Olympic 2036 : भारत 2036 के ओलिंपिक खेलों को कराने का दावेदार है. यह सही है कि दावेदारी पाने में अभी काफी समय है. पर भारत सरकार इस संबंध में तैयारियों को गति देकर अपनी दावेदारी को मजबूती देने का प्रयास कर रही है. पिछले दिनों खेल मंत्रालय ने इसी लिहाज से उच्च प्राथमिकता वाले खेलों को अपनी राष्ट्रीय चैंपियनशिपों को कराने के लिए अब तक मिलने वाले 51 लाख रुपये की राशि बढ़ाकर 80 लाख कर दी है. केंद्रीय खेल मंत्री मनसुख मांडविया का कहना है कि यह बढ़ोतरी 2036 ओलिंपिक के लिए भारत की स्वयं को मजबूत दावेदार के रूप में पेश करने की आकांक्षा है.
खेल मंत्रालय ने अन्य क्षेत्रों में भी मदद बढ़ायी है. वह चाहता है कि खेल फेडरेशनों में बीसीसीआइ की तरह ही सीइओ और मैनेजरों की नियुक्ति करके गतिविधियां संचालित करने का तरीका पेशेवर बनाया जाए. प्रयास अच्छा है पर परिणाम तब ही अच्छे निकलेंगे, जब खेल फेडरेशनों से ऐसे लोगों की छंटाई होगी, जिनका खेलों से कोई खास नाता नहीं रहा है. हमारे यहां तमाम ऐसे लोगों ने खेल फेडरेशनों पर कब्जा जमाया हुआ है, जिनका खेलों से खिलाड़ी के तौर पर कोई नाता नहीं रहा है. सही मायनों में देश में खेलों के प्रति सोच में बदलाव लाने की जरूरत है. मौजूदा केंद्र सरकार ने इस दिशा में कुछ अच्छे कदम उठाये जरूर हैं, पर वह भी नाकाफी हैं.
भारतीय ओलिंपिक संघ ने पिछले वर्ष के आखिर में 2036 के ओलिंपिक आयोजन के लिए अंतरराष्ट्रीय ओलिंपिक समिति की मेजबानी समिति को लेटर ऑफ इंटेंट (मंशा पत्र) भेज दिया है. भारत के साथ इन खेलों को आयोजित करने के इच्छुक देशों में मैक्सिको, इंडोनेशिया, तुर्किये, पोलैंड, मिस्र और दक्षिण कोरिया शामिल हैं. कहा जा रहा है कि जर्मनी भी इस दौड़ में शामिल हो सकता है, क्योंकि उसने 1936 में बर्लिन में ओलिंपिक का आयोजन किया था, जिसके सौ वर्ष पूरे हो रहे हैं. भारत एक मजबूत आर्थिकी वाला देश बन रहा है और भारतीय प्रस्ताव को केंद्र सरकार का पूरा समर्थन हासिल है, इसलिए उसकी दावेदारी दमदार है. वैसे इसमें अभी काफी समय लगेगा. वास्तव में दावेदारी के पक्ष में आपको आयोजन के लिए सबसे बेहतर प्रस्ताव तैयार करना होगा. साथ ही, आइओसी के जिस वार्षिक सत्र में इस संबंध में फैसला हो, उसमें आपको ज्यादातर देशों का समर्थन मिल सके.
आइओए अध्यक्ष पीटी ऊषा की अगुवाई में आठ सदस्यीय दल लुसाने में 30 जून से दो जुलाई तक आइओसी भविष्य के मेजबानों के कमीशन के सामने अपना पक्ष रखने जाने वाला है. यह दल दावेदारी के पक्ष में हुई प्रगति, योजनाओं और खेल सुविधाओं के बारे में अपनी बात रखेगा. भारत ओलिंपिक तैयारियों को मजबूती देने के लिए अहमदाबाद में ही सरदार पटेल स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स में 2030 के कॉमनवेल्थ गेम्स की मेजबानी की भी दावेदारी पेश कर रहा है. यह खेल मिलने से भारत के ओलिंपिक आयोजन के सपने को और मजबूती मिल सकती है.
भारत की ओलिंपिक दावेदारी को मजबूती देने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने प्रदर्शन को और बेहतर करना होगा. अभी हम ओलिंपिक जैसे खेलों में एक स्वर्ण के साथ आधा दर्जन पदक जीतकर भी खुश हो जाते हैं. ओलिंपिक आयोजन करने वाला देश कम से कम आधा दर्जन गोल्ड के साथ दो दर्जन पदक जीतने लायक तो हो. ऐसा नहीं कर पाने की स्थिति में जगहंसाई ही होनी है. हमारे यहां तमाम फेडरेशनों के दो धड़े कोर्ट में पहुंचे हुए हैं. इसलिए सबसे जरूरी तो इन फेडरेशनों की सफाई है. जिस तरह आइओए में पीटी ऊषा, हॉकी इंडिया में दिलीप तिर्की, फुटबॉल फेडरेशन में कल्याण चौबे को लाया गया, उसी तरह अन्य फेडरेशनों में भी खिलाड़ियों को लाया जाए, तो आगे बढ़ने की सही राह बन सकती है.
यह सही है कि जब भी देश को कोई बड़ी प्रतियोगिता मिलती है तो उसकी तैयारियां बेहतर करके अच्छे परिणाम सामने आये हैं. आप 2010 के कॉमनवेल्थ गेम्स को ही लें, इसके लिए तैयारियों पर विशेष ध्यान दिया गया. सही मायनों में भारतीय खिलाड़ियों को सही ढंग से तैयार करने की शुरुआत यहीं से हुई. इसका परिणाम था कि भारत ने 38 गोल्ड सहित 101 पदक जीतकर ऑस्ट्रेलिया के बाद दूसरा स्थान प्राप्त किया. इससे पहले भारत 40-50 पदक जीतकर खुश हो जाया करता था. ओलिंपिक में तो और भी दयनीय स्थिति रही है. लेकिन 2010 के बाद भारतीय प्रदर्शन में निरंतर प्रगति दिखी है. पर यह प्रगति ऐसी तो कतई नहीं रही है, जिस पर इतराया जा सके.
भारत के पास 2036 के ओलिंपिक की तैयारी के लिए अभी पर्याप्त समय है. यदि यंग ब्रिगेड को अभी से अनुभवी अंतरराष्ट्रीय कोचों से प्रशिक्षण दिलाने का काम किया जाए और उन्हें भरपूर अंतरराष्ट्रीय अनुभव दिलाया जाए, तो कोई सूरत नहीं है कि हम लक्ष्य को न पा सकें. हमारे यहां प्रतिभाओं की कमी कभी नहीं रही, जरूरत सिर्फ उन्हें अच्छे से तराशने की है. इसके लिए उचित ढांचा तैयार करने की जरूरत है. हमारे यहां जब नीरज चोपड़ा, मैरी कॉम, विजेंदर और सुशील पहलवान निकल सकते हैं, तो इसका मतलब है कि सही तैयारी की जाए, तो ऐसे खिलाड़ियों की भरमार हो सकती है. ऐसे हालात में ओलिंपिक कराने का मजा ही कुछ और होगा.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)