32.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

सुरजीत पातर : अंधेरे बीच सुलगती वर्णमाला

वारिस शाह, शिवकुमार बटालवी, अमृता प्रीतम आदि रचनाकारों ने जिस पंजाबी साहित्य को अपने जीवनानुभव व अक्षरों की साधना से सींचा, सुरजीत पातर ने उसे एक नये ढंग का टटकापन और ताजगी से नवाजा.

पंजाबी भाषा के प्रसिद्ध कवि प्रोफेसर सुरजीत पातर नहीं रहे. वे जितने अच्छे कवि थे, उससे भी अधिक आकर्षक उनके कलाम की सस्वर प्रस्तुति होती थी. कुछ वैसी ही, जैसी उर्दू में वसीम बरेलवी की. लोक और शास्त्र दोनों में उनकी समान रूप से स्वीकार्यता और आवाजाही रही तथा दोनों में उनका पूरा सम्मान भी रहा.

लगभग पंद्रह साल पहले लुधियाना के पंजाब कृषि विश्वविद्यालय में सुरजीत पातर को साक्षात सुनने का अवसर मिला था. उनकी आवाज और कलाम को पेश करने का अंदाज ही कुछ ऐसा था कि सुनने वाले की आंखें डबडबा जायें. हिंदी में उनकी रचनाओं का अच्छा अनुवाद प्रोफेसर चमनलाल ने किया है, लेकिन कितना भी अच्छा अनुवाद हो, वह कवि की आत्मा के निकट नहीं पहुंचता. भाव, छंद और बिंब का सुघड़ संयोजन तो उसी भाषा में संभव है, जिसमें कवि सपने देखता है.

लुधियाना के कृषि विश्वविद्यालय में सुरजीत पातर ने जो रचना सुनायी थी, उसकी पंक्तियों की अब भी धुंधली सी याद बाकी है- ‘हुंदा सी इत्थे शख्स सच्चा वो किधर गया, पत्थरां दा शहर बिच शीशा बिखर गया.’ पटियाला, अमृतसर होते हुए सुरजीत पातर साहित्य के अध्यापक के रूप में लुधियाना पहुंचे थे. गुरू नानक देव की वाणी में लोकतत्व के वे मर्मज्ञ थे. उनकी रचनाओं के सस्वर पाठ को अगर आप सुनेंगे, तो पायेंगे कि मनुष्य का दर्द बारीक दानों की शक्ल में यत्र तत्र बिखरा हुआ है. वर्ष 2012 में भारत सरकार द्वारा ‘पद्मश्री’ से सम्मानित सुरजीत पातर ने किसानों की अनदेखी से क्षुब्ध होकर यह सम्मान लौटा दिया था.

वारिस शाह, शिवकुमार बटालवी, अमृता प्रीतम आदि रचनाकारों ने जिस पंजाबी साहित्य को अपने जीवनानुभव व अक्षरों की साधना से सींचा, सुरजीत पातर ने उसे एक नये ढंग का टटकापन और ताजगी से नवाजा. चनाब नदी के चमकीले प्रवाह में वे वारिस शाह की रची प्रेम कथा ‘हीर-रांझा’ का अक्स देखते थे. जिन दिनों चनाब पर सबसे ऊंचा पुल बन रहा था, कवि तब भी उसमें पुरानी प्रेम कथा को ढूंढ रहे थे.

पुल शीर्षक जो कविता नरेश सक्सेना ने लिखी है, सुरजीत पातर उसी पुल पर कुछ इस तरह लिखते हैं- ‘मैं जिन लोगों के लिए पुल बन गया था/ वे जब मेरे से गुजरकर जा रहे थे/ मैंने सुना मेरे बारे में कह रहे थे: वह कहां छूट गया है/ चुप सा आदमी शायद पीछे लौट गया है/ हमें पहले ही खबर थी कि उसमें दम नहीं है.’

आजादी के बाद हुई देश की तरक्की पर व्यंजना के भाव से ही शायद वे लिख रहे हैं- ‘पलकें भी खूब लम्बियां, कजला भी खूब है/ ओ तेरे सोहणे नैन दा सपना किधर गया/ सिख्खां मुसलमाना हिन्दुआं दा भीड़ बिच/ रब पूछता कि मेरा बंदा किधर गया.’ पांच नदियों के जिस भौगोलिक प्रांत से कलाविद एमएस रंधावा को प्यार था, सुरजीत पातर को भी यहां की नदी, पहाड़, जंगल और मैदान से रहा.

सुरजीत पातर के जाने से आज झेलम, सतलज, रावी, व्यास और चनाब के पानी में भी शोक की लहर उमड़ी है. उनकी कृति ‘अन्हेरे बिच सुलगती वर्णमाला’ का हिंदी अनुवाद ‘अंधेरे में सुलगती वर्णमाला’ के नाम से हुआ. इस कृति के लिए कवि को साहित्य अकादमी सम्मान से विभूषित किया गया. आज जब कवि सुरजीत पातर हम सबसे विदा ले गये हैं, तब उनकी कविताएं ही अंधेरे में उजाला भरेंगी.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें