Racial Hatred: उत्तराखंड के देहरादून में त्रिपुरा के एक छात्र की पीट-पीट कर की गयी हत्या नस्लीय घृणा का स्तब्ध करने वाला उदाहरण है. त्रिपुरा निवासी एंजेल चकमा देहरादून के एक विश्वविद्यालय में एमबीए के अंतिम वर्ष का छात्र था. किराने का सामान खरीदने गये एंजेल और उसके छोटे भाई पर शराब के नशे में धुत्त कुछ लोगों ने नस्लीय टिप्पणी कर दीं. एंजेल ने प्रतिरोध किया, तो दोनों भाइयों पर हमले किये गये. घायल एंजेल की अस्पताल में मौत हो गयी. इस पर एंजेल के आक्रोशित परिजनों समेत पूर्वोत्तर के कई छात्र संगठनों ने केंद्र सरकार से दखल देने और दोषियों को कड़ी सजा देने की मांग करने के साथ पूर्वोत्तर के लोगों पर नस्लीय टिप्पणी के हल के लिए कठोर कदम उठाने की मांग की है.
शिक्षा, रोजगार और दूसरे कारणों से जब देश के भीतर क्षेत्रीय और भाषायी दीवारें टूट चुकी हैं, तब भी नस्लीय पूर्वाग्रह का हमारे अंदर जड़ जमाये बैठे होना शर्मनाक है. गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के प्रति आग्रह बढ़ने तथा परिवहन साधनों की सुगमता की वजह से पिछले करीब दो दशकों से बड़ी संख्या में पूर्वोत्तर के छात्र राष्ट्रीय राजधानी समेत देश के दूसरे हिस्सों में जाने लगे हैं. यह गर्व और आश्वस्ति की बात है. पूर्वोत्तर के लोग इसी देश के हैं, लिहाजा देश के किसी भी हिस्से में जाने और रहने का उनका अधिकार है. लेकिन समय-समय पर उन्हें निशाना बनाने, उनकी शारीरिक बनावट और खानपान की आदतों पर व्यंग्य करने की घटनाएं सामने आती रहती हैं.
राजधानी दिल्ली में पूर्वोत्तर की छात्राओं के साथ बदसलूकी की कई घटनाएं हाल के वर्षों में सामने आ चुकी हैं. कुछ साल पहले राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पूर्वोत्तर के एक लड़के की सिर्फ इसलिए पीट-पीट कर हत्या कर दी गयी थी, क्योंकि उसके बालों के रंग पर व्यंग्य करने पर उसने विरोध जताया था. उत्तराखंड में हुई दुखद घटना के दोषियों पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए.
यह बेहद जरूरी इसलिए भी है, ताकि यह संदेश दिया जा सके कि इक्कीसवीं सदी के भारत में ऐसी घटना बर्दाश्त नहीं की जायेगी. इसके साथ-साथ हमारे समाज में भी सकारात्मक और संतुलित सोच विकसित करने की आवश्यकता है. धर्म के आधार पर, नस्ल के आधार पर, क्षेत्र या भाषा के आधार पर किसी को हीन या कमतर बताना हमारी विकृत सोच का नमूना है. नया और विकसित भारत सिर्फ आर्थिक विकास से नहीं, बल्कि आधुनिक सोच वाले विवेकसंपन्न नागरिकों से भी बनेगा.

