14.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

कई संकटों का कारण बनता बढ़ता तापमान

विश्व मौसम विज्ञान संगठन की मानें, तो न केवल बीता वर्ष, बल्कि पूरा बीता दशक धरती पर अभी तक का सबसे गर्म दशक रहा है और 2014 के बाद यह जून सबसे गर्म माह रहा है.

देश के उत्तरी राज्य भीषण गर्मी से तप रहे हैं. बीते एक महीने से भी ज्यादा समय से अधिकतम तापमान 40 डिग्री से ऊपर बना हुआ है. इस बार तो गर्मी ने पहाड़ों पर भी रिकॉर्ड तोड़ दिया है. बढ़ते तापमान से बड़ी संख्या में मौतें भी हुई हैं और गर्मी के शिकार मरीजों की तादाद भी बढ़ रही है. इतिहास में पहली बार हम वैश्विक गर्मी की यह भयावहता देख रहे हैं, जिसकी अब तक पर्यावरणविद और विज्ञानी कल्पना भर ही कर रहे थे. विश्व मौसम विज्ञान संगठन के अनुसार, अगले पांच साल में पहली बार वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने के 66 फीसदी आसार हैं. उस हालत में कैसे जियेंगे हम, यह सवाल आज चर्चा का विषय बना हुआ है. वैश्विक तापमान की सीमा छूने का अर्थ है कि विश्व 19वीं सदी के दूसरे हिस्से के मुकाबले अब 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म है. तापमान में बेतहाशा बढ़ोतरी में जलवायु परिवर्तन और अल नीनो ने अहम भूमिका निभायी है. यह सब कोयला, तेल और गैस के जलाने की सभी सीमाएं पार करने का दुष्परिणाम है. फिर भी आपदाओं के बावजूद जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से निपटने में तत्परता वैसी नहीं है, जैसी अपेक्षित है.

विश्व मौसम विज्ञान संगठन की मानें, तो न केवल बीता वर्ष, बल्कि पूरा बीता दशक धरती पर अभी तक का सबसे गर्म दशक रहा है और 2014 के बाद यह जून सबसे गर्म माह रहा है. इस वर्ष की रिकॉर्ड गर्मी की शुरुआत ने 12 माह का औसत तापमान बढ़ाकर 1.5 डिग्री को लांघ दिया है. यदि तापमान वृद्धि की दर पर अंकुश नहीं लगा, तो सदी के अंत तक गर्मी से 1.5 करोड़ लोग मौत के मुहाने तक पहुंच जायेंगे. अमेरिका की पर्यावरण संस्था ग्लोबल विटनेस और कोलंबिया विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने खुलासा किया है कि तेल और गैस के इस्तेमाल से होने वाला उत्सर्जन इसका अहम कारण है. बीते वर्षों के अध्ययन से पता चलता है कि 2022 में ही 60 हजार से ज्यादा लोगों की मौत गर्मी के चलते हुई. दुनिया की करीब 81 फीसदी आबादी भीषण गर्मी झेलने को विवश है. हालात इतने खराब हो गये हैं कि इंसान तो इंसान, पेड़-पौधे भी सांस नहीं ले पा रहे हैं. इसका अहम कारण पेड़ों में सांस लेने और जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने की क्षमता कम होते जाना है. वैज्ञानिकों ने चेताया है कि इससे भुखमरी, सूखा और जानलेवा बीमारियों का खतरा बढ़ेगा. खासकर कमजोर इम्यून सिस्टम वाले लोगों पर इसका घातक असर होगा.

गर्मी और हीटवेव हृदय के लिए खतरनाक साबित हो रही है. इससे आत्महत्या तक के खतरे बढ़ सकते हैं. कारण अत्यधिक गर्मी से शरीर की थर्मोरेगुलेटरी प्रणाली चरमरा सकती है. अमेरिकी सेंटर फॉर डिजीज के मुताबिक अत्याधिक गर्मी से किडनी भी खराब हो सकती है. साल 2000 के बाद से हुए अध्ययन प्रमाण हैं कि इस बीच हुई लाखों मौतों का संबंध कहीं न कहीं गर्मी से है. इनमें 45 फीसदी मौतें एशिया में हुई हैं. शरीर का तापमान 44 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला जाये, तो शरीर के मैटाबॉलिज्म पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. ज्यादा पसीना बहने का असर स्किन, किडनी, हृदय और ब्रेन पर पड़ता है. डायबिटीज से ग्रसित मरीजों के अलावा धूम्रपान करने या शराब पीने वालों को इसका ज्यादा खतरा होता है. एम्स (दिल्ली) में न्यूरोलॉजी विभाग की प्रमुख डॉ मंजरी त्रिपाठी की मानें, तो कई बार हीट स्ट्रोक की वजह से ब्रेन स्ट्रोक का खतरा होता है. पानी की कमी से खून दिमाग तक नहीं पहुंच पाता है और नसों में जम जाता है, जिससे रक्त संचार बाधित होता है. डॉक्टरों की मानें, तो मौसम बदलने और तापमान बढ़ोतरी से लोगों में मानसिक उलझन हो रही है. बढ़ता तापमान माइग्रेन के रोगियों के लिए जानलेवा साबित हो सकता है. इसका खुलासा अमेरिका की सिनसिनाटी विश्वविद्यालय से जुड़े केंद्र ने किया है.

तापमान बढ़ोतरी का असर समय पूर्व जन्म दर में वृद्धि के रूप में होगा. यह खतरा 60 फीसदी तक बढ़ जायेगा. यह खतरा बच्चों में श्वसन संबंधी बीमारियां सहित कई हानिकारक स्वास्थ्य प्रभावों के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार होगा. बढ़ती गर्मी बच्चों के दिमाग को भी कमजोर कर रही है. गर्मी के बढ़ते प्रभाव से खाद्यान्न आपूर्ति पर संकट बढ़ जायेगा. इससे फसल, फल और डेयरी उत्पादन दबाव में हैं. बाढ़, सूखा और तूफान की बढ़ती प्रवृत्ति ने इसमें और इजाफा किया है. खाद्य विशेषज्ञ कैटलिन वैल्श कहते हैं कि इन मौसमी घटनाओं की वजह से उत्तरी अमेरिका, यूरोप और एशिया के बडे़ हिस्से के किसान मुश्किल में हैं. दक्षिणी यूरोप में गर्मी के कारण गायें दूध कम दे रही हैं. इटली में फल, सब्जी और गेंहू उत्पादन प्रभावित हुआ है. मछलियों का आवास भी प्रभावित हुए नहीं रहा है. उनकी संख्या में तेजी से गिरावट आ रही है. संयुक्त राष्ट्र की जलवायु समिति के अनुसार, यदि धरती के तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर रोकना है, तो 2030 तक कार्बन उत्सर्जन को 43 फीसदी तक घटाना होगा. यह समय की मांग है क्योंकि धरती के गर्म होने की रफ्तार अनुमान से कहीं ज्यादा है. आज धरती 1.7 डिग्री सेल्सियस तक गर्म हो चुकी है. समस्या की असली जड़ जीवाश्म ईंधन है, जिससे हमें दूर जाना होगा.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें