Operation Sindoor: भारत ने ऑपरेशन सिंदूर को पूरी तरह से समाप्त घोषित नहीं किया है. अभी जो मौजूद है, वह ऑपरेशन में एक संवेदनशील ठहराव है – कुछ लोग इसे युद्ध विराम कह सकते हैं, लेकिन सैन्य नेतृत्व ने जानबूझकर इस शब्द से परहेज किया है. युद्ध लड़ने के दृष्टिकोण से, यह केवल एक विराम नहीं है; यह एक दुर्लभ और स्पष्ट सैन्य जीत के बाद एक रणनीतिक पकड़ है. केवल चार दिनों की सुविचारित सैन्य कार्रवाई के बाद, यह वस्तुनिष्ट रूप से निर्णायक है: भारत ने एक बड़ी जीत हासिल की. ऑपरेशन सिंदूर ने अपने रणनीतिक लक्ष्यों को पूरा करने और उससे आगे निकलने में सफल रहा है- आतंकवादी ढांचे को नष्ट करना, सैन्य श्रेष्ठता का प्रदर्शन करना, निवारक क्षमता बहाल करना और एक नए राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत का सामने आना. यह प्रतीकात्मक शक्ति नहीं थी. यह निर्णायक शक्ति थी, जिसे स्पष्ट रूप से प्रयोग में लाया गया था.
भारत पर हमला हुआ. 22 अप्रैल, 2025 को जम्मू और कश्मीर के पहलगाम में 26 भारतीय नागरिक, जिनमें ज़्यादातर हिंदू पर्यटक थे का नरसंहार कर दिया गया. पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा के एक सहयोगी संगठन, द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) ने इसकी जिम्मेदारी ली. जैसा कि दशकों से होता आया है, इस समूह को पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) का समर्थन प्राप्त है.लेकिन पिछले हमलों के विपरीत, इस बार भारत ने इंतज़ार नहीं किया. उसने अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता की अपील नहीं की या राजनयिक विरोध पत्र जारी नहीं किया. इसने युद्धक विमान लॉच किए.
7 मई को, भारत ने ऑपरेशन सिंदूर शुरु किया, जो एक त्वरिक और सटीक रूप से सुविचारति सैन्य अभियान था. भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के अंदर नौ आतंकवादी ठिकानों पर हमला किया, जिसमें जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के मुख्यालय और ऑपरेशन हब शामिल थे. संदेश स्पष्ट था पाकिस्तानी धरती से शुरु होने वाले आतंकवादी हमलों को अब युद्ध के कृत्यो के रूप में माना जाएगा. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नये सिद्धांत को स्पष्ट कर दिया: “भारत किसी भी परमाणु ब्लैकमेल को बर्दाश्त नहीं करेगा. भारत परमाणु ब्लैकमेल की आड़ में विकसित हो रहे आतंकवादी ठिकानों पर सटीक और निर्णायक हमला करेगा.” यह केवल एक जवाबी कार्रवाई से कही अधिक, एक रणनीतिक सिद्धांत का अनावरण था. जैसा कि श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा, “आतंकवाद और बातचीत साथ-साथ नहीं चल सकते. पानी और खून एक साथ नहीं बह सकते.”
ऑपरेशन सिंदूर को जानबूझकर निम्नलिखित चरणों में क्रियान्वित किया गया
- 7 मई: पाकिस्तानी क्षेत्र में गहराई नौ सटीक हमले किए. लक्ष्यों में बहावलपुर, मुरीदके, मुजफ्फराबाद और अन्य स्थानों पर स्थित प्रमुख आतंकी प्रशिक्षण शिविर और लॉजिस्टिक्स नॉड शामिल थे.
- 8 मई: पाकिस्तान ने भारत के पश्चिमी राज्यों में बड़े पैमाने पर बहुत सारे ड्रोनों से जवाबी हमला किया. भारत के बहुस्तरीय वायु रक्षा नेटवर्क- स्वदेशी रूप से निर्मित तथा इजरायली और रूसी प्रणालियों द्वारा संवर्धित ने उनमें से लगभग सभी को निष्प्रभावी कर दिया.
- 9 मई: भारत ने छह पाकिस्तानी सैन्य हवाई अड्डों और यूएवी समन्वय केंद्रों पर अतिरिक्त हमलों के साथ जवाबी कार्रवाई की.
- 10 मई: गोलीबारी पर अस्थायी रोक लग गई. भारत ने इसे युद्धविराम नहीं कहा. भारतीय सेना ने इसे “गोलीबारी का ठहराव” कहा – एक अर्थपूर्ण लेकिन जानबूझकर किया गया विकल्प जिसने स्थिति पर अपने रणनीतिक नियंत्रण को मजबूत किया.
- यह केवल सामरिक सफलता नहीं थी. यह लाइव फायर के तहत सिद्धांत का निष्पादन था.
प्राप्त रणनीतिक प्रभाव
एक नई लक्ष्मण रेखा खींची गई- और लागू की गई
पाकिस्तान की धरती से होने वाले आतंकी हमलों का अब सैन्य बल से जवाब दिया जाएगा. यह कोई धमकी नहीं है. यह एक मिसाल है.
सैन्य श्रेष्ठता का प्रदर्शन
भारत ने पाकिस्तान में किसी भी लक्ष्य पर इच्छानुसार हमला करने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया- आतंकवादी ठिकाने, ड्रोन समन्वय केंद्र, यहां तक कि एयरबेस भी. इस बीच, पाकिस्तान भारत के अंदर एक भी सुरक्षित क्षेत्र में घुसपैठ करने में असमर्थ रहा. यह समानता नहीं है. यह भारी श्रेष्ठता है. और इसी तरह वास्तविक निवारक क्षमता स्थापित होती है.
बहाल की गई निवारक क्षमता
भारत ने जोरदार जवाबी कार्रवाई की, लेकिन पूर्ण युद्ध से पहले ही रुक गया. नियंत्रित वृद्धि ने एक स्पष्ट निवारक संकेत भेजा: भारत जवाब देगा, और वह गति को नियंत्रित करता है.
प्रतिपादित रणनीतिक स्वायत्तता
भारत ने इस संकट को अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता की मांग किए बगोर इस संकट को संभाला. इसने संप्रभु साधनों का उपयोग करते हुए संप्रभु शर्तों पर सिद्धांत लागू किया.
ऑपरेशन सिंदूर का कब्ज़े या शासन परिवर्तन के बारे में नहीं था. यह विशिष्ट उद्देश्यों के लिए किया गया सीमित युद्ध था. जो आलोचक तर्क देते हैं कि भारत को और आगे जाना चाहिए था, वे मुद्दे को समझ नहीं पाए. रणनीतिक सफलता विनाश के पैमाने के बारे में नहीं है – यह वांछित राजनीतिक प्रभाव प्राप्त करने के बारे में है.
भारत बदला लेने के लिए नहीं लड़ रहा था. वो प्रतिरोध के लिए लड़ रहा था. और यह काम कर गया.
भारत का संयम कमजोरी नहीं है – यह परिपक्वता है. इसने लागत लगाई, सीमाओं को फिर से परिभाषित किया, और वृद्धि प्रभुत्व बनाए रखा. भारत ने सिर्फ़ हमले का जवाब नहीं दिया. इसने रणनीतिक समीकरण बदल दिया.
एक ऐसे युग में जहां कई आधुनिक युद्ध खुलेआम कब्ज़े या राजनीतिक भ्रम में बदल जाते हैं, ऑपरेशन सिंदूर इससे अलग है. यह अनुशासित सैन्य रणनीति का प्रदर्शन था: स्पष्ट लक्ष्य, संरेखित तरीके और साधन, और अप्रत्याशित वृद्धि के सामने अनुकूल निष्पादन. भारत ने एक झटके को झेला, अपने उद्देश्य को परिभाषित किया, और उसे प्राप्त किया- यह सब एक सीमित समय सीमा के भीतर.
ऑपरेशन सिंदूर में बल का प्रयोग भारी, लेकिन नियंत्रित था – सटीक, निर्णायक और बिना किसी हिचकिचाहट के आधुनिक युद्ध में इस तरह की स्पष्टता दुर्लभ है. “हमेशा के लिए युद्धों” और रणनीतिक दिशा के बिना हिंसा के चक्रों से परिभाषित एक युग में, सिंदूर अलग है. यह स्पष्ट रूप से परिभाषित लक्ष्यों, मेल खाते तरीकों और साधनों और एक ऐसे देश के साथ सीमित युद्ध का एक मॉडल प्रस्तुत करता है जिसने कभी इनेशेटिव नहीं त्यागा.
2008 के भारत ने हमलों को झेला और इंतजार किया. यह भारत तुरंत, सटीक और स्पष्टता के साथ जवाबी हमला करता है.
मोदी का सिद्धांत, भारत का बढ़ता घरेलू रक्षा उद्योग और उसके सशस्त्र बलों का पेशेवराना तरीका सभी संकेत इस ओर इशारा करते है कि देश अब युद्ध की तैयारी नहीं कर रहा है. वो अगले युद्ध की तैयारी कर रहा है.
ऑपरेशन में रुकावट ऑपरेशन सिंदूर का अंत नहीं है. यह एक विराम है. भारत इनिशिएटिव रखता है. यदि फिर से उकसाया गया, तो वह फिर से प्रहार करेगा.
यह निवारण की बहाली है. यह एक नया सिद्धांत सामने आया है. और राज्य-प्रायोजित आतंकवाद के खतरे का सामना कर रहे सभी देशों को इसका अध्ययन करना चाहिए.
ऑपरेशन सिंदूर एक आधुनिक युद्ध था – जो, परमाणु एसक्लेशन के साय में, पूरी दुनिया की नजर इस पर थी, और एक सीमित उद्देश्य के फेमवर्क के तहत लड़ा गया था. और हर महत्वपूर्ण पैमाने पर यह एक रणनीतिक सफलता थी – और एक निर्णायक भारतीय जीत थी.
नोट: जॉन स्पेंसर अर्बन वारफेयर इंस्टीट्यूट के कार्यकारी निदेशक हैं. वे अंडरस्टैंडिंग अर्बन वारफेयर के सह-लेखक हैं.