India US Relations : पिछले एक दशक से भारत को एक ऐसा उभरता सितारा बताया जा रहा है, जो चीन का मुकाबला कर सकता है. भारत को आर्थिक ताकत, विदेश नीति के क्षेत्र में महाशक्ति और विश्वगुरु माना जा रहा है. वैश्विक कारोबारी निवेशक भारत को एक ऐसे पसंदीदा निवेश गंतव्य और स्वतंत्र ताकत के रूप में देखते हैं, जो अमेरिकी प्रतिबंधों को बेहद ठंडे तरीके से लेते हुए रूस से तेल खरीदता है, क्योंकि यह उसकी घरेलू जरूरतों के अनुकूल बैठता है. मार्क एंटोनी ने क्लियोपेट्रा को रिझाने के लिए जैसा प्रेम प्रदर्शन किया था, अमेरिकी राष्ट्रपति और यूरोपीय नेता नयी दिल्ली के साथ वैसी ही नरमी से पेश आते हैं. ऐसा लगता है, जैसे भारत ने औपनिवेशिक गुलामी की जंजीरें तोड़कर, अपनी समाजवादी पहचान मिटाकर ‘सोने की चिड़िया’ वाली पहचान फिर हासिल कर ली है.
लेकिन इस महीने वे जंजीरें वापस दिखीं, अवैध भारतीय प्रवासियों को जब अमेरिकी सैन्य विमानों से भेजा गया, तब उनके हाथों में हथकड़ी और पैरों में बेड़ियां थीं, जैसे वे अपराधी हों. व्हाइट हाउस ने जंजीरों में जकड़े भारतीयों की तस्वीरें जारी कीं, पर चीन, पाकिस्तान और दूसरे अनेक इस्लामी देशों में वापस भेजे गये प्रवासियों को न तो जंजीरों से जकड़ा गया था, न उनकी तस्वीरें जारी की गयीं. जबकि पश्चिमी देशों पर कई आतंकी तथा साइबर हमलों का खाका इन्हीं देशों के आतंकियों व साइबर ठगों ने बुना था.
करीब सौ अवैध पाकिस्तानी प्रवासियों को पनामा ले जाना पड़ा, क्योंकि इस्लामाबाद ने उन्हें अपनाने से मना कर दिया था. पर अमेरिकी आव्रजन और कस्टम अधिकारियों को न तो अवैध पाकिस्तानी प्रवासियों के ठीक-ठीक आंकड़े का पता है, न ही उनके प्रति वैसी आक्रामकता अमेरिका ने दिखायी, जैसी उन्होंने मेक्सिको और भारत के अवैध प्रवासियों के मामले में दिखायी. अमेरिका में भारतीयों को निशाना बनाना नया नहीं है, पर दूसरी बार राष्ट्रपति चुने जाने के बाद से ही ट्रंप भारतीयों को जिस तरह निशाना बना रहे हैं, वह हैरान जरूर करता है. जबकि भारतीय अमेरिकियों के पास एक अरब डॉलर से अधिक की कीमत वाले 11 फीसदी स्टार्ट-अप्स हैं, 60 फीसदी अमेरिकी होटलों का स्वामित्व है, और ये 16 फॉर्च्यून 500 कंपनियों का नेतृत्व करते हैं. ये सालाना 250-300 अरब डॉलर का टैक्स चुकाते हैं.
पिछले सप्ताह पनामा स्थित भारतीय दूतावास ने एक्स पर पोस्ट किया, ‘पनामा के अधिकारियों ने हमें सूचित किया कि अमेरिका से भारतीयों का एक समूह पनामा पहुंचा है. वे सभी लोग एक होटल में हैं और सुरक्षित हैं. दूतावास की टीम भारतीयों के साथ संपर्क साधने में सफल हुई.’ अमेरिका पांच लाख से अधिक अवैध प्रवासी भारतीयों को वापस लौटाना चाहता है, लेकिन साउथ ब्लॉक अपने 18,000 नागरिकों को ही स्वीकारने को राजी है. अमेरिका ने अवैध प्रवासी भारतीयों को यूपीए सरकार के दौर से ही लौटाना शुरू किया था. तब अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा थे. वर्ष 2009-16 के दौरान लगभग 16,000 अवैध प्रवासी भारतीयों को सालाना 750 के औसत से लौटाया गया था. लेकिन 2016 में 1,303 अवैध प्रवासियों को लौटाया गया.
ट्रंप के पहले राष्ट्रपति काल में (2017-20) सालाना 1,550 की दर से अवैध प्रवासियों को लौटाया गया. वर्ष 2019 में 2,042 अवैध प्रवासियों को लौटाया गया, जब मोदी और ट्रंप की गर्मजोशी शिखर पर थी. जो बाइडन के राष्ट्रपति काल में (2021-24) सालाना 900 की दर से कुल 3,627 अवैध प्रवासी भारत भेजे गये. ट्रंप के दूसरे राष्ट्रपति काल में जिस दर से अवैध प्रवासियों को लौटाया जा रहा है, वह मोदी से दोस्ती के दावों के बावजूद ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका की भारत के साथ कूटनीतिक और भू-रणनीतिक दूरी बनाने की कोशिश है. वापस लौटाये जाने वाले प्रवासियों में गुजरातियों की बड़ी संख्या है.
अमेरिका द्वारा प्रवासियों को लौटाने की प्रक्रिया पहले कभी सुर्खियां नहीं बनीं, क्योंकि कभी उन्हें जंजीरों में जकड़ कर गुलामों की तरह नहीं भेजा गया. अहंकारी ट्रंप शायद मोदी जैसे अश्वेत नेता का उभरना बर्दाश्त नहीं कर पा रहे. देश के हिस्से में आयी इस सार्वजनिक शर्म के लिए अपना विदेश मंत्रालय भी आंशिक रूप से जिम्मेदार है. अवैध प्रवासियों को लाने के लिए भारत सरकार को वाणिज्यिक विमान की व्यवस्था करनी चाहिए थी. वर्ष 2018 में सुषमा स्वराज ने बताया था कि चार साल में उन्होंने 90,000 से अधिक भारतीयों की सुरक्षित वापसी करायी है. अपने नागरिकों को सुरक्षित लाने में मोदी सरकार का ट्रैक रिकॉर्ड प्रशंसनीय रहा है.
अमेरिकी सरकार के मुताबिक, उनके यहां अवैध प्रवासियों की संख्या 1.5 करोड़ से अधिक है और ट्रंप अवैध प्रवासियों के खिलाफ अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई करने के इच्छुक हैं. अमेरिका में कुल अवैध प्रवासियों में सबसे ज्यादा लगभग 48 लाख मेक्सिको के हैं. अल-सल्वाडोर के साढ़े सात लाख और ग्वाटेमाला के पौने सात लाख बताये जाते हैं. वर्ष 2022 से क्यूबा, हैती, निकारागुआ और वेनेजुएला से कुल 20 लाख अवैध प्रवासी अमेरिका में जाकर बस गये. इनमें अवैध भारतीय प्रवासियों का आंकड़ा पौने सात लाख के आसपास है.
हालांकि कहा यह जा रहा है कि अपने राष्ट्रपति काल में ट्रंप के लिए कुल अवैध प्रवासियों के एक फीसदी को भी वापस लौटाना असंभव होगा. इससे वहां श्रमबल में भारी कमी आयेगी और 30 ट्रिलियन डॉलर की अमेरिकी अर्थव्यवस्था लड़खड़ाने लगेगी. इसके अलावा 80 से 100 अवैध प्रवासियों को विमान से भेजने का खर्च साढ़े आठ लाख डॉलर आता है. इसके बावजूद भारतीय अवैध प्रवासियों को निशाना बना रहे हैं. अपने अभियान के बीच ट्रंप एक कठोर व्यापारिक वास्तविकता की अनदेखी कर रहे हैं. वह यह कि कम पढ़ा-लिखा भारतीय भी अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए बहुत लाभकारी है.
मध्यम श्रेणी के भारतीय अमेरिकियों की सालाना आय 1,70,000 डॉलर है, जो दूसरे देशों के प्रवासियों की सालाना आय से दोगुना है. अमेरिका में सात फीसदी डॉक्टर भारतीय मूल के हैं, उनमें से आधे प्रवासी हैं. अमेरिका की आबादी में उनकी हिस्सेदारी बेशक 1.5 फीसदी से भी कम है, पर वे राष्ट्रीय स्तर पर कुल आयकर का छह प्रतिशत चुकाते हैं. अवैध प्रवासियों को लौटाने के बर्बर अभियान के जरिये अमेरिकी सत्ता प्रतिष्ठान ने भारत की छवि को आघात पहुंचाया है. यदि ट्रंप प्रशासन अमेरिका को फिर से महान बनाना चाहता है, तो उसे मोदी और भारतीय सहयोगियों की जरूरत पड़ेगी. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)