World Glaucoma Week : विश्व ग्लूकोमा सप्ताह के दौरान अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी एम्स के डॉक्टरों की यह रिपोर्ट ध्यान देने लायक है, जिसमें उन्होंने स्टेरॉयड्स के लगातार इस्तेमाल से ग्लूकोमा (काला मोतिया) होने की आशंका जतायी है. रिपोर्ट के मुताबिक, लगातार छह सप्ताह से ज्यादा समय तक स्टेरॉयड्स या इससे युक्त किसी क्रीम, स्प्रे या इनहेलर लेने पर आंखों की रोशनी जा सकती है. स्टेरॉयड्स का निरंतर इस्तेमाल करने से आंखों की ऑप्टिक नर्व को नुकसान पहुंच सकता है.
चूंकि ये नसें आंखों को दिमाग से जोड़ती हैं, ऐसे में, अगर ये नष्ट हो गयीं, तो आंखों की रोशनी का वापस आना संभव नहीं है. रिपोर्ट के मुताबिक, परिवार में किसी को ग्लूकोमा की समस्या होने पर अन्य सदस्यों को यह बीमारी होने की आशंका 10 गुना ज्यादा होती है. उच्च रक्तचाप, मधुमेह और थायरॉयड के मरीजों को भी खास सावधानी बरतनी चाहिए. अगर तनाव अधिक है, तब भी शरीर में कार्टिसोल हार्मोन बढ़ जाता है, जिससे ग्लूकोमा होने की आशंका बढ़ जाती है.
एम्स के चिकित्सकों ने पहले भी आगाह किया था कि बिना डॉक्टरी सलाह के लंबे समय तक स्टेरॉयड युक्त आइड्रॉप के इस्तेमाल से ग्लूकोमा हो सकता है. कई बार लोग आंखों में एलर्जी या लालिमा की वजह से आइ ड्रॉप खरीद लेते हैं और लंबे समय तक इसका इस्तेमाल करने लगते हैं. स्टेरॉयड्स युक्त होने के कारण गोरे होने की क्रीम भी खतरनाक है. विशेषज्ञों का कहना है कि अपने देश में स्टेरॉयड के गलत इस्तेमाल की वजह से यह बीमारी हो रही है. सिर्फ यही नहीं कि ग्लूकोमा देश में अंधेपन की प्रमुख वजहों में से एक है, बल्कि इसके लक्षण भी बहुत कम हैं, जिसकी वजह से लोगों को पता नहीं चल पाता. खासकर शुरुआती चरण में ग्लूकोमा का कोई लक्षण नजर नहीं आता. जब बीमारी बढ़ जाती है, तब लोग इलाज के लिए पहुंचते हैं. पर तब तक नस इतनी खराब हो चुकी होती है कि रोशनी वापस आना मुश्किल हो जाता है.
विशेषज्ञों के मुताबिक, चश्मे का नंबर बार-बार बदलना इस बीमारी का प्रमुख लक्षण है. आंखों और सिर में दर्द भी इसका लक्षण है. जिसे यह बीमारी होती है, उसे अचानक दूर की चीजें धुंधली दिखने लगती हैं. ऐसे में, 40 साल से अधिक उम्र के लोगों को हर दो-तीन साल में एक बार, जबकि 60 से अधिक उम्र के लोगों को हर साल आंखों की जांच करवानी चाहिए. इससे समय रहते ग्लूकोमा से बचा जा सकता है.