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खराब रणनीति का शिकार बनी भारतीय टीम

इस हार में धीमी बल्लेबाजी की भी बड़ी भूमिका रही. रोहित और श्रेयस के विकेट फटाफट निकल जाने पर टीम पर दवाब बना और इससे निकलने के लिए विराट और केएल राहुल ने साझेदारी बनायी, जो सही था. पर इस साझेदारी
 के दौरान टीम एकदम से नकारात्मक हो गयी.

पिछली बार भारत ने 2011 में धौनी की अगुआई में विश्व चैंपियन बनने का गौरव हासिल किया था, पर उसके बाद कोई भी प्रयास उसे चैंपियन नहीं बना सका है. इस बार टीम अपने पहले मुकाबले में चेन्नई में ऑस्ट्रेलिया को हराने के बाद अगले 40 दिनों तक अजेय रही. दस मैचों में उसने जैसी क्रिकेट खेली, उससे लगा कि इस बार विश्व कप जीतने का सपना साकार होगा. लेकिन ऑस्ट्रेलिया के दमखम के आगे हमारी टीम एक बार फिर नहीं टिक सकी. भले ही विराट कोहली सबसे ज्यादा 765 रन बनाने वाले और मोहम्मद शमी सबसे ज्यादा 24 विकेट निकालने वाले रहे, लेकिन इस सब पर ट्रेविस हेड का शतक और लबुशेन के साथ साझेदारी भारी पड़ गयी.

भारतीय टीम फाइनल तक शानदार प्रदर्शन कर जिस तरह हारी है, उससे लगता है कि आईसीसी टूर्नामेंटों के नॉक आउट चरण में वह अपना सर्वश्रेष्ठ क्यों नहीं दे पाती है, इस पर विश्लेषण की जरूरत है. भारत 2013 में चैंपियंस ट्रॉफी जीतने के बाद से कोई आइसीसी ट्रॉफी नहीं जीत सका है. वह इसके बाद आठ बार सेमीफाइनल और फाइनल के रूप में नॉक आउट चरण में हार चुका है. वह 2013 के बाद से टी-20 विश्व कप में तीन बार, वनडे विश्व कप में दो बार, दो बार डब्ल्यूटीसी फाइनल में और एक बार चैंपियंस ट्रॉफी के नॉक आउट चरण में हार चुका है.

किसी भी टीम का मनोबल ऊंचा करने में दर्शकों की भूमिका अहम होती है. इस फाइनल में तो करीब एक लाख दर्शक थे और लग रहा था कि भारत के समर्थन में नीला समुद्र उठ खड़ा हुआ है. पर ऑस्ट्रेलियाई कप्तान पैट कमिंस ने मैच से एक दिन पहले कहा था कि हम अपने प्रदर्शन से दर्शकों को शांत कर देंगे. भारतीय दर्शक स्टेडियम में अपनी आवाज को बुलंद करते कम ही नजर आये. इसमें कमिंस के आला दर्जे की कप्तानी की भूमिका अहम रही. यह भी कप्तान के फैसले का ही कमाल है कि शुरू में चोटिल रहने वाले ट्रेविस हेड को टीम से हटाने के बजाय उनके ठीक होने का इंतजार किया और यह इंतजार विश्व कप में जीत दिलाने वाला साबित हुआ.

यह कहना सही होगा कि भारतीय टीम खराब रणनीति का शिकार बन गयी. इस विश्व कप के दौरान मुख्य कोच राहुल द्रविड़ सभी मैचों से पहले मैदान पर जाकर विकेट के बारे में जानकारियां लेकर टीम की रणनीति बनाते रहे और टीम लगातार सफलता पाती रही. कहा जा रहा है कि पहले ही इस मैदान पर भारत और पाकिस्तान के मैच में इस्तेमाल किये गये विकेट को ही फाइनल में इस्तेमाल का फैसला हो चुका था. विकेट को सुखाने के लिए मैच से दो दिन पहले कम से कम पानी डाला गया और हेवी रोलर चलाकर विकेट को एकदम से सुखा दिया. इसका उद्देश्य विकेट को धीमा करना था. पर ऑस्ट्रेलियाई टीम का प्रबंधन विकेट के व्यवहार पर नजर बनाये हुआ था और वह ठोस रणनीति बनाने में सफल रहा.

ऑस्ट्रेलिया को पता था कि बाद में बल्लेबाजी करने पर ओस पड़ने से विकेट अच्छा हो जायेगा. यही वजह है कि कमिंस के टॉस जीतकर पहले गेंदबाजी करने के फैसले पर थोड़ा आश्चर्य भी किया गया. लेकिन उनकी सोच कारगर रही. भारतीय कप्तान रोहित शर्मा से पूछा गया कि आप टॉस जीतते, तो क्या करते. उन्होंने कहा कि वे पहले बल्लेबाजी ही करते. यह बात समझ से परे है. इससे यह तो साफ है कि विकेट के व्यवहार के बारे में उन्हें सही जानकारी थी ही नहीं. इसके अलावा, इस मैच में जैसी योजना के साथ ऑस्ट्रेलियाई टीम उतरी, वह हमारी टीम के पास नजर नहीं आयी. ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाज जानते थे कि गेंद विकेट पर पटकने से वह बल्लेबाज के पास रुककर पहुंचेगी. वे हर भारतीय बल्लेबाज के खेलने के अंदाज का अध्ययन करके आये थे. लेकिन भारत इस मामले में पिछड़ा नजर आया.

हम जानते हैं कि कप्तान रोहित शर्मा ने हर मैच में आक्रामक शुरुआत कर बड़ा स्कोर खड़ा करने का आधार प्रदान किया. फाइनल में भी वे इस जिम्मेदारी को निभाने में किसी हद तक सफल रहे. पर थोड़ी जिम्मेदारी की कमी साफ दिखी. रोहित ने 47 रन बनाने के बाद यदि गलती न की होती, तो पारी लंबी खिंच सकती थी. वे मैक्सवेल के ओवर में पहली तीन गेंदों पर एक छक्के और एक चौके से 10 रन बना चुके थे और थोड़ा संयम बरतने पर पारी लंबी खींच सकते थे.

इस हार में धीमी बल्लेबाजी की भी बड़ी भूमिका रही. रोहित और श्रेयस के विकेट फटाफट निकल जाने पर टीम पर दवाब बना और इससे निकलने के लिए विराट और केएल राहुल ने साझेदारी बनायी, जो सही था. पर इस जोड़ी ने जमने के कुछ समय बाद ही हर ओवर में कम से कम एक चौका लगाने की रणनीति बनायी होती, तो शायद यह स्थिति नहीं होती. भारत के जरूरत से ज्यादा सतर्क होने की वजह से पांचवें गेंदबाज की जिम्मेदारी निभा रहे मैक्सवेल, ट्रेविस हेड और मिचेल मार्श हर ओवर में दो-चार रन देकर अपना काम करने में सफल रहे. इस पर सुनील गावस्कर भी कह रहे थे कि आप यदि इन गेंदबाजों के खिलाफ भी तेजी से रन नहीं बनायेंगे, तो बनाएंगे कैसे.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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