13.1 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

Chhath Puja 2025 : छठ महापर्व में पंडित-पुजारी की जरूरत नहीं, मन के भाव से होती है कठिन व्रत की पूजा

Chhath Puja 2025 : धरती पर सूर्य जीवन दाता है. ऋग्वेद में यह जिक्र है कि सूर्य के एक स्वरूप की आराधना से जीवन, स्वास्थ्य, संतान और समृद्धि मिलती है. छठ महापर्व का जिक्र वेद, पुराण, रामायण और महाभारत में भी मिलता है. इसकी शुरुआत को लेकर तरह-तरह की कथाएं प्रचलित हैं. ऐसी मान्यता है कि जब कोई मंदिर नहीं था, तब मानव सूर्य को जल अर्पित कर उनकी पूजा करता था. प्रकृति से अपने लिए सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य की कामना करता था. रामायण में जिक्र मिलता है कि माता सीता ने छठ किया था, वहीं महाभारत में यह बताया जाता है कि सूर्य पुत्र कर्ण प्रतिदिन सुबह और शाम के वक्त सूर्य को जल अर्पित करता था, यहीं से सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा विकसित हुई. छठ पर्व का कठिन व्रत और इसकी सरलता इसे आम लोगों से जोड़ती है. यह पर्व प्रकृति से हमारे जुड़ाव को दर्शाता है, व्रती जिस प्रकार पानी में खड़े होकर सुबह और शाम के वक्त सूर्य की आराधना करता है, वह वैज्ञानिक दृष्टिकोण से काफी अच्छा माना जाता है, इससे व्रती को लाभ मिलता है.

Chhath Puja 2025 : छठ महापर्व की शुरुआत 25 अक्टूबर से होने वाली है. इस चार दिवसीय महापर्व की शुरुआत भले ही बिहार से हुई हो, लेकिन आज यह त्यौहार ग्लोबल हो चुका है. एक कठिन लेकिन बहुत ही सहज व्रत, जिसमें लोगों की अपार आस्था है. एक ऐसा व्रत, जिसमें बिना पुरोहित और मंत्र के मन की शुद्धता और समर्पण से ईश्वर की आराधना की जाती है. छठ पर्व की सहजता ने इसे लोगों के दिलों से जोड़ा है और इसी ने इसे महापर्व का दर्जा भी दिया है. आइए जानते हैं क्या है छठ महापर्व.

क्या है छठ महापर्व?

छठ महापर्व चार दिनों का होता है और इस पर्व में व्रत करने वाले के अलावा पूरे परिवार की भागीदारी होती है. यह सामूहिकता का त्योहार है, जिसमें सहयोग के लिए सहर्ष लोग तैयार हो जाते हैं. छठ महापर्व में भगवान सूर्य की पूजा की जाती है और उनसे पूरे परिवार, संतान के लिए सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य की कामना की जाती है. छठ महापर्व षष्ठी तिथि को मनाया जाता है, इसलिए देवी के छठे स्वरूप जिनकी पूजा संतान रक्षा के लिए की जाती है उनकी पूजा भी छठी मैया के रूप में होती है. बच्चों के जन्म के बाद भी छठे दिन इसी देवी छठी मैया की पूजा होती है. बंगाल में दुर्गा पूजा के अवसर पर षष्ठी तिथि को देवी के इसी स्वरूप की पूजा है, इस बारे में शिवालय ट्रस्ट कोलकाता के श्री ब्रह्मानंद (अभिजीत शास्त्री) बताते हैं कि षष्ठी तिथि को बंगाल में माता से संतान की रक्षा के लिए वरदान माना जाता है और उनकी पूजा की जाती है. दुर्गा पूजा के समय जो षष्ठी तिथि पड़ती है, उसे दुर्गा षष्ठी कहते हैं और इस दिन माताएं देवी दुर्गा के सामने अपनी संतान की रक्षा और उसके सुख-समृद्धि के लिए पूजा अर्चना करती हैं.

क्या छठ महापर्व बिना पंडित या पुजारी के होता है संपन्न?

छठ महापर्व की खासियत में यह बात सबसे अहम है कि इस पूजा के लिए किसी पंडित या पुजारी की जरूरत नहीं होती है. छठ में व्रत करने वाला व्रती, पूरी शुद्धता के साथ व्रत की शुरुआत करता है और भगवान सूर्य और छठी मैया की आराधना करता है. व्रती कोई भी हो सकता है- स्त्री, पुरुष, विवाहित, अविवाहित या फिर विधवा या विधुर. व्रत में काफी सरलता है, किसी कठिन मंत्र की जरूरत नहीं है. बस आप अपनी इच्छा से भगवान के सामने समर्पण करें और उनसे विनती करें. अपने शब्दों में अपनी शुद्ध भावना के साथ. पूजा में किसी कर्मकांड की जरूरत नहीं है. कुछ दीये जलते हैं, अगरबत्तियां जलाई जाती है और को फूल चढ़ाए जाते हैं अगर उपलब्ध हो तो. आटा-गुड़ से बना टेकुआ और कोई भी मौसमी फल भगवान को अर्पित किया जाता है. यह सबकुछ व्रती खुद करता है उसे पुजारी की जरूरत नहीं होती है. हां, परिवार और पड़ोसी इस पूजा में सहभागी होते हैं.

कैसे होती है छठ महापर्व की शुरुआत?

Chhath-Puja
छठ महापर्व

छठ महापर्व कार्तिक महीने की शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि से प्रारंभ हो जाता है. इस दिन व्रती द्वारा नहाय खाय का आयोजन किया जाता है. नहाय खाय का अर्थ है नहाकर खाना यानी व्रत के लिए शुद्धता की तैयारी. नहाय खाय के दिन व्रती बिलकुल सात्विक भोजन करते हैं, जिसमें अरवा चावल का भात, कद्दू की सब्जी और चने का दाल बनाया जाता है. इसके अलावा कुछ स्थानीय चीजें भी शामिल रहते हैं, जैसे बचका यानी पकौड़ी भी बनाया जाता है. भोजन में लहसुन-प्याज का प्रयोग नहीं होता है और बिलकुल सादे तरीके से भोजन बनाया जाता है. इस दिन से व्रत का प्रारंभ माना जाता है. व्रती बिस्तर पर सोना छोड़ देते हैं और जमीन पर चटाई या चादर डालकर सोते हैं और भगवान की पूजा करते हैं.

क्या है खरना और क्या है इसका महत्व?

खरना को छठ महापर्व का दूसरा दिन माना जाता है. इस दिन व्रती सुबह से सूर्यास्त तक निर्जला व्रत पर रहते हैं. वे अपने शरीर और मन को पवित्र करते हैं और खुद को तीसरे दिन के कठिन व्रत के लिए तैयार भी करते हैं. खरना के दिन सूर्यास्त के बाद व्रती गुड़ से बनी खीर और रोटी या पूरी का भोग भगवान को अर्पित करता है और पूजा के बाद खुद भी उसे ग्रहण करता है. व्रती के खाने के बाद खरना के महाप्रसाद का वितरण किया जाता है. जिनकी भी छठ पूजा में श्रद्धा है, वे खरना का प्रसाद मांगकर खाते हैं और पूजा में सहभागी बनते हैं.

डूबते सूर्य को क्यों दिया जाता है अर्घ्य?

छठ महापर्व एकमात्र ऐसा पर्व है जिसमें डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. अर्घ्य देने का अर्थ है आदरपूर्वक उनकी पूजा करना है. अर्घ्य देने के लिए व्रती घंटों पानी में खड़े रहते हैं. प्रकृति के दृश्य देव सूर्य की पूजा करते हैं और सूप में प्रसाद उन्हें अर्पित करते हैं. पानी से उन्हें अर्घ्य दिया जाता है. डूबते सूर्य की पूजा यह भी बताता है कि जीवन में उतार-चढ़ाव लगे रहते हैं, डूबता सूर्य एक नई आशा और उम्मीद के साथ अगले दिन फिर उदित होगा. इस दिन व्रती पूरी तरह निर्जला उपवास पर रहते हैं और पूरी निष्ठा और समर्पण से भगवान की आराधना करते हैं. व्रती को तालाब, नदी या फिर घर ऐसी व्यवस्था करनी होती है कि वह स्नान के बाद गीले कपड़े में ही पानी में खड़े रहकर भगवान की आराधना करेंगे और सूर्यास्त के वक्त सूर्य देव को अर्घ्य देंगे.

चौथे दिन उगते सूर्य की पूजा से समाप्त होता है महापर्व

चौथे दिन व्रती सुबह उठकर स्नान के बाद सूर्यास्त से पहले ही पानी में खड़े हो जाते हैं और सूर्योदय की प्रतीक्षा करते हैं. जब वे पानी में खड़े होते हैं, तो उनका मन भगवान से विनती करता है और उनसे यह कामना करता कि वे उनके बाल-बच्चों और परिवार पर अपनी कृपा बनाए रखें. जब सूर्योदय होता है, तो भगवान को अर्घ्य दिया जाता है और उनकी पूजा होती है, फिर समाप्त होता है छठ महापर्व और व्रती का व्रत भी. सूर्योदय के अर्घ्य के बाद ही व्रती अपना उपवास तोड़ते हैं और पानी या कुछ और ग्रहण करते हैं.

Puja Of Chhath Mahpurav
छठ महापर्व की शुरुआत 25 अक्टूबर से

कितने दिनों का होता है छठ महापर्व?

छठ महापर्व चार दिनों का होता है. नहाय-खाय से इसकी शुरुआत होती है और उगते सूर्य की पूजा के साथ व्रत संपन्न होता है.

छठ में किस देवता की पूजा होती है?

छठ में सूर्य देवता की पूजा होती है.

2025 में छठ पर्व कब मनाया जाएगा?

2025 में छठ पर्व 25 से 28 अक्टूबर के बीच मनाया जाएगा.

क्या छठ में मौसमी फल-सब्जियां प्रसाद स्वरूप चढ़ाई जाती हैं?

हां, छठ में मौसमी फल-सब्जियां प्रसाद स्वरूप चढ़ाई जाती हैं.

क्या छठ में गीतों का बहुत महत्व है?

हां, छठ पर्व में गीतों का बहुत महत्व है. पूजा में पुजारी और मंत्र का प्रयोग नहीं होता है, इसलिए भक्त अपनी भक्ति और आस्था प्रदर्शित करने के लिए गीतों का सहारा लेते हैं.

ये भी पढ़ें : शनिवारवाड़ा में 3 महिलाओं के नमाज पढ़ने से मचा बवाल, कभी मराठों के गौरव का प्रतीक किला था

Amitabh Bachchan : अमिताभ बच्चन हमेशा यह क्यों कहते हैं- मन का हो तो अच्छा और मन का ना हो तो और भी अच्छा?

Rajneesh Anand
Rajneesh Anand
इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक. प्रिंट एवं डिजिटल मीडिया में 20 वर्षों से अधिक का अनुभव. राजनीति,सामाजिक मुद्दे, इतिहास, खेल और महिला संबंधी विषयों पर गहन लेखन किया है. तथ्यपरक रिपोर्टिंग और विश्लेषणात्मक लेखन में रुचि. IM4Change, झारखंड सरकार तथा सेव द चिल्ड्रन के फेलो के रूप में कार्य किया है. पत्रकारिता के प्रति जुनून है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel