यकता बहुत अधिक है. ऐसे में विकासशील देश, विकसित देशों से जलवायु वित्त में $1 ट्रिलियन प्रति वर्ष का योगदान की मांग कर रहे हैं. इनमें भारत भी शामिल है जो दक्षिण के देशों का एक प्रमुख प्रतिनिधि है.


अफ्रीकी समूह ने वित्त की गुणवत्ता पर अधिक ध्यान देने के साथ विकासशील देशों के लिए प्रति वर्ष 1.3 ट्रिलियन डॉलर का लक्ष्य प्रस्तावित किया है. अरब समूह का कहना है कि लक्ष्य विकसित से लेकर विकासशील देशों तक 1.1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर होना चाहिए, जिसमें 100 बिलियन का बकाया शामिल नहीं है. कुल मिलाकर COP29 में जलवायु वित्त को बढ़ावा देने और कमजोर देशों के लिए नए आर्थिक लक्ष्यों पर सहमति बनने की उम्मीद है. इसलिए COP29 इस वर्ष ‘वित्त COP’ के रूप में देखा जा रहा है.


UN Climate Change Conference में एनडीसी और वित्त


नेशनल डिटरमाइंड कॉन्ट्रीब्यूशन (NDC) यानी राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान, जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए पेरिस समझौते के तहत तय किए गए वैश्विक लक्ष्यों को हासिल करने के लिए हर देश अपना एनडीसी निर्धारित करते हैं. यानी वे इस बात की जानकारी देते हैं कि जलवायु परिवर्तन में उनके देश की कितनी भूमिका होगी. वित्त पर यूएनएफसीसीसी की स्थायी समिति (एससीएफ) की दूसरी आवश्यकता निर्धारण रिपोर्ट के अनुसार, विकासशील देशों को अपने घोषित राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) को प्राप्त करने के लिए 2030 तक संचयी रूप से $6.852 ट्रिलियन की आवश्यकता होगी. वैश्विक दक्षिण देशों ने 2030 तक 5.9 ट्रिलियन डॉलर के अनुमान का हवाला देते हुए अकेले राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) को लागू करने की आवश्यकता बताई है.

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भारत की नजर में ऊर्जा परिवर्तन


दक्षिणी देशों को अपने ऊर्जा के इस्तेमाल को जीवाश्म ईंधन की जगह साफ स्वच्छ ऊर्जा में बदलने के लिए सालाना $4 ट्रिलियन की ज़रूरत है. जीरो कार्बन एनालिटिक्स के आकलन के अनुसार भारत के रिन्यूएबिल ऊर्जा क्षेत्र में निवेश में साल 2020 से वृद्धि हो रही है और वर्ष 2023 में यह बढ़कर 12.4 बिलियन डॉलर के स्‍तर पर पहुंच गया. इस बढ़ोतरी के बावजूद निवेश की मात्रा साल 2030 तक 500 गीगावाट स्वच्छ ऊर्जा उत्‍पादन क्षमता के लक्ष्‍य को हासिल करने के लिए ये अनुमानित 200 बिलियन डॉलर के आंकड़े से बेहद कम है. नीति आयोग के अनुसार, भारत की ऊर्जा प्रणालियों को नेट-जीरो पाथवे के लिए तैयार करने के लिए 2047 तक 250 बिलियन डॉलर के वार्षिक निवेश की आवश्यकता है. भारत का आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 बताता है कि पेरिस समझौते के तहत अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए ऊर्जा में बदलाव लाने के लिए भारत को 2030 तक लगभग 2.5 ट्रिलियन डॉलर की आवश्यकता होगी.


COP29 में हानि और क्षति कोष


संयुक्त अरब अमीरात में आयोजित COP28 में 550 मिलियन डॉलर के हानि और क्षति कोष(LDF) का सर्वसम्मिति से फैसला लिया गया था. जो विकसित देशों द्वारा उन देशों की मदद के लिए है जो जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं. अब COP29 बाकू में इसे अमली जामा पहनाए जाने का समय आ गया है इसका उद्देश्य जलवायु आपदाओं से प्रभावित समुदायों को वित्तीय सहायता प्रदान करना है, जिसमें भारत पारदर्शी शासन व्यवस्था की मांग कर रहा है.

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(लेखिका पर्यावरणविद्‌ हैं)

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