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मोटापे और कुपोषण से निपटने की रणनीति

Obesity-and-Malnutrition : जब एक बच्चा सही पोषण पाता है, अच्छी तरह सीखता है और मजबूती से आगे बढ़ता है, तब हम केवल एक जीवन नहीं, बल्कि संपूर्ण राष्ट्र की दिशा बदलते हैं. बच्चों को पर्याप्त पोषण, शिक्षा और सामुदायिक देखभाल प्रदान कर हम एक सुरक्षित और समृद्ध भविष्य में निवेश कर रहे हैं- विकसित भारत के भावी नेतृत्व को आकार दे रहे हैं.

Obesity-and-Malnutrition : वर्ष 2018 में माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में भारत के पोषण परिदृश्य को रूपांतरित करने के लिए एक प्रमुख योजना के रूप में पोषण अभियान शुरू किया गया था. महिलाओं और बच्चों के पोषण व कल्याण पर केंद्रित यह मिशन कुपोषण के विरुद्ध लड़ाई में एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ है. यह केवल एक योजना नहीं, बल्कि विकासशील भारत के निर्माण हेतु प्रतिबद्धता है- एक ऐसा भारत, जो स्वस्थ, सशक्त और समावेशी हो. ‘विकसित भारत@2047’ की यात्रा में पोषण अभियान एक प्रमुख स्तंभ बनकर उभरा है.महिला एवं बाल विकास मंत्रालय इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु संकल्पित है- एक ऐसा भारत, जहां हर बच्चा सुपोषित हो, हर मां सशक्त हो, और हर नागरिक को आगे बढ़ने का अवसर मिले.


जब एक बच्चा सही पोषण पाता है, अच्छी तरह सीखता है और मजबूती से आगे बढ़ता है, तब हम केवल एक जीवन नहीं, बल्कि संपूर्ण राष्ट्र की दिशा बदलते हैं. बच्चों को पर्याप्त पोषण, शिक्षा और सामुदायिक देखभाल प्रदान कर हम एक सुरक्षित और समृद्ध भविष्य में निवेश कर रहे हैं- विकसित भारत के भावी नेतृत्व को आकार दे रहे हैं. मिशन सक्षम आंगनवाड़ी और पोषण 2.0 के माध्यम से मंत्रालय बच्चों, किशोरियों, गर्भवती महिलाओं और धात्री माताओं के पोषण परिणामों को बेहतर बनाने हेतु एक समन्वित तंत्र विकसित कर रहा है. इस अभियान का केंद्र है देशभर में फैले 14 लाख आंगनवाड़ी केंद्रों का विशाल नेटवर्क, जो लगभग 10 करोड़ लाभार्थियों को सेवा प्रदान कर रहा है.

यद्यपि इसमें एक करोड़ से अधिक महिलाएं और 23 लाख से अधिक किशोरियां शामिल हैं, लेकिन लाभार्थियों में से अधिकांश छह महीने से छह वर्ष की आयु के बच्चे हैं. महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ‘एक समय पर एक भोजन’ के सिद्धांत पर कार्य करते हुए आठ करोड़ से अधिक बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण के जरिये भविष्य को पोषित कर रहा है. इस प्रयास का मूल है- पूरक पोषण कार्यक्रम, जिसके अंतर्गत बच्चों को गर्म पका हुआ भोजन और सभी लाभार्थियों को पौष्टिक टेक होम राशन प्रदान किया जाता है, जिसका उद्देश्य अनुशंसित आहार भत्ता (आरडीए) और औसत दैनिक सेवन (एडीआइ) के बीच के महत्वपूर्ण अंतर को पाटना है. हम विविध आहार को अपनाते हुए स्थानीय, मौसमी और पारंपरिक खाद्य पदार्थों जैसे, ज्वार, बाजरा, रागी, कुट्टू आदि को बढ़ावा देकर यह सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहे हैं कि प्रत्येक बच्चे को सीखने, बढ़ने और फलने-फूलने के लिए आवश्यक ऊर्जा मिले.

जहां हमने बच्चों में स्टंटिंग और वेस्टिंग की समस्याओं से निपटने में प्रगति की है, वहीं अब हम एक अन्य महत्वपूर्ण पोषण संकेतक- अधिक वजन और मोटापे की समस्या को दूर करने की दिशा में भी अग्रसर हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, बचपन में मोटापा बच्चों के वयस्क होने पर उनके लिए गंभीर परिणाम उत्पन्न कर सकता है, जिससे टाइप 2 मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी गैर संचारी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. यूनिवर्सिटी ऑफ सदर्न कैलिफोर्निया द्वारा यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया बर्कले और मैकगिल के सहयोग से किये गये एक अध्ययन में यह पाया गया कि जिन बच्चों को शुरुआती 1,000 दिनों के दौरान चीनी सेवन पर नियंत्रण लगाया गया, उनमें वयस्क होने पर टाइप 2 मधुमेह होने का जोखिम 35 प्रतिशत तक कम और उच्च रक्तचाप होने का जोखिम 20 फीसदी तक कम हो गया. यह दर्शाता है कि गर्भवती मां का चीनी सेवन बच्चों के दीर्घकालिक स्वास्थ्य पर प्रभाव डालता है.


इस समस्या के समाधान और पूरक पोषण की समग्र गुणवत्ता में सुधार के लिए मंत्रालय ने हाल ही में राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को पूरक पोषण की संरचना के संबंध में एक परामर्श जारी किया है, जो डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) और एनआइएन (राष्ट्रीय पोषण संस्थान) की सिफारिशों के अनुरूप है. डब्ल्यूएचओ के दिशानिर्देशों के अनुसार, वयस्कों और बच्चों के लिए चीनी का सेवन कुल दैनिक ऊर्जा सेवन के 10 फीसदी तक कम किया जाना चाहिए. एनआइएन की 2024 के आहार दिशानिर्देशों के अनुसार, दो साल से कम उम्र के बच्चों को अतिरिक्त चीनी नहीं दी जानी चाहिए और गर्भवती महिलाओं सहित सभी आयु और जेंडर समूहों के लिए चीनी का सेवन पांच फीसदी से कम होना चाहिए. चीनी सेवन को सीमित करने से बच्चों में दांतों की सड़न और क्षय को कम किया जा सकता है.


हमारे मंत्रालय ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को परामर्श दिया है कि परिष्कृत चीनी का उपयोग सीमित किया जाये और आवश्यकता पड़ने पर गुड़ या अन्य प्राकृतिक मिठास का इस्तेमाल करें. हमने अनुरोध किया है कि पूरक पोषण में नमक का इस्तेमाल कम किया जाये. राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से नाश्ते और स्वास्थ्यवर्धक आहार में मिठास वाले व्यंजनों की संख्या घटाने का आग्रह किया गया है. साथ ही, सभी आयु समूहों में वसा, नमक और चीनी की अधिकता वाले खाद्य पदार्थों के उपयोग को भी हतोत्साहित किया गया है. राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से आग्रह किया गया है कि सामग्री को खाद्य सुरक्षा और मानक विनियम, 2011 का और शिशु आहार खाद्य सुरक्षा और मानक (शिशु पोषण हेतु खाद्य) विनियम, 2020 का पालन करना चाहिए.


जहां पारंपरिक खाद्य पदार्थ बाजार में लोकप्रिय हो रहे हैं, वहीं मंत्रालय पहले से ही ‘पुष्टाहार’- स्थानीय, मौसमी सामग्री और अनाज जैसे रागी, बाजरा, टुकड़ा गेहूं, चना और फोर्टिफाइड चावल से बने पौष्टिक प्रीमिक्स प्रदान कर रहा है. ये मिश्रण स्वाद और पोषण में समृद्ध हैं, जिन्हें स्थानीय स्वादानुसार मीठे या नमकीन रूप में तैयार किया जा सकता है. पुष्टाहार दुकानों से खरीदे जाने वाले मिश्रणों का एक स्वास्थ्यवर्धक और अधिक बहुमुखी विकल्प है, जो स्थानीय, मौसमी स्वाद और संपूर्ण पोषण प्रदान करता है. जब हम अपने नागरिकों को पर्याप्त कैलोरी प्रदान करके सुपोषित भारत की ओर बढ़ रहे हैं, तब हमारे बच्चों और महिलाओं को जो भोजन दिया जा रहा है, उसकी गुणवत्ता पर ध्यान देना भी महत्वपूर्ण है.

हम अपने बच्चों को जो भोजन प्रदान करते हैं, वह उनके समग्र विकास और स्वास्थ्य के लिए उपयुक्त होना चाहिए. माननीय प्रधानमंत्री जी ने कहा है, ‘अपने खान-पान की आदतों में छोटे-छोटे बदलाव करके हम अपने भविष्य को अधिक मजबूत, स्वस्थ और रोग मुक्त बना सकते हैं.’ इस अमृत काल में हमारे बच्चों को पौष्टिक भोजन और पर्याप्त कैलोरी उपलब्ध होनी चाहिए. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि उनके लिए भोजन न केवल पर्याप्त होना चाहिए, बल्कि पौष्टिक भी होना चाहिए, जो उनके समग्र विकास और वृद्धि में योगदान दे.

अन्नपूर्णा देवी
अन्नपूर्णा देवी
केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री

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