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संरक्षणवाद नहीं है

डब्ल्यूटीओ के नियमानुसार, भारत के पास औसतन 40 प्रतिशत आयात शुल्क की अनुमति है, जबकि हमारे औसत आयात शुल्क 10 प्रतिशत से भी कम हैं. इन्हीं प्रावधानों के अंतर्गत भारत सरकार ने कई वस्तुओं पर आयात शुल्क 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत कर दिया और आयातों में भारी कमी कर ली.

डॉ. अश्विनी महाजन, एसोसिएट प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय

ashwanimahajan@rediffmail.com

पिछले तीन दशकों से चल रहे भूमंडलीकरण के दौरान देश के उद्योगों का संरक्षण कठिन माना जा रहा था. कहा जा रहा था कि मुक्त व्यापार ही अर्थव्यवस्था की समस्त समस्याओं का समाधान है. तर्क यह था कि यदि टैरिफ अथवा गैर-टैरिफ बाधाओं द्वारा अंतरराष्ट्रीय व्यापार को बाधित किया जाता है तो यह अक्षमता को बढ़ावा देगा, क्योंकि उन्हें प्रतिस्पर्धी बनने के लिए कोई प्रोत्साहन ही नहीं मिलेगा. कोरोना काल में भारत और दुनिया में आर्थिक गतिविधियों के संचालन के प्रति सोच में बड़ा बदलाव आया है. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि इस संकट में देश को सबसे बड़ा सबक आत्मनिर्भर बनने का मिला है. कोरोना काल में मनुष्य और सामानों की आवाजाही बाधित हुई है. ऐसे में हमें लोकल के प्रति सम्मान का भाव रखते हुए उसके लिए आग्रही और मुखर होना पड़ेगा.

हमारे देश का हर जिला, हर प्रांत और यहां तक कि प्रत्येक गांव की अपनी एक विशिष्टता रही है. प्रोत्साहन के अभाव में इन जिलों की विशेषताएं विलुप्त हो रही हैं. स्थानीय स्तर पर विशिष्ट कृषि उत्पादों के प्रोत्साहन, भंडारण और बाजार की उचित व्यवस्था न होने के कारण उनका सही लाभ किसानों को नहीं मिल पाता. वहीं दूसरी ओर, उनके निर्यात की संभावनाएं भी समाप्त हो जाती हैं. जहां तक मैन्युफैक्चरिंग का प्रश्न है, तो देश के अनेक जिले आधुनिक और परंपरागत उद्योगों के लिए जाने जाते हैं. चीनी डंपिंग और सरकारी अनदेखी, लालफीताशाही, इंस्पेक्टर राज, वित्त की कमी, नयी प्रौद्योगिकी तक पहुंच का अभाव आदि कई ऐसे कारण हैं, जो इन कलस्टरों के क्षरण का कारण बने हैं.

आज जब आत्मनिर्भरता की बात हो रही है तो हमारे स्थानीय उत्पादों की विशेषताओं के अनुसार उनके संरक्षण और संवर्द्धन हेतु प्रयासों की बात भी हो रही है. केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा संरक्षण एवं संवर्द्धन के प्रयासों के साथ उन क्षेत्रों के स्थानीय जन प्रतिनिधि यदि इन उत्पादों को बढ़ावा देने का प्रयास करेंगे तो स्वभाविक रूप से इन उद्यमों को एक नया जीवन मिलेगा. इससे देश में रोजगार और आय की संवृद्धि होगी और लोगों का जीवन स्तर सुधरेगा. चीन से आयातित होनेवाली अधिकांश वस्तुएं ऐसी हैं जिनका देश में उत्पादन संभव है.

कई ऐसी भी हैं, जिनका देश में भरपूर उत्पादन होता है, जैसे स्टील, केमिकल्स, मशीनरी, वाहन, उवर्रक, कीटनाशक आदि. कइयों के लिए विशिष्ट प्रौद्यागिकी की भी जरूरत नहीं. जीरो टेक्नाॅलोजी उत्पादों का देश में तुरंत उत्पादन शुरू हो सकता है. एक्टिव फार्मास्यूटिकल इनग्रेडिएंट्स यानी दवा उद्योगों के कच्चे माल का उत्पादन भारत में पहले से होता रहा है. इनके पुनरुत्थान के लिए सरकार पहले ही 11000 करोड़ रुपये की प्रोत्साहन योजना लागू कर चुकी है. इसके अलावा इलेक्ट्राॅनिक्स, टेलिकाॅम, मोबाइल फोन, अन्य उपभोक्ता वस्तुएं आदि के उत्पादन के लिए भी सरकार अनुकूल योजनाएं बना सकती है.

नये उद्योगों के पनपने के लिए विदेशों से आने वाले माल पर आयात शुल्क थोड़ा-बहुत बढ़ाना होगा, जरूरी होने पर एंटी डंपिंग और सेफगार्ड ड्यूटी भी लगानी होगी, विदेशी घटिया माल को रोकने हेतु मानक भी लगाने होंगे. भारत को आत्मनिर्भर बनाने के संकल्प और प्रयासों को कई लोग शंका की निगाह से देख रहे हैं. उनका मानना है कि भूमंडलीकरण के दौर में हम दुनिया से इस हद तक जुड़े हुए हैं कि हमारा आत्मनिर्भर बनने का प्रयास प्रतिगामी और आत्मघाती सिद्ध हो सकता है. यदि चीन से आने वाले कलपुर्जों का आयात रोका जायेगा तो हमारे उद्योगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.

देश में उत्पादन बढ़ाकर आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को पूरा करना संरक्षणवाद नहीं है. समझना होगा कि 1991 की नयी आर्थिक नीति से पूर्व का संरक्षणवाद, अकुशल औद्योगीकरण का कारण बना. उस कालखंड में भारत में भारी आयात शुल्क (सौ से छह सौ प्रतिशत) लगाया जाता था, जो वास्तव में कुशलता निर्माण के लिए बाधक कहा जा सकता है. डब्ल्यूटीओ के अस्तित्व में आने के बाद ऊंचे आयात शुल्कों का युग समाप्त हो चुका है. भारत डब्ल्यूटीओ के नियमों से बंधा हुआ है. लेकिन डब्ल्यूटीओ में भी उद्योगों को आगे बढ़ाने और उन्हें गैर-बराबरी प्रतिस्पर्द्धा से बचाने के प्रावधान हैं.

डब्ल्यूटीओ के नियमानुसार, भारत के पास औसतन 40 प्रतिशत आयात शुल्क की अनुमति है, जबकि हमारे औसत आयात शुल्क 10 प्रतिशत से भी कम हैं. इन्हीं प्रावधानों के अंतर्गत भारत सरकार ने इलेक्ट्राॅनिक्स, मोबाइल फोन, उपभोक्ता वस्तुओं आदि पर आयात शुल्क 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत कर दिया और आयातों में भारी कमी कर ली. पिछले दो वर्षों में भारत का चीन से व्यापार घाटा 63.2 अरब डाॅलर से घटकर 48.6 अरब डाॅलर रह गया है.

लगभग सभी देश अपने उद्योगों के संरक्षण और संवर्द्धन के लिए टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधायें लगाते हैं, तो भारत क्यों नहीं लगा सकता. जब अन्य देश व्यापार युद्ध के नाम पर आयात शुल्क बढ़ा रहे हों तो भारत का एकतरफा मुक्त व्यापार, आत्मघाती सिद्ध होगा. आज जरूरत है कि प्रारंभिक तौर पर हम अपने उद्योगों को प्रोत्साहन दें और आयातों को रोकने का प्रयास करें. उसके बाद वैश्विक स्तर के उत्पाद बनाकर देश की आवश्यकताओं की पूर्ति करें, और दूसरे देशों को निर्यात भी करें.(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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