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भारत-मॉरीशस रिश्तों का नया अध्याय

India-Mauritius relations : भारत और मॉरीशस के संबंध बहुत मजबूत रहे हैं. चूंकि दोनों ही देशों का इतिहास औपनिवेशिक गुलामी का रहा है, इस कारण दोनों में काफी कुछ समानता है. भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आरंभ से ही, यानी 2014 से ही सांस्कृतिक कूटनीति को आत्मसात करते रहे है.

India-Mauritius relations : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दो दिवसीय मॉरीशस यात्रा कई कारणों से महत्वपूर्ण है. वहां हवाई अड्डे पर उतरते ही उनका जिस तरह स्वागत हुआ, जिसमें मॉरीशस के प्रधानमंत्री नवीनचंद्र रामगुलाम के अलावा विपक्ष के नेता, मुख्य न्यायाधीश और नेशनल एसेंबली के स्पीकर आदि मौजूद थे, उसी से दोनों देशों के बीच संबंधों की गर्मजोशी का पता चलता है. यही नहीं, मॉरीशस के प्रधानमंत्री ने नरेंद्र मोदी को देश के सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित किया. भारत और मॉरीशस के संबंधों को मजबूती देने के लिए उन्हें यह सम्मान दिया गया. मॉरीशस का सर्वोच्च सम्मान पाने वाले वह पहले भारतीय हैं. जबकि मॉरीशस के राष्ट्रपति से मुलाकात के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें महाकुंभ का गंगाजल और बिहार का सुपरफूड मखाना उपहार में दिया. प्रधानमंत्री मोदी वहां राष्ट्रीय दिवस (12 मार्च) के मुख्य अतिथि थे और उनके स्वागत के लिए पूरी राजधानी सजा दी गयी थी. प्रधानमंत्री मोदी ने इस अवसर पर स्वाभाविक ही भारत-मॉरीशस के ऐतिहासिक संबंधों को याद किया. यह सच है कि भारत और मॉरीशस के बीच इतिहास, संस्कृति, भाषा और हिंद महासागर का रिश्ता है. प्रधानमंत्री की मॉरीशस यात्रा दस साल के बाद हुई है. जबकि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने पिछले साल मॉरीशस का दौरा किया था.


भारत और मॉरीशस के संबंध बहुत मजबूत रहे हैं. चूंकि दोनों ही देशों का इतिहास औपनिवेशिक गुलामी का रहा है, इस कारण दोनों में काफी कुछ समानता है. भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आरंभ से ही, यानी 2014 से ही सांस्कृतिक कूटनीति को आत्मसात करते रहे है. उनकी इस बार की मॉरीशस यात्रा भी इसी कूटनीतिक शृंखला की एक कड़ी है. यदि हम मॉरीशस के राजनैतिक इतिहास को देखें, तो पायेंगे कि दोनों ही राष्ट्र औपनिवेशिक शक्तियों के अधीन रहे हैं. भारत 1947 में आजाद हुआ, तो मॉरीशस को 1968 में राजनीतिक आजादी प्राप्त हुई. भारत और मॉरीशस के बीच जुड़ाव को लेकर जो सबसे अच्छी बात है, वह यह कि मॉरीशस की जनसंख्या का लगभग 68 हिस्सा प्रवासी भारतीयों का है. इनको इंडो-मॉरीशियन नाम दिया गया है. इन दोनों के बीच एक और समानता यह है कि दोनों राष्ट्रमंडलीय राष्ट्रों के संघ के हिस्सेदार राष्ट्र हैं. इस कारण दोनों के बीच सामाजिक और कूटनीतिक जुड़ाव भी है. दोनों देशों के बीच के संबंध काफी पुराने हैं. वर्ष 1730 में दोनों देशों के बीच संबंध तब प्रारंभ हुए, जब भारतीय कारीगर (शिल्पी) पांडिचेरी व मद्रास से मॉरीशस ले जाये गये और वहां बसाये गये.


यहां यह बात करना भी जरूरी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विदेशी राजनयिकों एवं राष्ट्राध्यक्षों से व्यक्तिगत संबंध बनाने की शुरुआत करने की नीति को अपनाते हैं, जो सामने वाले पर विशेष प्रभाव डालता है. नरेंद्र मोदी ने वहां कहा कि मॉरीशस एक मिनी इंडिया की तरह है. जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी की आदत है, वहां रह रहे भारतीयों से जुड़ने के लिए उन्होंने उनसे भोजपुरी और मैथिली में बातचीत की. प्रधानमंत्री यहीं नहीं रुके, उन्होंने कहा कि मॉरीशस भारत के लिए एक परिवार के समान है और दोनों के बीच के संबंध ऐतिहासिक, सामरिक और मानवीय रंगों में गूंथे हुए हैं. उनका यह कहना अर्थपूर्ण था कि नयी दिल्ली इन संबंधों को पुरजोर तरीके से आगे बढ़ाना चाहती है, ताकि दोनों देशों के संबंध और मजबूत बनें. उनकी यह टिप्पणी निश्चित तौर पर मॉरीशसवासियों के लिए भरोसा दिलाने वाली थी कि मुश्किल समय में मॉरीशस भारत को हमेशा अपने समीप खड़ा पायेगा. यदि हम गौर करें, तो पायेंगे कि कोविड-19 महामारी के समय भी भारत वह पहला राष्ट्र था, जिसने मॉरीशस को एक लाख वैक्सीन मुहैया करायी थी. यह सच है कि मॉरीशस जब भी प्रगति करता है, तब भारत इसका जश्न मनाता है. एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही नरेंद्र मोदी ने अपने पड़ोसी देशों को खासा महत्व दिया. यह बात ध्यान में रखने लायक है कि ‘नीयर नेबरहुड फर्स्ट’, जिस पर प्रधानमंत्री हमेशा अमल करते हैं, भारतीय विदेश नीति की प्राथमिकता सूची में है, तथा पड़ोसी व दक्षिण एशियाई देशों से प्रारंभ होती है और यूरोप, मध्य एशिया और अमेरिका की तरफ बढ़ती है.

मॉरीशस के प्रधानमंत्री नवीनचंद्र रामगुलाम के साथ प्रधानमंत्री मोदी ने आठ समझौते पर दस्तखत किये, जिनमें अपराध की जांच, समुद्री यातायात निगरानी, बुनियादी ढांचा कूटनीति, वाणिज्य, क्षमता निर्माण, वित्त और समुद्र से जुड़ी अर्थव्यवस्था है. मॉरीशस हिंद महासागर में एक महत्वपूर्ण स्थान पर स्थित है और भारत का रणनीतिक साझेदार है. पिछले कुछ समय में भारत ने मॉरीशस में कई विकास परियोजनाओं में निवेश किया है. पिछले एक दशक में दोनों देशों के बीच आपसी रिश्ते में गर्मजोशी की बात करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने ठीक ही याद दिलाया कि मेट्रो एक्सप्रेस, सुप्रीम कोर्ट बिल्डिंग, सामाजिक आवास, अस्पताल, यूपीआइ और रुपे कार्ड जैसी परियोजनाओं के जरिये इस दौरान बहुत काम हुआ है. मॉरीशस के लोगों को सस्ती और उच्च गुणवत्ता वाली दवाएं उपलब्ध कराने के लिए भारत की पहल से वहां जन औषधि केंद्र भी खोले गये हैं. यहां इस तथ्य की भी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि मॉरीशस के सुंदर प्राकृतिक दृश्य हिंदी फिल्मों की शूटिंग के लिए बहुत आकर्षक रहे हैं, तो हाल के वर्षों में भारतीय पर्यटकों के लिए भी मॉरीशस का आकर्षण बहुत बढ़ा है.


चूंकि चीन हमें घेरने की रणनीति पर बहुत समय से काम कर रहा है, उसे देखते हुए भी मॉरीशस के साथ हमारा रिश्ता बेहद महत्वपूर्ण है. प्रधानमंत्री मोदी की इस यात्रा से चीन को बड़ा झटका लग सकता है, क्योंकि इससे दोनों देशों के रिश्तों की मजबूती सामने आयी है. यहां याद किया जाना चाहिए कि 2015 में प्रधानमंत्री मोदी की मॉरीशस यात्रा के दौरान मॉरीशस के साथ एक सहमति बनी थी, जिसके तहत उत्तरी अगालेगा द्वीप पर भारत ने सामरिक निर्माण किया है, जहां से वह हिंद महासागर में चीन के सैन्य जहाजों और पनडुब्बियों पर नजर रख सकता है. प्रधानमंत्री मोदी की उस यात्रा के दौरान अगालेगा द्वीप पर परिवहन सुविधा बढ़ाने के लिए भी एक समझौता हुआ था. उस समझौते का उद्देश्य समुद्री और हवाई संपर्क में सुधार लाना, उस द्वीप के निवासियों को लाभ पहुंचाना और मॉरीशस के रक्षा बलों की क्षमता बढ़ाना था. ऐसे में, यह मानने का ठोस कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह मॉरीशस यात्रा हिंद महासागर में चीन का महत्व कम करने में सहायक होगी.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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