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चौंकाने वाले हैं महिला जनप्रतिनिधियों के हलफनामे

एडीआर ने हलफनामा दाखिल करने वाली देश की 513 महिला सांसदों और विधायकों में से 512 के हलफनामों का अध्ययन किया. इनमें से 143 महिला सांसद और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं. इनमें भी 78, यानी 15 प्रतिशत के खिलाफ बेहद गंभीर मामले हैं.

महिलाओं का नाम आते ही मन में ऐसी छवि आती है, जहां कोमलता है, चिंता है, तर्क हैं, विश्लेषण हैं, जिम्मेदारी, मानवीयता और गरिमा है. ऐसी स्त्रियां अपने परिवारों में, आसपास खूब देखने में आती हैं. ये स्त्रियां जीवन को न केवल प्रभावित करती हैं, गति भी देती हैं, समय-समय पर वे याद भी आती हैं और उनका उदाहरण देते हम नहीं थकते. मगर पिछले दिनों निर्वाचन आयोग में चुनाव लड़ने वाली महिलाओं ने जो हलफनामे दाखिल किये, वे चौंकाने वाले थे. उन महिलाओं में बहुत-सी चुनी भी गयीं. वह रिपोर्ट देश की राजनीति और चुनावों पर पैनी नजर रखने वाली संस्था एडीआर, यानी एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने तैयार की थी. इसमें बताया गया है कि महिला विधायकों व सांसदों में 28 प्रतिशत ऐसी हैं, जिन पर आपराधिक मामले दर्ज हैं.

एडीआर ने हलफनामा दाखिल करने वाली देश की 513 महिला सांसदों और विधायकों में से 512 के हलफनामों का अध्ययन किया. इनमें से 143 महिला सांसद और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं. इनमें भी 78, यानी 15 प्रतिशत के खिलाफ बेहद गंभीर मामले हैं. लोकसभा की कुल 75 महिला सांसदों में से 24, यानी 32 प्रतिशत के नाम आपराधिक मामले हैं. राज्यसभा में कुल 37 महिला सांसद हैं. उनमें से 10 के खिलाफ ऐसे आपराधिक मामले हैं. एडीआर की इसी रिपोर्ट के अनुसार, पूरे देश की महिला सांसदों और विधायकों की औसत संपत्ति बीस करोड़, चौंतीस लाख रुपये है. इन सबकी कुल संपत्ति 10,417 करोड़ रुपये है. महिला विधायकों में आठ ऐसी भी हैं, जिनके पास अरबों रुपये की संपत्ति है. यूं तो ये सभी गरीबी और गरीब के भले की बात करके चुनाव जीतती हैं. ये अपने आप को आम आदमी, आम महिला साबित करने में पीछे नहीं रहतीं. लेकिन इनके जीवन में पैसे और संसाधनों की कोई कमी नहीं. लेकिन फिर भी अपने देश में मतदाता इन्हें चुनते हैं, क्योंकि अपराध की दुनिया आकर्षक लगती है. अपराधी महिला हो या पुरुष, ताकतवर नजर आता है. वैसे भी जो जितना बड़ा अपराधी है, वह जनता के बीच अपनी रॉबिनहुड वाली छवि भी बनाता है. वह राजा हरिश्चंद्र से भी अधिक दानी और अपने को सत्य का अवतार कहता है. इसीलिए लोग सोचते हैं कि वर्षों की कानूनी प्रक्रिया के मुकाबले कोई अपराधी उनकी समस्याओं को आसानी से सुलझा सकता है, क्योंकि लोग उससे डरते हैं. फिर यदि महिला अपराधी है और राजनीति में भी है, तो कहने ही क्या! करेला और नीम चढ़ा कहावत ऐसे ही नहीं बनी होगी.

अक्सर देखा गया है कि अपने यहां बहुत से अपराधी चुन लिये जाते हैं. वे हाथ जोड़े अपनी बहुत मासूम-सी छवि भी पेश करते हैं. वे अपने धन और बाहुबल से बार-बार चुनाव जीतते हैं. राजनीतिक दल उनके दरवाजे पर हाथ जोड़कर, टिकट लेकर खड़े रहते हैं कि हुजूर, आइए और हमें उपकृत कीजिए. क्योंकि राजनीतिक दल मानते हैं कि ये ही चुनाव जीत सकते हैं. फिर वे अपने घर की महिलाओं को भी, जिनमें पत्नियां, मां, बहन, बेटी, बहू कोई भी हो सकती है, राजनीति में ले आते हैं. अपराध और राजनीति का यह गठजोड़ पूरे देश में है. कोई भी दल इससे मुक्त नहीं है. बल्कि कहना यह चाहिए कि इस तरह के गठजोड़ पूरी दुनिया में हैं. हॉलीवुड में ऐसी अनेक फिल्में भी बन चुकी हैं.

चुनाव में जो महिलाएं चुनी जाती हैं, उन्हें दिखाकर बताया जाता है कि देखो, महिलाएं ग्लास सीलिंग तोड़ रही हैं. वे सदियों से बनायी गयी पुरुष वर्चस्व की बेड़ियों को तोड़ रही हैं. वे राजनीति में आ रही हैं. उनकी संख्या जितनी बढ़ेगी, देश की समस्याएं उसी अनुपात में कम होती जायेंगी. देश और समाज आगे बढ़ेगा. अब ये संख्या चाहे आरोपियों, अपराधियों की ही क्यों न हो, लैंगिक विमर्श करने वाले सिर्फ इसे संख्या बल से देखते हैं. ऐसा क्यों है कि किसी स्त्री की सफलता ही उल्लेखनीय है, उसके काम नहीं? यह भी सोचने की बात है कि वे पुलिस अधिकारी कितने निडर रहे होंगे, जिन्होंने इन मामलों को दर्ज किया होगा. वर्ना तो महिला सांसद या विधायक के खिलाफ मामला दर्ज करने में अक्सर पुलिस पहल नहीं करती.

दरअसल सत्ता अपने तर्क से चलती है. इसे निरंकुशता कहते हैं. यह महिला-पुरुष नहीं देखती. अपनी आलोचना न पुरुष नेताओं को बर्दाश्त होती है, न महिला नेताओं को. अपने आलोचकों को शत्रु मानकर कोई नेता किसी भी हद तक जा सकता है, इसमें महिला-पुरुष का कोई भेद नहीं होता. उद्देश्य विरोधी को सबक सिखाना होता है. अकसर ऐसी घटनाएं सामने भी आती रहती हैं. महिला और अपराध कुछ अजीब-सा नहीं लगता? कहा तो यह भी जाता है कि यदि महिलाओं को दुनिया की कमान सौंप दी जाए, तो यह दुनिया अपराधों से मुक्त हो जायेगी. लेकिन ऐसे उदाहरणों की कमी नहीं है, जहां इसका विलोम भी सच है.
(ये लेखिका के निजी विचार हैं.)

क्षमा शर्मा
क्षमा शर्मा
वरिष्ठ टिप्पणीकार

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