Teacher’s Day 2025 : वर्ष 1888 में पांच सितंबर को यानी आज के ही दिन जन्मे देश के दूसरे राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के बारे में सुविदित है कि उनको अपने शिक्षक होने का इतना स्वाभिमान था कि वह उससे जुड़ी अपनी पहचान को राष्ट्रपति, दार्शनिक और राजनयिक समेत दूसरी सारी पहचानों से ऊपर रखते थे. इसीलिए उनके राष्ट्रपति रहते उनके शिष्यों ने उनका जन्मदिन मनाने का आग्रह किया, तो उन्होंने उनसे कहा कि बेहतर होगा कि वे उसे शिक्षक दिवस के रूप में मनायें. तभी से हर पांच सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाने लगा. आज भी इस दिन शिक्षकों की समस्याओं के निवारण पर विचार-विमर्श और उनके योगदानों का स्मरण किया जाता है.
राधाकृष्णन ने 21 वर्ष की अल्पायु में ही दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त कर ली थी. तदुपरांत मैसूर प्रेसीडेंसी कॉलेज, मैसूर विश्वविद्यालय और आंध्र विश्वविद्यालय जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में शिक्षक के रूप में अपनी सेवाएं दी थीं. शिक्षक के रूप में उनकी मान्यता थी कि आनंद और खुशी का जीवन ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा के आधार पर ही संभव है और तभी, जब मानवता को उसकी उन नैतिक जड़ों की ओर वापस ले जाया जाये, जहां से व्यवस्था और स्वतंत्रता, दोनों उत्पन्न होती हैं.
लेकिन वह शिक्षकीय पृष्ठभूमि से आये इकलौते राष्ट्रपति नहीं थे. उनसे पहले और उनके बाद राष्ट्रपति का पद संभालने वाली कई विभूतियां अपने वक्त में शिक्षक थीं. पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद भी पहले शिक्षक रहे थे. उनकी मेधा तो ऐसी थी कि एक परीक्षा में उनकी उत्तर पुस्तिका का मूल्यांकन करने वाले ने उस पर टिप्पणी लिख दी थी कि ‘एग्जामिनी इज बेटर दैन एग्जामिनर’. अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि अर्जित करने के बाद उन्होंने बिहार में मुजफ्फरपुर स्थित ऐतिहासिक लंगट सिंह कॉलेज में अंग्रेजी के प्रोफेसर और बाद में प्राचार्य के रूप में अपनी सेवाएं दी थीं. जब वह कानून की पढ़ाई कर रहे थे, तब कलकत्ता सिटी कॉलेज में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में भी उन्होंने शिक्षण कार्य किया था.
डॉ राधाकृष्णन के बाद पदासीन हुए तीसरे राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन भी शिक्षाविद् और शिक्षक थे. उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में तो कार्य किया ही था, उन दिनों राष्ट्रवाद के प्रमुख केंद्र जामिया मिल्लिया इस्लामिया के संस्थापकों में भी वह एक थे, जो आजादी की लड़ाई के दौरान संकीर्ण धार्मिक/सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पैरोकारों के निशाने पर रहता था. वहां के कुलपति रहते हुए उन्होंने छात्रों को साफ-सफाई व अनुशासन की सीख देने के अभिनव प्रयोगों की कई मिसालें बनायी थीं. एक बार जब उनके कई बार के आदेश के बावजूद छात्रों ने अनुशासित रहने और साफ-सुथरे कपड़े व चमकते हुए जूते पहनकर परिसर व कक्षाओं में आने में कोताही बरती, तो वह खुद गेट पर ब्रश व पॉलिश लेकर बैठ गये तथा उधर से गुजरने वाले छात्रों के जूते पॉलिश करने लगे. लज्जित छात्रों ने न सिर्फ उनसे माफी मांगी, बल्कि उनके आदेश पर अमल करना भी आरंभ कर दिया.
नवें राष्ट्रपति डॉ शंकरदयाल शर्मा भी राजनीति के क्षेत्र में कदम रखने से पहले अकादमिक क्षेत्र में सक्रिय थे और राष्ट्रपति पद पर आसीन होने से पहले भोपाल विश्वविद्यालय में कानून के प्रोफेसर हुआ करते थे. उनके बाद राष्ट्रपति बने केआर नारायणन ने भी राष्ट्रपति और राजनयिक बनने से पहले कई वर्षों तक शिक्षण किया था. स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के बाद उन्होंने अपने कई वर्ष इस क्षेत्र को दिये थे. उनकी अकादमिक पृष्ठभूमि भी उनके करियर का महत्वपूर्ण हिस्सा थी.
मिसाइलमैन कहलाने वाले एपीजे अब्दुल कलाम भी एक समय प्रोफेसर रहे थे. वर्ष 2001 में वह चेन्नई के अन्ना विश्वविद्यालय में प्रौद्योगिकी और सामाजिक परिवर्तन के प्रोफेसर हुआ करते थे. राष्ट्रपति पद से सेवानिवृत्ति के बाद वह फिर शिक्षण व लेखन के क्षेत्र में सक्रिय हो गये थे. उन्होंने कई संस्थानों में विजिटिंग प्रोफेसर, मानद फेलो और अध्यक्ष के रूप में भी काम किया था. यही नहीं, उन्होंने युवाओं को भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित करने हेतु ‘व्हाट कैन आई गिव मूवमेंट’ भी शुरू किया था. वह युवाओं को बताते थे कि सपने वे नहीं होते, जो हम सोते हुए देखते हैं. सपने दरअसल वे होते हैं जो हमें सोने नहीं देते.
जबकि चुनौतियां ऐसी चीज नहीं हैं, जिनसे लड़ा जाये. वे ईंटों की तरह हैं, जो हमें एक दृष्टिकोण प्रदान करती हैं तथा सफल क्षणों को और मधुर बनाती हैं. उनके अनुसार मनुष्य को कठिनाइयों की आवश्यकता होती है, क्योंकि वे सफलता का आनंद लेने के लिए आवश्यक हैं. वह कहते थे कि यदि आप अपना लक्ष्य बनाकर मेहनत करेंगे, तो सफलता आपके कदम चूमेगी. तेरहवें राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी शिक्षक के रूप में ही अपना करियर आरंभ किया था. कलकत्ता विश्वविद्यालय से इतिहास और राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर और कानून की डिग्रियां हासिल करने के बाद वह कलकत्ते के ही एक कॉलेज में राजनीति विज्ञान पढ़ाते थे.

