Israel–Hamas war : सात अक्तूबर, 2023 को हमास के लड़ाके इस्राइल पर जोरदार हमला करने में सफल अवश्य हुए, पर उसकी कितनी कीमत फिलिस्तीनियों को चुकानी पड़ी, यह उसके आंकड़ों से पता चलता है. इस समय पांच करोड़ टन से अधिक मलबे का ढेर गाजा क्षेत्र में जमा है, जिसे हटाने में 15 वर्ष से भी अधिक समय लग सकता है. संयुक्त राष्ट्र की एक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, मिस्र में गीजा की विशाल पिरामिड के आकार से लगभग 12 गुना मलबे का ढेर यहां इकट्ठा हो चुका है. इस कारण फिलिस्तीन के पुनर्निर्माण में 350 से अधिक वर्ष लग सकते हैं. ऐसे में तंबू में जन्मी तीन पीढ़ियों को लंबे समय तक इसे ही अपना स्थायी मुकाम बनाना होगा. चूंकि पुनर्निर्माण के लिए अरबों डॉलर की आवश्यकता होगी और एक ऐसे अनियंत्रित क्षेत्र में निवेश करने के लिए कोई भी अंतरराष्ट्रीय संस्था तैयार नहीं है, जिसने दो दशकों से भी कम समय में पांच युद्ध देखे हैं.
सैटेलाइट डाटा का उपयोग कर संयुक्त राष्ट्र ने बीते महीने अनुमान लगाया था कि गाजा में 70 प्रतिशत संरचनाएं नष्ट हो चुकी हैं, जिनमें 2,45,000 से अधिक आवासीय क्षेत्र और घर शामिल हैं. विश्व बैंक ने युद्ध के पहले चार महीनों में ही 18.5 अरब डॉलर के नुकसान का अनुमान लगाया था, जो 2022 में वेस्ट बैंक और गाजा के संयुक्त आर्थिक उत्पादन के लगभग बराबर है. मुख्य सड़कें गहरे गड्ढों में बदल चुकी हैं. जल और बिजली का महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा बर्बाद हो चुका है. अधिकांश अस्पताल अब काम लायक नहीं बचे हैं.
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, गाजा में 50,000 से अधिक लोग मारे गये हैं, जिनमें 44 प्रतिशत बच्चे हैं. जो बच्चे जीवित हैं, उन्हें तनाव, अनिद्रा, अवसाद और डर ने कैद कर लिया है. यहां के 96 प्रतिशत बच्चे जीना नहीं चाहते, उन्हें अपनी मौत करीब दिखती है. 49 प्रतिशत बच्चे चाहते हैं कि उनकी मौत हो जाती तो अच्छा होता. नीदरलैंड की संस्था ‘वार चाइल्ड अलायंस’ ने चौंकाने वाले एवं हृदय विदारक आंकड़े एकत्र किये हैं. इसमें उन परिवारों को शामिल किया गया, जिनका एक बच्चा युद्ध में अपंग हो गया या परिवार से बिछड़ गया.
सर्वे में शामिल 92 प्रतिशत बच्चे युद्ध का सच स्वीकार करने को तैयार नहीं है. गाजा के वातावरण में बारूद की गंध फैली हुई है. आलम यह है कि 79 प्रतिशत बच्चे सपने में भी सहम जाते हैं, वहीं 73 प्रतिशत मासूम इन सबसे इतने आजिज आ चुके हैं कि उनका व्यवहार गुस्सैल हो गया है.
इस भयावह वातावरण से दुखी होकर फिलिस्तीन के प्रधानमंत्री मोहम्मद शतायेह समेत पूरी सरकार इस्तीफा दे चुकी है. उधर सैनिक ऑपरेशन में शामिल एक अमेरिकी वायु सैनिक द्वारा वॉशिंगटन डीसी में इस्राइली दूतावास के बाहर खुद को आग लगाने से भी वातावरण गंभीर हो चुका है. संयुक्त राष्ट्र द्वारा युद्धविराम का प्रस्ताव पारित हो चुका है जिसका भारत समेत 158 राष्ट्रों ने अनुमोदन किया है. कई अवसरों पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा युद्धविराम के लिए कई प्रस्ताव पारित हुए, परंतु सभी प्रयास असफल रहे. यहां तक कि इस्राइल को ‘लिस्ट ऑफ शेम’ में भी शामिल किया गया. इसमें इस्राइल पर बच्चों के खिलाफ गंभीर अधिकारों के उल्लंघन का आरोप है, जिसे लेकर पूरे इस्राइल में रोष है.
अंतरराष्ट्रीय समुदाय में इससे इस्राइल की छवि को आघात पहुंचा है. उधर अमेरिकी मदद के बावजूद इस्राइल की अर्थव्यवस्था चरमराने लगी है. पिछले महीनों में जीडीपी ग्रोथ महज 0.7 प्रतिशत रही. राजकोषीय घाटा जीडीपी का आठ प्रतिशत हो चुका है. इस्राइल की बड़ी चिंता का एक कारण उसके व्यापारिक केंद्रों- तेल अवीव और यरुशलम तक लड़ाई का पहुंचना भी है. जनवरी में इस्राइल का कर्ज जीडीपी का 62 प्रतिशत था, जो ज्यादातर अमीर देशों वाले ओइसीडी क्लब के औसत से कम है. फिच और मूडीज जैसी रेटिंग एजेंसियां इस वर्ष फिर से इस्राइल की रेटिंग घटा चुकी हैं और निकट भविष्य में भी इसे दोहराने की संभावना बनी हुई है. पिछले वर्ष हमास के हमले के बाद इस्राइल ने 80 हजार फिलिस्तीनी वर्कर्स का वर्क परमिट रद्द कर दिया था और इनकी जगह किसी को नहीं रखा गया है. इससे कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री 40 प्रतिशत तक छोटी हो चुकी है. यही हाल कमोबेश हाइटेक कंपनियों और दूसरी फर्म का है.
फिलहाल युद्धविराम हो चुका है, पर इसे युद्ध समाप्ति नहीं कह सकते. डोनाल्ड ट्रंप के दिये बयान ने शांति प्रयासों की सभी संभावनाओं पर पानी फेर दिया है. इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू इस समय अमेरिका दौरे पर हैं. दोनों नेता व्हाइट हाउस में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में गाजा संबंधी बयान देकर समूचे विश्व में हड़कंप मचा चुके हैं कि अमेरिका गाजा पट्टी पर कब्जा करेगा और यहां रिजॉर्ट सिटी बनायी जायेगी. गाजा में रहने वाले 23 लाख लोगों को मिस्र और जॉर्डन जैसे देशों में बसाया जायेगा. सऊदी अरब, मिस्र, जॉर्डन, कतर, तुर्किये खुलकर इसका विरोध कर चुके हैं. अमेरिका के दर्जनों सांसदों ने भी इसका विरोध किया है, जिनमें डेमोक्रेट्स और रिपब्लिकन दोनों शामिल हैं. नेतन्याहू का इस्राइल में भी विरोध हो रहा है. अन्य कई कारणों से भी फिलहाल शांति के बजाय युद्ध के आसार अधिक दिख रहे हैं.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)